Update
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🌀 *जैन धर्म की दो धाराओं का मिलन और संयुक्त प्रवचन*
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⚡ श्वेतांबर तेरापंथ संप्रदाय के धर्मनायक,
*आचार्य श्री महाश्रमणजी* के शिष्य उग्र विहारी, महान् तपस्वी, पूज्य
*श्री कमलमुनिजी महाराज*
एवं
⚡ श्वेतांबर मूर्तिपूजक संप्रदाय के राष्ट्रसंत,
*आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब* के शिष्य सामाजिक एकता के प्रबल समर्थक, पूज्य
*आचार्य श्री विमलसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब.....*
का
🔰 प्रवचन विषय - *वर्तमान युग में महावीर के सिद्धांतों की आवश्यकता*
🗓 *दिनांक ~ 25 फरवरी 2018, रविवार,*
⏱ *समय - प्रातः 9.00 से 10.30 बजे तक*
🏢 *स्थल - तेरापंथ भवन, सिटी लाइट, सूरत*
🍥 *प्रस्तुति*🍥
🌻 *संघसंवाद* 🌻
*सूरत में विराजित चरित्र आत्माओ के सम्भावित विहार/प्रवास संबधित सूचना -*
*दिनांक 25-02-2018*
*मुनि श्री संजयकुमारजी, मुनि श्री प्रसन्नकुमार जी* आदि ठाणा-4 A-201, रॉयल रिजेंसी, जूनी पानी की टंकी के पास (व्हाइट लोटस स्कूल के सामने) वेसु विराज रहे है।
*प्रातः कालीन: प्रवचन का समय: 9:30 से 11:00 बजे*
संपर्क सूत्र: क़ासिद: 74868 35128
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🌀🌀 संघ संवाद 🌀🌀 संघ संवाद
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*मुनि श्री कमल कुमार जी* ठाणा 3 तेरापंथ भवन, सिटी लाइट विराज रहे है।
प्रवचन समय - प्रातः 9:00 से 10:30
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🌀🌀 संघ संवाद 🌀🌀 संघ संवाद
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*'शासनश्री' साध्वी श्री सरस्वतीजी* आदि ठाणा 4 दिनांक 25 फरवरी 2018 को प्रातः 8 बजे सुनील जी रांका, बंगला नम्बर 14, सहज रो हाउस के यहां से विहार करके तेरापंथ भवन, पर्वत पाटिया विराजेंगे।
प्रातःकालीन प्रवचन का समय - 9:30 से 11
संपर्क: नारायण क़ासिद 94088 35666
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🌀🌀 संघ संवाद 🌀🌀 संघ संवाद
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*'शासनश्री' साध्वी श्री पदमावतीजी* आदि ठाणा-4 दिनांक 25 फरवरी 2018 को प्रातः 8 बजे श्री सुरेश भाई मेहता वाव वाले, 57- नवपल्लव बंगलो, SVNIT कॉलेज की गली के सामने, उमरा से विहार करके श्री चिंतन भाई सिंघवी, B-101, केपीएम रेजीडेंसी, चंदन पार्क के सामने, सिटी लाइट, सूरत विराजेंगे।
सम्पर्क सूत्र - क़ासिद कुपसिंह - 84336 05055
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*'शासनश्री' साध्वी श्री मधुबालाजी* आदि ठाणा 5 तेरापंथ भवन, बसेरा सोसाइटी, कामरेज विराज रहे है।
संपर्क: 81284 81090
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🌀🌀 संघ संवाद 🌀🌀 संघ संवाद
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*शासन श्री साध्वी ललीतप्रभाजी* ठाणा -4 महावीरजी कोठारी के नए घर 35, श्रीजी रो-हाउस, L.D.HIGH SCHOOL के सामने, सचिन विराज रहे है।
प्रवचन का समय - रात्रि 9 से 10
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🌀🌀 संघ संवाद 🌀🌀 संघ संवाद
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प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 बेहाला (कोलकाता) - "प्रतिकमण जागरूकता कार्यशाला" का आयोजन
👉 दालकोला - प्रतिक्रमण जागरूकता कार्यशाला का आयोजन
👉 चेन्नई - कन्यामण्डल द्वारा वृहद् प्रतिक्रमण कार्यशाला का आयोजन
👉 राजाजीनगर (बेंगलुरू) - प्रतिक्रमण कार्यशाला का आयोजन
👉 राजराजेश्वरी नगर (बेंगलुरु) - संघ की श्रीवृद्धि एवं हमारा समर्पण कार्यशाला
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद*🌻
