28.06.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 28.06.2018
Updated: 02.07.2018

Update

👉 KGF - निर्माण एक नन्हा क़दम स्वच्छता की ओर
👉 राजाजीनगर (बेंगलुरु): महिला मंडल द्वारा कार्यशाला का आयोजन
👉 राजनगर - कन्या मण्डल द्वारा विभिन्न कार्यक्रम

*प्रस्तुति: 🌻संघ संवाद*🌻

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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 28 जून 2018

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Update

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 363* 📝

*निष्कारण उपकारी आचार्य नेमिचन्द्र*
*(सिद्धान्त-चक्रवर्ती)*

दिगंबर परंपरा के ख्याति प्राप्त आचार्य नेमिचंद्र सिद्धांत विषय के पारगामी विद्वान् थे। सैद्धांतिक ज्ञान के आधार पर उन्हें सिद्धांत चक्रवर्ती का अलंकरण प्राप्त था। गोम्मटसार नामक सैद्धांतिक कृति उनकी अत्यधिक प्रसिद्ध रचना है। वे संस्कृत टीकाकार नेमीचंद्र तथा द्रव्य संग्रह के रचयिता नेमीचंद्र से भिन्न थे।

*गुरु-परंपरा*

सिद्धांत चक्रवर्ती नेमीचंद्र मूलसंघ देशीय गण के के विद्वान् थे। उन्होंने अभयनन्दी, वीरनन्दी, इन्द्रनन्दी का अपनी कृतियों में गुरु रूप में स्मरण किया है। लब्धिसार कृति में उन्होंने अपने को वीरनन्दी और इन्द्रनन्दी का वत्स और अभयनन्दी का शिष्य बताया है। डॉ. नेमिचंद्र शास्त्री के अभिमत से अभयनन्दी के वीरनन्दी, इन्द्रनन्दी और नेमीचंद्र ये तीनों शिष्य थे। वय और ज्ञान में लघु होने के कारण नेमीचंद्र ने वीरनन्दी और इन्द्रनन्दी से अध्ययन किया होगा इस अभिमत के आधार पर नेमिचंद्र के अभयनन्दी गुरु के वीरनन्दी और इन्द्रनन्दी उनके विद्या गुरु संभव हैं।

'सत्त्वस्थान' के रचनाकार आचार्य कनकनन्दी का भी गुरु के रूप में आचार्य नेमिचंद्र ने स्मरण किया है। गोम्मटसार कर्मकाण्ड में कनकनन्दी द्वारा रचित 'सत्त्वस्थान' पूर्ण रूप से संकलित है।

*जीवन-वृत्त*

आचार्य नेमिचंद्र दक्षिण के विद्वान् थे। उनके जन्म स्थान, वंश एवं गृहस्थ जीवन संबंधी सामग्री अनुपलब्ध है। मुनि जीवन में उन्होंने सैद्धांतिक ज्ञान गुरुजनों से ग्रहण किया। उनके गुरु आचार्य अभयनन्दी, वीरनन्दी, इंद्रनन्दी, कनकनन्दी सैद्धांतिक विषय के निष्णात विद्वान् थे। नेमीचंद्र ने सिद्धांत रूपी अमृतसमुद्र से चंद्रमा की भांति वीरनन्दी का उद्भव माना है और इन्द्रनन्दी को श्रुतसमुद्र पारगामी जैसे उच्च विशेषण से विशेषित किया है। कनकनन्दी ने भी इंद्रनन्दी के सकल सिद्धांत को ग्रहण किया। इन्द्रनन्दी ने श्रुतावतार ग्रंथ की रचना की। यह ग्रंथ जैनाचार्यों के कालक्रम को जानने में सहायक है।

आचार्य नेमिचंद्र की बौद्धिक क्षमता असामान्य थी। वे स्वयं अपनी बुद्धि का परिचय देते हुए लिखते हैं—

*जह चक्केण य चक्की,*
*अखण्डं साहित्यं अविग्घेण।*
*तह मइचक्केण मया,*
*छक्खण्डं साहित्यं सम्मं।।397।।*
*(गोम्मटसार कर्मकाण्ड)*

