09.05.2018 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 09.05.2018
Updated: 14.05.2018

News in Hindi

कौन कौन चहाता है कि एक बार तो जीवन मैं धरती के भगवान आचार्य श्री को आहार देने का सौभागय मिले!

नमक, शकर, हरी सब्जी, दही, सूखे मेवा, दूध, तेल आदि सभी वस्तुओं का आचार्यश्री विद्यासागर जी ने आजीवन त्याग किया हुआ है। उनके आहार में उबली हुई दाल और रोटियां ही रहती हैं तथा 24 धंटे में सिर्फ़ एक बार भोजन तथा जल लेते हैं। खुशकिस्मत है इनके भक्त जिन्हें गुरु के रूप में #आचार्यविद्यासागर जी महाराज मिले।

जानिए आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के त्याग के बारे में, वास्तव में इस पंचम काल में चरित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांति सागर जी के बाद पूर्णतया आगम अनुरूप चर्या देखना है तो वो है आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज उनके त्याग तपस्या चर्या इस प्रकार है -

• आजीवन चीनी का त्याग |
• आजीवन नमक का त्याग |
• आजीवन चटाई का त्याग |
• आजीवन हरी का त्याग |
• आजीवन दही का त्याग |
• सूखे मेवा (dry fruits) का त्याग |
• आजीवन तेल का त्याग |
• सभी प्रकार के भौतिक साधनो का त्याग |
• थूकने का त्याग |
• एक करवट में शयन |

• पूरे भारत में सबसे ज्यादा दीक्षा देने वाले |
• पूरे भारत में एक मात्र ऐसा संघ जो बाल ब्रह्मचारी है |
• पुरे भारत में एक ऐसे आचार्य जिनका लगभग पूरा परिवार ही संयम के साथ मोक्षमार्ग पर चल रहा है |
• शहर से दूर खुले मैदानों में नदी के किनारो पर या पहाड़ो पर अपनी साधना करना |
अनियत विहारी यानि बिना बताये विहार करना |
• प्रचार प्रसार से दूर- मुनि दीक्षाएं, पीछी परिवर्तन इसका उदाहरण |

आचार्य देशभूषण जी महराज जब ब्रह्मचारी व्रत के लिए स्वीकृति नहीं मिली तो गुरुवर ने व्रत के लिए 3 दिवस निर्जला उपवास किआ और स्वीकृति लेकर माने | ब्रह्मचारी अवस्था में भी परिवार जनो से चर्चा करके अपने गुरु से स्वीकृति लेते थे और परिजनों को पहले अपने गुरु के पास स्वीकृति लेने भेजते थे | आचार्य भगवंत सम दूसरा कोई संत नज़र नहीं आता जो न केवल मानव समाज के उत्थान के लिए इतने दूर की सोचते है वरन मूक प्राणियों के लिए भी उनके करुण ह्रदय में उतना ही स्थान है | शरीर का तेज ऐसा जिसके आगे सूरज का तेज भी फिका और कान्ति में चाँद भी फीका है |

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Ascetics are stark paradigm of Rationalism who makes fanfare of Jainism prominently along with in a quest of inner true self. And they are personified and alive replica of Tirthankara. I see you my everything, the de facto follower and my ideal, my decipherer of Tirthankara preaching and words. you foster of detachment, and intertwined folks, day in and day out in a compelling manner. You are sheer and flair follower of Jinvaani keynotes in order to demolish the pangs of life and improve the endurance. you disclose the hand-picked gems treasure of jinvaani in this cutting edge world of era where lust is mingled. I do pray and keep feeling to strive the heyday of my life in regards of peace and complacency and smile obviously:)

Your Reliant... [ Paragraph drafting by Nipun Jain ]

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तेरे चरणो की धूल गुरु.. चंदन-गुलाल लगे.. जिसने भी लगाई मस्तक.. उसकी तक़दीर बने... मुनि प्रणम्यसागर जी & मुनि चंद्रसागर जी चरण प्रक्षालन ☺️😍

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तेरे चरणो की धूल गुरु.. चंदन-गुलाल लगे.. जिसने भी लगाई मस्तक.. उसकी तक़दीर बने... मुनि प्रणम्यसागर जी & मुनि चंद्रसागर जी चरण प्रक्षालन ☺️😍

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तेरे चरणो की धूल गुरु.. चंदन-गुलाल लगे.. जिसने भी लगाई मस्तक.. उसकी तक़दीर बने... मुनि प्रणम्यसागर जी & मुनि चंद्रसागर जी चरण प्रक्षालन ☺️😍

श्री सिद्ध क्षेत्र पालिताना, गुजरात -जहा से यधिष्ठिर, भीम और अर्जुन सहित आठ करोड़ द्रविड़ राजा मोक्ष पधारे! [ पहाड़ पर दिगंबर जैन मंदिर में शांतिनाथ भगवान् का अभिषेक होते हुए द्रश्य ] -Photograph clicked by -Nipun Jain | www.jinvaani.org

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मत मारो ये
बेजुबान है किन्तु
बेजान नही!