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News in Hindi
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 267* 📝
*पुण्यश्लोक आचार्य पात्रकेशरी (पात्रस्वामी)*
*साहित्य*
*पात्रकेशरी स्तोत्र (जिनेन्द्र गुण संस्तुति)* यह स्तोत्र पात्रकेशरी की लघु रचना है। इसके 50 पद्य हैं। प्रस्तुत कृति में जिनेश्वर देव के गुणों की स्तुति की गई है। अतः इस कृति का नाम जिनेन्द्र स्तुति भी है। जिन गुण स्तुति का उद्देश्य बताते हुए ग्रंथकार ने लिखा है—
*जिनेन्द्र! गुणसंस्तुतिस्तव मनागपि प्रस्तुता,*
*भवत्यखिलकर्मणां प्रहतये परं कारणम्।*
*इति व्यवसिता मतिमर्म ततोऽहमत्यादरात्,*
*स्फुटार्थनयपेशलां सुगत! संविधास्ये स्तुतिम्।।1।।*
जिनेन्द्र प्रभो! आपकी स्वल्प स्तुति भी अखिल कर्मों का नाश करने में परम निमित्त है। इसलिए मैं अत्यंत आदरभाव के साथ नयों से अलंकृत अर्थ परिपूर्ण स्तुति के लिए प्रवृत्त हुआ हूं।
प्रस्तुत श्लोकांतर्गत 'नयपेशलां' वाक्यावली से यह स्तोत्र न्यायशास्त्र का उत्तम ग्रंथ है।
इस कृति में पात्रकेशरी की वीतराग प्रभु के प्रति अटूट आस्था एवं दार्शनिक विचारों का अपूर्व समन्वय है। अर्हत् गुणों की पुष्टि नाना युक्तियों के आधार पर की गई है। आत्मकर्तृत्व, पुनर्जन्म आदि अनेक दार्शनिक दृष्टियों का सुंदर विवेचन है और जैन सिद्धांतानुरूप सर्वज्ञ सिद्धि वर्णन में नैयायिक, वैशेषिक, सांख्य, मीमांसक आदि जैनेतर दर्शनों से सम्मत आप्त पुरुषों की सम्यक् समीक्षा है।
संस्कृत व्याकरण के नियमानुसार अन्य की अभिव्यक्ति के लिए परस्मैपदी धातु प्रयोग और 'स्व' की अभिव्यक्ति के लिए आत्मनेपदी धातु का प्रयोग होता है। पात्रकेशरी ने अपने इस ग्रंथ में स्वमत की स्थापना और परमत का निरसन करते समय स्थान-स्थान पर आत्मनेपदी धातु का प्रयोग किया है। स्वलक्ष्य सिद्धि में इस प्रकार के प्रयोग पात्रकेशरी के व्याकरण संबंधी गंभीर ज्ञान की सूचना देते हैं।
यह 'पात्रकेशरी स्तोत्र' पात्रकेशरी की प्रौढ़ रचना है। वर्तमान में संस्कृत टीका सहित यह स्तोत्र प्रकाशित है। टीका अज्ञातकर्तृक है।
*समय-संकेत*
पात्रकेशरी ने त्रिलक्षण कदर्थन ग्रंथ में दिङ्नाग द्वारा स्थापित हेतु के त्रिलक्षण स्वरूप का निरसन किया है। अतः पात्रकेशरी बौद्ध विद्वान दिङ्नाग से उत्तरवर्ती हैं।
आचार्य अकलङ्क के सिद्धिविनिश्चय ग्रंथ तथा न्यायविनिश्चय ग्रंथ में आचार्य विद्यानन्द के तत्वार्थश्लोकवार्तिक में पात्रकेशरी की करिकाओं को उद्धृत किया गया है। भट्ट अकलङ्क का समय ईस्वी सन् 720 से 780 (विक्रम संवत 777 से 837) तथा विद्यानंद का समय ईस्वी सन् 775 से 840 तक सिद्ध किया गया है।
पात्रकेशरी की काराकाओं का सबसे अधिक प्राचीन उल्लेख शान्तिरक्षित के तत्त्वसंग्रह में पाया गया है। बौद्ध विद्वान् कर्णगोभि ने भी इन काराकाओं की समीक्षा की है। शान्तिरक्षित का समय ईस्वी सन् 705 से 763 है एवं कर्णगोभि का समय ईस्वी 7वीं सदी का उत्तरार्द्ध एवं 8वीं सदी का पूर्वार्द्ध है।
दिङ्नाग से उत्तरवर्ती और तत्त्वसंग्रह रचनाकार शान्तिरक्षित से पूर्ववर्ती होने के कारण पात्रकेशरी का समय ईसा की छठी शताब्दी संभव है। यही समय स्व. डॉ. नेमिचंद्र शास्त्री आदि शोध विद्वानों का अनुमानित है।
*मुक्ति-दूत आचार्य मानतुंग के प्रभावक चरित्र* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
📙 *'नींव के पत्थर'* 📙
📝 *श्रंखला -- 91* 📝
*भैंरुलालजी सींधड़*
*पितामह की प्रकृति के*
लाला भैंरूलालजी सींधड़ जयपुर के सुप्रसिद्ध और प्रथम श्रावक लाला हरचंदलालजी के पौत्र थे। वे अपने पिता लाला ताराचंदजी जैसी सीधी और भोली प्रकृति के न होकर पितामह जैसी नीति और चातुर्यपूर्ण प्रकृति के थे। संसार पक्ष और धर्म पक्ष दोनों में ही वे वहां के अग्रणी व्यक्ति माने जाते थे।