चक्रवर्ती जैसे अपने चक्ररत्न से निर्विघ्नतया भारत के छह खंडों को अपने अधीन कर लेता है उसी तरह मैंने बुद्धि चक्र से 'षट्खण्डागम' सिद्धांत को सम्यकक्तया अधीन कर लिया है अर्थात् ग्रहण कर लिया है।

आचार्य नेमिचंद्र षट्खण्डागम, धवला, जयधवला जैसे गंभीर ग्रंथों के अधिकारी विद्वान् थे। इन ग्रंथ सूत्रों की जो व्याख्याएं उन्होंने प्रस्तुत कीं वे उत्तरवर्ती विद्वानों के लिए आधारभूत बनीं।

*निष्कारण उपकारी आचार्य नेमिचन्द्र (सिद्धान्त-चक्रवर्ती) के प्रेरणादायी जीवन-वृत्त* के बारे में आगे और पढ़ेंगे व प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 17* 📜

*बहादुरमलजी भण्डारी*

*दूसरा पारितोषिक*

संवत 1924 की घटना है। जयाचार्य लाडनूं में विराजमान थे। वहां सरावगी जाति कि एक कन्या 'भूरां' दीक्षित होना चाहती थी। उसकी सगाई कर दी गई थी, फिर भी संसार के बंधनों में पढ़ना उसे पसंद नहीं था। कन्या बुद्धिमती और विवेकशीला थी। माता-पिता के सम्मुख उसने अपनी भावना रखी। भाव प्राबल्य की निरख-परख के पश्चात् वे उसे दीक्षा की अनुमति देने को तैयार हो गए। भावी ससुराल वालों को पता चला तो उन्होंने उसका विरोध किया। कन्या के न मानने पर वे जोधपुर के राज्याधिकारियों तक मामला ले गए। उनकी प्रार्थना थी कि यह दीक्षा नहीं होनी चाहिए। देशी रियासतों में उस समय ब्रिटिश शासन की ओर से 'रेजिडेंट' रहा करते थे। उन तक भी बात पहुंचाई गई।

बहादुरमलजी भंडारी को पता लगा तो उन्होंने 'रेजिडेंट' को वास्तविकता से परिचित कराना उपयुक्त समझा। वे उनसे मिले। बातचीत के सिलसिले में उन्होंने कहा— "दीक्षा के लिए किसी को विवश नहीं किया जाता। यह तो व्यक्ति की भावना पर ही निर्भर है कि वह अपने जीवन के लिए कौन सा मार्ग चुनता है। जिस प्रकार व्यक्ति को दीक्षा के लिए विवश नहीं किया जाना चाहिए, उसी तरह से विवाह के लिए भी विवश नहीं किया जाना चाहिए। दोनों में से अपने लिए चुनाव करने का अधिकार अंततः व्यक्ति को ही होना चाहिए।" 'रेजिडेंट' को भंडारीजी का तर्क उपयुक्त लगा। राज्य सरकार ने भी उसे स्वीकार किया। उसी आधार पर दीक्षार्थिनी की भावना का परीक्षण करने के लिए एक पर्यवेक्षक दल लाडनूं भेजा गया।

दल के सदस्य दीक्षार्थिनी से मिले और विविध प्रश्नों के माध्यम से उसकी मानसिकता को परखने का प्रयास करने लगे। उनके मुख्य प्रश्न थे— "साध्वी बनने के लिए तुम्हारे पर कौन दबाव डाल रहा है? क्या घर में तुम्हें कोई कष्ट है? क्या तुमने अपने विवाहित सहेलियों के अनुभवों से लाभ नहीं उठाया आदि।" यद्यपि 'भूरां' एक बालिका ही थी। बहुत पढ़ी-लिखी भी नहीं थी। फिर भी उसने प्रत्येक प्रश्न का समुचित उत्तर दिया। दल के नेता ने वार्तालाप के अंतिम दौर में बालिका को जो सुझाव दिया उसके उत्तर में तो उसने पूरे दल को ही असमंजसता के घेरे में खड़ा कर दिया। सुझाव था— "तुम्हें अपना विचार बदल लेना चाहिए, ताकि साध्वी न बनकर विवाहित जीवन में प्रवेश कर सको।" बालिका ने कहा— "मैं अपना विचार बदल सकती हूं और आपका सुझाव मान सकती हूं, परंतु एक शर्त है कि आप यह दायित्व लें कि मैं अपने जीवनकाल में विधवा नहीं होऊंगी।" बालिका के उक्त कथन ने सब को अवाक् कर दिया। एक क्षण ठहरकर दल के नेता ने कहा— "यह दायित्व कोई कैसे ले सकता है?" बालिका ने भी तब कहा— "इसीलिए तो मैं अपना विचार नहीं बदल रही हूं कि कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे का दायित्व लेने में समर्थ नहीं है।" बालिका के निर्भीक और तर्कसंगत उत्तरों से पर्यवेक्षक दल बहुत प्रभावित हुआ। उसने सरकार को जो प्रतिवेदन दिया उसमें उस दीक्षा को सर्वथा आपत्ति रहित बतलाया।

