Update
🎖 *आचार्य तुलसी - 22 वीं पुण्यतिथि* 🎖
*भक्ति संध्या*
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*दिनांक - 1 जुलाई 2018 रविवार*
*समय - रात्रि 8:00 बजे*
*स्थान -* *अणुव्रत मंच,*
*नैतिकता का शक्तिपीठ, गंगाशहर*
*आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान*
*अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल*
संप्रसारक - 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 जयपुर में त्रिदिवसीय संस्कार निर्माण शिविर का शुभारंभ
👉 दिल्ली - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 K.G.F - सेल्फ़ मैनेजमेंट की कार्यशाला का आयोजन
👉 काजुपाड़ा, मुम्बई - महिला मंडल संगठन यात्रा के अंतर्गत स्व प्रबंधन सुखी जीवन कार्यशाला
👉 सूरत - कन्या मंडल द्वारा "Best out of waste" प्रतियोगिता का आयोजन
👉 पूर्वांचल, कोलकाता - तेरस धम्म जागरण का आयोजन
👉 विजयनगर(बेंगलुरु) - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 वाइटफील्ड (बेंगलुरु) - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 कांदिवली, मुम्बई - महिला मंडल संगठन यात्रा के अंतर्गत स्व प्रबंधन सुखी जीवन कार्यशाला
👉 गुडूर (आँघ्रप्रदेश) - मदुरै - समाज द्वारा 2019 महावीर जयंती की पुरजोर अर्ज़
प्रस्तुति: 🌻 *संघ.संवाद* 🌻
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💧❄ *अणुव्रत* ❄💧
🔹 संपादक 🔹
*श्री अशोक संचेती*
🛡 *जून अंक* 🛡
में
❄पढिये❄
*अणुव्रत विचार दर्शन*
स्तम्भ के अंतर्गत
⛲
*सचेत हो जाएं*
⛲
*असंयम का परिणाम*
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🔅 प्रेषक 🔅
*अणुव्रत सोशल मीडिया*
🔅संप्रसारक🔅
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 362* 📝
*प्रभापुञ्ज आचार्य प्रभाचन्द्र*
*साहित्य*
आचार्य प्रभाचंद्र का जैसा नाम था वैसी ही उनकी निर्मल साहित्यिक प्रभा थी। साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने टीका ग्रंथों की रचना अधिक की। उनके ग्रंथों का परिचय इस प्रकार है—
*प्रमेयकमलमार्तण्ड टीका* आचार्य माणिक्यनन्दी के 'परीक्षामुख' पर बारह हजार (12000) श्लोक परिमाण 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' नामक यह वृहत् टीका ग्रंथ है। प्रमेय रूपी कमलों को विकसित करने के लिए यह ग्रंथ सूर्य के समान है। इस ग्रंथ की रचना परमार नरेश भोज के राज्यकाल में हुई। इस ग्रंथ के अध्ययन से रचनाकार के प्रकांड पांडित्य की सूचना मिलती है।