- मुनिश्री प्रणम्य सागर जी

अनासक्त महायोगी आचार्य विद्यासागर जी के 5 शिष्य @ दिल्ली.... मुनि प्रणम्यसागर जी & चंद्रसागर जी @ कृष्णा नगर में तथा मुनि वीरसागर जी, विशालसागर जी, धवलसागर जी @ यमुना विहार में विराजमान हैं 🙃

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✿ पिन्छी का प्रभाव और तीर्थंकर महिमा, हिंदी का घटता प्रयोग -आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

आचार्य श्री ने कहा अंग्रेजी कि वजह से Russian, German, Chinese जैसी महान भाषा भारत से कट गयी, एक व्यक्ति ने जब पडाल में इंडिया कहा तो आचार्य श्री बोले ये इंडिया नहीं भारत है, 'भरत का भारत', इंडिया बोलकर क्यों आप लोग इनका नाम बिगाड़ रहे है! आचार्य श्री ने आगे संयम के ऊपर भी बोला कि संयम धारण करो, फिर आगे कहा हमने अपना पहला अध्ययन आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के सानिध्य में हिंदी में ही पढ़ा था, आज तक मेरे कान में आचार्य गुरुदेव का वाणी गूंजती है जब वे हिंदी में प्रवचन देते थे, वैसे हम आज भी गुलाम है अंग्रेजी के, जब china स्वतंत्र हुआ उसने तभी घोषणा कर दी कि कोई भी इंग्लिश नहीं बोलेगा सिर्फ chinese बोलेगा, और यही जापान ने भी किया!

आगे आचार्य श्री ने कहा ये पिन्छी जब एक बालक के हाथ में आजाती है जो अभी सिर्फ 8 वर्ष और अन्तर्मुहुर्त [ 48 Minute ] का है जिसे घर वाले छोटा बच्चा समझ रहे है, जब जो दीक्षा लेलेता है तब उनके पिता अब पिता नहीं रहे, अब वे पिता नमोस्तु बोल रहे है, और उनको उनके नाम से नहीं बल्कि महाराज श्री कह कर सम्बोधित करते है, ये वही पिन्छी है जो भद्रबहु स्वामी ने ली, जब वे दक्षिण चले गए और और जब विशाखाचर्य वापस आये तो उनके संघ को देवो ने आहार कराया, ये सब इस पिन्छी का कमाल है, देवताओ को बुलाने कि जरुरत नहीं पड़ती, वे खुद आजाते है, इस पिन्छी कि वजह से, आखिर उन्हें भी अपनी दूकान चलानी है या नहीं

तीर्थंकर भगवान् को कभी पिन्छी और कमण्डलु कि जरुरत नहीं होती, वो जो भी आहार में लेते है, जठर अग्नि में भस्म हो जाता है, कुछ नहीं बचता, उनको पसीना भी नहीं आता, उनका शारीर वज्रमय होता है, उनको लघु-शंका आदि जाने कि जरुरत भी नहीं, आज जहा साक्षात... साक्षात... साक्षात... [ 3 Times Repeated ] तीर्थंकर विराजमान है यहाँ क्या अद्भुत नजारा होता होगा, जरा कल्पना करो, रोंगटे खड़े हुए बिना रह नहीं सकते, वह कितने रिद्धिधारी मुनि होंगे, मतिज्ञान, अवधिज्ञान, मनपर्याय ज्ञान! अहा... क्या महिमा है उस वीतरागता कि! अहिंसा परमो धर्मं कि जय हो!

ये पिन्छी परिवर्तन के रामटेक के प्रवचन Mr. Gaurav Jain ने मुझे Nipun Jain -Admin को बताये जिसको मैंने टाइप करके वैसे ही भावो के साथ लिखने कि कोशिश कि है -Big thank to him

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