19.04.2018 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 19.04.2018
Updated: 20.04.2018

Update

आर्यिका श्री #ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से #सम्मेदशिखरजी में निर्मित हो रहे आचार्य श्री #शान्तिसागर धाम पर शिखरजी से प्रथम मोक्षगामी तीर्थंकर #अजितनाथजी की कमलासन सहित 31 फ़ीट विशाल खड्गासन प्रतिमा 16 अप्रैल को क़्रेन द्वारा सानंद विराजमान हुई। देखिए कतिपय दृश्य एवं लाल ग्रेनाइट में निर्मित अतिसुंदर, मनोज्ञ व मनोरम प्रतिमा जी की एक झलक।

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कल आचार्य श्री की पपोरा जी में भव्य प्रवेश... पूरा बुंदेलखंड इसकी प्रतीक्षा के लिए इंतज़ार कर रहा था वो समय कल आएगा... 🙃 #share • #AcharyaVidyasagar

◆ आज रात्रि विश्राम- पठा ग्राम।
◆ कल प्रातः 7:30 बजे, मंगल प्रवेश- अतिशय क्षेत्र श्री पपौरा जी जिला टीकमगढ़ मप्र।

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Enslaved, covered with feces and deprived of her baby and her freedom.

And always those same innocent eyes that ask "why?"

Please think twice before buying dairy products.
via: Ori Shavit

Enslaved, covered with feces and deprived of her baby and her freedom. 😕

And always those same innocent eyes that ask "why?" 😒

Please think twice before buying dairy products. 😞

Water Bowl Impact #share pls to create awareness.. Be helping hands!!

Support stray animals at your place by providing safe drinking water round the clock to quench their thirst.

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Update

✿ तुम विद्या के सागर, हो आगम के आगर! तुम्ही से सुशोभित, हो जीवन का सागर!!:) Exclusive Photograph..

जब तुमको देखा समझ ये आया, महावीर स्वामी को साक्षात् पाया!
तेरी शांत मुद्रा में खो गया हूँ, अनुपम छवि का दीवाना हो गया हूँ!

जिनवाणी को अंतस में बसाया, अंतर चक्षु मैं खुलते पाया!
तेरे मुख से जिनवाणी मर्म, नयन पथगामी बनू तुझ सम!

अध्यात्म सरोवर के राजहंस, निहारा तुझे जैसे आत्मा में बसंत!
तुझे देख इतना जान गया हूँ, मोक्ष मार्ग अब पहचान गया हूँ!

जब से देखा इस वीतराग दशा को, मान रहा हूँ धन्य स्वयं को!
कर्म बंधन कब को मैं भी तोडू, संसार सागर से नाता तोडू!

-Composition written By: • Nipun Jain

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News in Hindi

संत कहते हैं सँसार का मार्ग बड़ा खतरनाक है! इस मार्ग पर तुम्हे कदम कदम पर संभल कर चलना पड़ता है! थोड़ी सी भी चूक हुई तो गए काम से!जैसे कोई हिमालय पर चढ़ना चाहता हो तो उसे एक एक कदम संभाल कर चढ़ना पड़ता है! सजगता और सावधानी से,क्योंकि एक कदम भी संतुलन गडबडाया तो उसे नीचे आने से कोई नही रोक सकता है!

राजधानी दिल्ली में हुआ जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की दीक्षा के 50th स्वर्ण जयंती महोत्सव का शानदार आयोजन... सनिध्ये.. 5 ऋषिराज.. मुनिश्री प्रणम्यसागर जी महाराज, मुनिश्री चन्द्रसागर जी महाराज, मुनिश्री वीरसागर जी महाराज, मुनिश्री विशालसागर जी महाराज, मुनिश्री धवलसागर जी महाराज

धर्मात्मा जीव भी अपने जीवन को उत्कर्ष तक ले जाना चाहता है! उसका ध्येय ऊँचाई तक जाना है,शिखर को छूना है,तो उसके लिए सावधानी भी निहायत जरूरी है! और इसी सावधानी का नाम है संवेग! शास्त्रों मे लिखा है "सँसार से भय का नाम संवेग है " कुछ लोग कहेंगे की महाराज! ये कहा जाता है कि भय तो मनुष्य की एक बड़ी दुर्बलता है और इस भय को दूर करना चाहिये और अभय का उपदेश दिया जाता है? पर यहाँ तो भय का उपदेश दिया जा रहा है और वह भी एक सम्यक दृष्टि की विशेषता के रूप मे! हाँ,बंधुओं! सम्यक दृष्टि और अज्ञानी मे यही अन्तर है! सम्यक दृष्टि सँसार से भय करता है और मिथ्यादृष्टि अज्ञानी सांसारिक लोगों से! संसारी परिस्थितयों से भागना अज्ञानी का काम है और सांसारिक परिस्थितियों से भय रखकर जागरूक रहना यह ज्ञानी का लक्षण है! बहुतेरे लोग ऐसे हैं जिनके जीवन मे कोई ना कोई भय व्याप्त रहता ही है! कभी कभी वह इन परिस्थितियों से पीठ दिखाकर भागना भी शुरू कर देते हैं,संत कहते हैं भागो नही जागो! भाग कर के जाओगे कहाँ?

रास्ते पर चल रहे हैं और आगे बहुत गहरी खाई है पर सडक के किनारे यदि संकेत सूचक चिन्ह है जो ये बता रहे हैं आगे कुछ दूरी पर गहरी खाई है तो इसका मतलब यह नही कि इस खाई को देखकर तुम गाडी मोड दो! उस मार्ग सूचक संकेत का आशय सिर्फ इतना है कि आगे तुम अपने ब्रेक को संभाल लो! जिस गति से तुम अभी चल आरहे हो उस गति से न चलाकर कुछ धीमी गति से, सावधानी से चलो!
संत भी यही कहते हैं,जीवन मे ढलान है तो अपने ब्रेक संभाल लो,ताकि तुम गर्त मे गिरने से बच जाओ! सावधानी से अपना जीवन जियो! बस यही है संवेग! हमारे सद्गुरु जो संकेत देते हैं,हमारे शास्त्र जो मार्ग दर्शन देते हैं उनकी उपेक्षा करके जो इस सँसार के मार्ग पर आगे बढते हैं उनका जीवन हमेशा के लिए विनष्ट हो जाता है! भव भावान्त्रों से हमारे साथ यही होता आया है! हमने अपने सँसार कि यात्रा को आँख मूंदकर आगे बढ़ाया है और नतीजे मे हमेशा ही हमें नर्क और निगोद का पात्र बनना पड़ा है! इसीलिए संत कहते हैं सँसार से भागो नही सँसार मे जागो

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