*न्यायकुमुदचंद्र टीका* भट्ट अकलङ्क की लघीयस्त्रयी पर न्यायकुमुदचंद्र ग्रंथ की रचना हुई। यह सोलह हजार (16000) श्लोक परिमाण विस्तृत व्याख्या ग्रंथ है। इसमें दार्शनिक विषयों की गंभीर सामग्री उपलब्ध है। इस ग्रंथ की रचना परमार नरेश के उत्तराधिकारी जयसिंहदेव के राज्यकाल में हुई।
*महापुराण टिप्पण* पुष्पदंत कृत महापुराण ग्रंथ पर आचार्य प्रभाचंद्र ने महापुराण टिप्पण लिखा। पुष्पदंत महापुराण के दो भाग हैं आदि पुराण, उत्तर पुराण। आचार्य प्रभाचंद्र के आदिपुराण टिप्पण की 1950 श्लोक संख्या और उत्तर पुराण टिप्पण की 1350 श्लोक संख्या है। महापुराण टिप्पण की कुल श्लोक संख्या 3300 है। इस महापुराण टिप्पण ग्रंथ की रचना आचार्य प्रभाचंद्र ने परमार नरेश भोज के उत्तराधिकारी श्री जयसिंहदेव के राज्य में की।
*आराधना कथाकोष* आचार्य प्रभाचंद्र का आराधना कथाकोष गद्य रचना है। इसकी रचना भी उन्होंने श्री जयसिंहदेव के राज्य में की।
*शब्दाम्भोज भास्कर* आचार्य प्रभाचंद्र के इस शब्दाम्भोज भास्कर ग्रंथ की जानकारी श्रवणबेलगोला के संख्यक 40 के अभिलेख में है। यह ग्रंथ जैनेंद्र व्याकरण की विस्तृत व्याख्या है। वर्तमान में यह ग्रंथ उपलब्ध नहीं है।
रत्नकरण्डश्रावकाचार टीका, क्रियाकलाप टीका, समाधि तंत्र टीका, आत्मानुशासन तिलक, द्रव्यसंग्रह पंजिका, प्रवचन सरोज भास्कर, सर्वार्थसिद्धि टिप्पण आदि ग्रंथ भी प्रभाचंद्र के माने गए हैं।
अष्टपाहुड़ पंजिका, स्वयंभू स्तोत्र पंजिका, देवागम पंजिका आदि ग्रंथ प्रभाचंद्राचार्य के होने चाहिए ऐसा विद्वानों का अनुमान है।
*समय-संकेत*
आचार्य वादिदेव ने अपने 'स्याद्वादरत्नाकर' ग्रंथ (ईस्वी सन् 1118) में प्रभाचंद्र के प्रमेयकमलमार्तण्ड का नामोल्लेख पूर्वक प्रतिवाद किया है, अतः वादिदेव से प्रभाचंद्र पूर्ववर्ती सिद्ध होते हैं।
आचार्य वादिराज ने अपने पार्श्वनाथ चरित्र (ईस्वी सन् 1025) में विद्यानंद आदि कई प्रभावक आचार्यों का उल्लेख किया है, परंतु उसमें प्रभाचंद्र का उल्लेख नहीं है, अतः प्रभाचंद्राचार्य का समय विद्वान् वादिराज से उत्तरांश में संभव है।
आचार्य माणिक्यनन्दी और प्रभाचंद्र का साक्षात् गुरु-शिष्य संबंध था। माणिक्यनन्दी विक्रम की 11वीं सदी के विद्वान् थे।
आधुनिक शोध विद्वानों ने कई प्रामाणिक स्रोतों के आधार पर प्रभाचंद्राचार्य का समय ईस्वी सन् 980 से 1065 तक मान्य किया है, अतः प्रभाचंद्राचार्य वीर निर्वाण 16वीं (विक्रम की 11वीं एवं 12वीं) सदी के विद्वान् अनुमानित होते हैं।
*निष्कारण उपकारी आचार्य नेमिचन्द्र (सिद्धान्त-चक्रवर्ती) के प्रेरणादायी प्रभावक चरित्र* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 16* 📜
*बहादुरमलजी भण्डारी*
*एक राजाज्ञा; एक पारितोषिक*
गतांक से आगे...