जयाचार्य के अनन्य भक्त और विश्वसनीय श्रावकों में उनका स्थान प्रथम कोटि में था। संघ की जो बात अत्यंत गोपनीय मानी जाती थी वह भी उनके सम्मुख रख देने में किसी प्रकार की हिचक नहीं की जाती थी। उस विषय में उनसे परामर्श भी किया जाता था। वे जो परामर्श दिया करते बहुधा बहुत उपयोगी और व्यावहारिक हुआ करता था। जयाचार्य उनके परामर्श को प्रायः मान्य किया करते थे। उनकी पत्नी भी उन जैसी ही विश्वसनीय और दृढ़ निष्ठा वाली श्राविका थी।
*सेवा में भी ठाठ-बाट*
लालाजी बड़े सेवा परायण व्यक्ति थे। धनी और व्यापारी होने के कारण अपने जीवन की व्यस्तता में भी वे गुरु सेवा के लिए आवश्यक समय निकाल लिया करते थे। कई बार तो उन्होंने वर्ष भर में छह महीनों तक उपासना की थी। उस युग में आजकल की तरह रेलों तथा मोटरों के साधन नहीं थे। मार्ग भी प्रायः कच्चे हुआ करते थे। साधारण जन के लिए बैलगाड़ी और विशिष्ट के लिए बहली या रथ ही यात्रा के उपयोगी साधन थे। लालाजी विहार या चातुर्मास के अवसर पर जब भी कभी सेवा में जाते तब आवश्यकता की सभी सामग्री अपने साथ ले जाया करते थे। वाहन, तंबू, मुनीम और अनेक सेवक तो उनके साथ हुआ ही करते थे। यहां तक कि गायें-भैंसें भी साथ ले जाया करते थे। वे घर में तथा समाज में जिस ठाट-बाट से रहते थे, सेवा में भी उसी प्रकार से रहते थे।
*संस्कारगत संबंध*
जयाचार्य का जयपुर के साथ जैसे कोई संस्कारगत संबंध था। उनका दीक्षा संस्कार वहीं हुआ था और देहावसान भी। लाला भैंरूलालजी के साथ भी उनका वैसा ही संस्कारगत संबंध था। वे प्रायः समवयस्क ही थे, अतः संभावना की जा सकती है कि लाला हरचंदलालजी के समय आचार्य भारमलजी के पास जब उन्होंने संयम ग्रहण किया था तभी से उनके पौत्र लाला भैंरूलालजी से भी परिचित हो गए थे। समवयस्कता के कारण वही परिचय कालांतर में परिपक्व होकर और सुदृढ़ संबंध बन गया।
जयाचार्य ने जयपुर में एक चातुर्मास मुनि हेमराजजी के साथ, एक अपनी अग्रणी काल में, तीन युवाचार्य अवस्था में और चार आचार्य अवस्था में किए थे। कहा जाता है कि युवाचार्य काल में किए गए संवत् 1904 के चातुर्मास में लाला भैंरूलालजी ने यह वचन ले लिया था कि आचार्य पद प्राप्त होने के पश्चात् वे अपना प्रथम चातुर्मास जयपुर में ही करें। यही कारण था कि आचार्य बनने के साथ ही जयाचार्य थली के सभी क्षेत्रों को छोड़कर प्रथम चातुर्मास के लिए जयपुर पधारे। इसी प्रकार जयाचार्य को वृद्धावस्था में जयपुर की ओर प्रस्थान करने में भी लाला भैंरूलालजी की प्रार्थना ही कारणभूत कही जाती है। फलतः संवत् 1937 और 38 के अंतिम दो चातुर्मास जयपुर को प्राप्त हुए।
*भैंरुलालजी सींधड़ के प्रेरणादायी जीवन-वृत्त* के बारे में आगे और जानेंगे व प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 लिलुआ - “प्रतिक्रमण करें स्वयं का आत्मनिरीक्षण" कार्यशाला का आयोजन
👉 सूरत - कैसे झलके श्रावकत्व कार्यशाला
👉 अहमदाबाद - निर्माण एक नन्हा सा कदम स्वच्छता की ओर कार्यक्रम
👉 दिल्ली - निर्माण एक नन्हा सा कदम स्वच्छता की ओर कार्यक्रम
👉 तिरुकलिकुण्ड्रम - निर्माण एक नन्हा कदम स्वच्छता की ओर
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*
*- Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
संप्रेषक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
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👉 *"अहिंसा यात्रा"* के बढ़ते कदम
👉 पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ विहार करके "गंगाशहऱ" पधारेंगे
👉 आज का प्रवास - यू.जी.एच.एस. स्कूल, गंगाशहऱ जिला - बलांगीर (ओड़िशा)
प्रस्तुति - *संघ संवाद*
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