28.03.2018 ►Acharya Mahashraman Ahimsa Yatra

Published: 28.03.2018

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28-03-2018 JKpur, Raigada, Odisha

अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति

प्रखर आतप में महातपस्वी महाश्रमण का प्रलंब विहार

  • लगभग 17 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री जेकेपुर स्थित माॅडल डिग्री कालेज परिसर में पधारे

28.03.2018 जेकेपुर, रायगढ़ा (ओड़िशा)ः

भारत के पूर्वी हिस्से का ओड़िशा प्रान्त। जो भौगोलिक दृष्टि से छोटा नागपुर के पठारी भाग के अंतर्गत आता है। पठारी भाग में अवस्थित होने के कारण लगभग पूरा प्रदेश में पहाड़ों की श्रृंखलाएं देखने को मिल जाती हैं। जहां का मौसम भारत के अन्य प्रदेशों की तुलना में गर्म रहता है। इस प्रदेश में मार्च के महीने से ही सूर्य की प्रखरता बढ़ जाती है। ऐसे प्रदेश में अपनी अहिंसा यात्रा के साथ परकल्याण को समर्पित, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, महातपस्वी, अखंड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी यात्रायित हैं। जन मानस को मानवता का संदेश देने के लिए आचार्यश्री निरंतर गतिमान हैं। दिन प्रतिदिन बढ़ती गर्मी के बावजूद समताभावी आचार्यश्री के ज्योतिचरण अबाध रूप से अग्रसर हैं।

बुधवार को प्रातः की मंगल बेला में रायगढ़ा जिले के भातपुर से अपनी धवल सेना के साथ मंगल प्रस्थान किया तो सूर्य भी अपने पथ पर गतिमान हो चुका था। आचार्यश्री जिस तरह से अपनी धवल सेना के साथ अगले गंतव्य की ओर अग्रसर थे वैसे ही सूर्य भी अपनी रश्मियों के साथ अपने गंतव्य को बढ़ता जा रहा था। आज के विहार मार्ग के दोनों तरफ सघन जंगल देखने को मिल रहे थे। आज अखंड परिव्राजक आचार्यश्री प्रलंब विहार के लिए चल पड़े थे। क्यांेकि आज का गंतव्य प्रस्थान स्थल से लगभग सतरह किलोमीटर दूर था। फिर भी दूरी और और सूर्य की प्रखरता से बेपरवाह दृढ़ निश्चयी आचार्यश्री गतिमान थे। आचार्यश्री जैसे-जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे सूर्य की प्रखरता बढ़ती जा रही थी और इसी के साथ बढ़ता जा रहा था धरती का तापमान। सूर्य के आतप से तप्त धरती पर गतिमान महातपस्वी के ज्योतिचरण उसी प्रकार बढ़ रहे थे जैसे समुद्र में लहरों के उठने के बावजूद जहाज लहरों को चीरता हुआ आगे बढ़ जाता है। इस प्रखर आतप में आचार्यश्री लगभग सतरह किलोमीटर का प्रलंब विहार कर अपनी धवल सेना संग जेकेपुर मंे नवनिर्मित माॅडल डिग्री कालेज परिसर में पधारे।

विद्यालय परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने अपने श्रीमुख से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्र में तीन प्रकार बोधि बताई गई है-ज्ञान बोधि, दर्शन बोधि और चारित्र बोधि। आदमी को अपने जीवन में ज्ञान का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान के विकास के लिए आदमी को स्वाध्याय में समय नियोजित करने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान आदमी के चक्षु (आंख) के समान होता है। जिस प्रकार आदमी की अपनी आंख होती है उसी प्रकार आदमी का अपना ज्ञान अपना ही होता है। इसलिए आदमी को अपने जीवन मंे अपने ज्ञान को निरंतर बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री ने मानव जीवन का दुर्लभ बताते हुए कहा कि आदमी को अपने जीवन में सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र प्राप्त हो जाए तो जीवन का कल्याण हो सकता है और आदमी को मुक्ति की भी प्राप्ति हो सकती है। इस प्रकार आदमी को अपने जीवन में बोधि का विकास करने का प्रयास करना चाहिए और इस दुर्लभ मानव जीवन का सुन्दर फल प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।

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