किसनमलजी के दल को घुड़सवारों के लाडनूं पहुंचने से पूर्व ही उन तक पहुंचना था, अतः विश्राम आदि की अधिक चिंता न कर वे चलते ही रहे। घुड़सवारों के प्रथम दल को इतनी कोई शीघ्रता नहीं थी। वे आनंदपूर्वक विश्राम करते हुए मंजिलें काटते जा रहे थे। मार्ग के एक ग्राम में उनमें से किसी एक के परिचित परिवार में शादी थी। उसमें सम्मिलित होने के लिए वे वहां एक दिन रुक भी गए। इन सभी परिस्थितियों ने ऐसा सहयोग दिया कि किसनमलजी लाडनूं से काफी पहले ही उनके पास पहुंच गए। उन्होंने नरेश का नया आदेश पत्र दिखला कर उन सबको वहीं से वापस लौटा दिया। किसनमलजी ने अपने दल के साथ लाडनूं जाकर जयाचार्य के दर्शन करने का निश्चय किया।
नरेश के प्रथम आदेश के समाचार लाडनूं पहुंच चुके थे। वहां के श्रावक समाज में एक अपूर्व हलचल मच गई। सुरक्षा की व्यवस्था के लिए विचार विमर्श हुआ। दुलिचंदजी दुगड़ ने उस व्यवस्था का भार अपने ऊपर लिया। जयाचार्य को वे सुरक्षा की दृष्टि से विराजने के लिए अपनी हवेली में ले गए। आचार्यश्री अनाकुल और अविचल थे। स्थिति का सामना करने के उनके अपने सात्त्विक उपाय थे। श्रावकों को भी उन्होंने विक्षुब्ध न होने को कहा, परंतु स्थितियों के दबाव का सामना वे भिन्न प्रकार से करने के अभ्यस्त थे। दोनों ने अपने-अपने प्रकार की पूरी तैयारी कर ली। हवेली की ओर जाने वाले सभी मार्गों की पूरी मोर्चाबंदी के साथ लोगों की टोलियां एकत्रित हो गईं। स्थानीय मोहिल राजपूतों का भी सहयोग लिया गया। उनमें अनेक तो दुलिचंदजी के मित्र थे। हवेली के दरवाजे पर वे प्रत्येक परिस्थिति का सामना करने के लिए उद्यत थे। दुलिचंदजी की अपनी टोली मकान के अंदर जयाचार्य के आस-पास थी। उन सब का निश्चय था कि हमारे शरीर में प्राण रहेंगे तब तक जयाचार्य का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकेगा।
किसनमलजी अपने दल के साथ लाडनूं पहुंचे। लोगों ने प्रतिरोध की तैयारी की। किसनमलजी भंडारी ने आगे बढ़कर अपना परिचय दिया। उससे सभी लोग पूर्णतः आश्वस्त हो गए। किसनमलजी ने जयाचार्य के दर्शन किए। उन्होंने जोधपुर में घटित घटना चक्र के विषय में पूरी अवगति प्रदान की। बाहर एकत्रित हुई जनता को भी सारी स्थिति बतलाई गई। संकट के बादल छंट जाने से सभी की आकृतियों पर एक सुखद आह्लाद की लहर दौड़ गई।
कुछ दिनों के पश्चात् बहादुरमलजी भंडारी ने लाडनूं में जयाचार्य के दर्शन किए। आचार्यश्री ने उनकी सामयिक सेवा की भूरि-भूरि प्रशंसा की और उसके लिए उन्हें पुरस्कृत करना चाहा। उन्होंने प्रसन्न मुद्रा में उन्हीं से पूछा— "इस सेवा का तुम्हें क्या पारितोषिक दिया जाए? यदि तुम साधु जीवन में होते तो युवाचार्य पद देना भी इसके लिए कम ही होता।"
भंडारीजी ने अत्यंत विनम्रता से निवेदन किया— "साधु जीवन का सामर्थ्य मेरे में नहीं है। इस साधारण सी सेवा के लिए आप इतना फरमा रहे हैं, वह तो आपकी कृपा है।" जयाचार्य ने फिर भी उन्हें कुछ देना चाहा तो उन्होंने आगामी चातुर्मास जोधपुर में कराने की प्रार्थना की। जयाचार्य ने उसे तत्काल स्वीकार कर लिया और फिर आगामी 1921 का चातुर्मास जोधपुर में किया।
*श्रावक बहादुरमलजी भण्डारी को जयाचार्य द्वारा प्रदत्त दूसरे पारितोषिक* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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