जयाचार्य ने संवत् 1924 फाल्गुन कृष्णा 6 को भूरांजी को दीक्षा प्रदान कर दी और लाडनूं से विहार कर बिदासर पधार गए। वहां किसनमलजी भंडारी ने दर्शन किए। आचार्यश्री ने उनके पिता बहादुरमलजी के उक्त दीक्षा विषयक प्रयत्नों की प्रशंसा की। इस बार भी उन्हें पुरस्कृत करना चाहा। किसनमलजी ने कहा— "शासन का कार्य हमारा अपना कार्य है, फिर भी आप पिताजी को पारितोषिक प्रदान करना चाहते हैं तो मेरी प्रार्थना है कि संवत् 1925 का आगामी चातुर्मासिक प्रवास जोधपुर में करने की कृपा करें।" जयाचार्य ने उसी समय प्रार्थना को स्विकार कर लिया। भंडारीजी पांच वर्षों में दो बार पुरस्कृत किए गए और जोधपुर को अनायास ही दो चातुर्मास प्राप्त हो गए।

*श्रावक बहादुरमलजी भंडारी में क्षायक सम्यक्त्व के लक्षणों को परिलक्षित करने वाली एक घटना* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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💧 ❄ *अणुव्रत* ❄ 💧

💎 *संपादक* 💎
*श्री अशोक संचेती*

💠 *जून अंक* 💠

🔮 पढिये 🔮

*कथासुख*
स्तम्भ के अंतर्गत
जीवन की सच्चाइयों
को
उजागर करती
एक विचारोत्तेजक कहानी
🌼
*सुखी कौन?*
🌼
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🗯 प्रेषक 🗯
*अणुव्रत सोशल मीडिया*
🗯 संप्रसारक 🗯
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🔰 *उत्तर हावड़ा - संथारा सानन्द सम्पन्न* 🔰
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🌀 उत्तर हावड़ा प्रवासी सरदारशहर निवासी *श्रीमती केसर देवी चिंडालिया धर्मपत्नी स्वर्गीय चंदन मल जी चिंडालिया* के *तीन दिवसीय संलेखना व 20 दिन का तीविहार संथारा* आज दिनांक 28 जून को सुबह 08:36 बजे *सीज* गया है। *बैंकुंठी यात्रा* सायं 04:30 बजे तेरापंथ सभागार 64, सुबरबन पार्क रोड हावड़ा से प्रारंभ होकर बांधाघाट जाएगी।

❇ दिवंगत आत्मा के प्रति *संघ संवाद परिवार* कि और से *हार्दिक श्रद्धांजलि* एवं *उत्तरोत्तर आध्यात्मिक विकास* एवं *चिर लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति* की मंगलकामना।

प्रस्तुति: 🙏 *संघ संवाद* 🙏

News in Hindi

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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:

*एकाग्रता से शक्ति का विकास: वीडियो श्रंखला २*

👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*

*- Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

संप्रेषक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

👉 राजाजीनगर (बेंगलुरु): महिला मंडल द्वारा कार्यशाला का आयोजन
*प्रस्तुति: 🌻संघ संवाद*🌻

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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए

🌻 *संघ संवाद* 🌻

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