09.07.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 09.07.2018
Updated: 10.07.2018

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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 9 जुलाई 2018

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

News in Hindi

👉 *पूज्यवर ने की एक और मुमुक्ष के समणी दीक्षा की घोषणा*

आज प्रात: के मंगल प्रवचन के दौरान *परम पावन आचार्यप्रवर* ने *मुमुक्षु प्रियंका* को *11 नवम्बर 2018* को *चेन्नई* में आयोजित *"दीक्षा समारोह"* में *समणी दीक्षा देने की घोषणा* की।

दिनांक: 09/07/2018

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Video

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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 25* 📜

*तनसुखदासजी गोलछा*

*ग्रंथ-प्रेरक पत्रिका*

मनुष्य के लिए जब एक मार्ग अवरुद्ध हो जाता है तब उसकी उद्दाम भावना अवश्य ही कोई दूसरा मार्ग खोज निकालती है। कालूरामजी की भावना ने भी ऐसा ही किया। जयाचार्य के अगाध आगम ज्ञान का लाभ उठाने के लिए साक्षात् दर्शन का मार्ग अवरुद्ध हो गया तब उन्हें सहसा ही एक दूसरा मार्ग दिखाई दिया। उन्होंने सोचा कि क्यों नहीं अपनी जिज्ञासाओं को लिखित रूप में भेजकर जयाचार्य से उनके उत्तर प्राप्त किए जाएं।

यति गोपीचंदजी के द्वारा उन्होंने अपनी जिज्ञासाओं के अनुरूप एक पद्यात्मक प्रश्नपत्रिका तैयार करवाई। तिरपन पद्य वाली वह पत्रिका संवत् 1933 आश्विन शुक्ल पक्ष में अमीरगंज से लाडनूं श्रावक संघ के नाम भेजी गई और जयाचार्य से उत्तर प्राप्त कर भेजने का अनुरोध किया गया।

जयाचार्य उस समय 73 वर्ष के हो चुके थे। साहित्य सर्जन से प्रायः विरक्त होकर अपना अधिकांश समय स्वाध्याय, जप और ध्यान में ही लगाने लगे थे। जब उन्होंने उक्त प्रश्नपत्रिका को पढ़ा तो उनका विश्रांत साहित्यकार पुनः जाग उठा। प्रश्न 53 पद्यों में थे तो उत्तर 1702 पद्यों में दिए गए। सहज ही 'प्रश्नोत्तर-तत्त्वबोध' नामक ग्रंथ तैयार हो गया। यह सारा कार्य उन्होंने अपने स्वाध्याय और ध्यान के क्रम को यथावत् चालू रखते हुए साढे चार महीनों में संपन्न कर दिया। श्रावकों ने वह ग्रंथ कंठस्थ किया और लिखकर अजीमगंज में कालूरामजी को भेज दिया। उनकी पत्रिका एक पूरे ग्रंथ निर्माण की प्रेरक बन गई। यह देखकर श्रीमालजी अवश्य ही गदगद हुए होंगे।

जयाचार्य ने कालूरामजी श्रीमाल की प्रश्नपत्रिका से प्रेरित होकर उक्त ग्रंथ लिखा था, यह बात तो काफी प्रसिद्ध है, परंतु इस बात को कोई विरल व्यक्ति ही जानता होगा कि कालूरामजी को प्रभावित करने में तनसुखदासजी गोलेछा का संपर्क ही मूल हेतु बना था।

*बिदासर के सुप्रसिद्ध श्रावकों में से एक नगराज जी बैंगाणी के प्रेरणादायी जीवन-वृत्त* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 371* 📝

*जग-वत्सल आचार्य जिनेश्वर*
*आचार्य बुद्धिसागर*

*साहित्य*

जिनेश्वरसूरि एवं बुद्धिसागरसूरि दोनों रचनाकार थे। जिनेश्वरसूरि ने कथात्मक, विवरणात्मक एवं प्रमाण विषयक ग्रंथों की रचना की। बुद्धिसागरसूरि ने व्याकरण ग्रंथ का निर्माण किया। युगल बंधुओं के ग्रंथों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है—

कथानक कोष, पंचलिंगी प्रकरण, षट्स्थान प्रकरण (छट्ठाण पयरण), प्रमालक्ष्मवृत्ति, अष्टप्रकरणवृत्ति, लीलावती कथा, चैत्यवंदन टीका आदि ग्रंथों की रचना जिनेश्वरसूरि की है।

*(1)* कथानक कोष की रचना डीडुआणक (डीडवाना) ग्राम में हुई है। यह प्राकृत रचना है। इसमें उपदेशात्मक 40 कथाएं हैं। इन कथाओं में उनकी प्रखर बुद्धि के दर्शन होते हैं।

*(2)* पंचलिंगी प्रकरण में सम्यक्त्व के लक्षणों का वर्णन है। यह एक सैद्धांतिक कृति है। इसकी 101 गाथा हैं।

*(3)* षट्स्थान प्रकरण इसके 104 पद्य हैं। यह ग्रंथ छह स्थानकों में विभाजित है। इन स्थानकों में श्रावक के गुणों का वर्णन है। यह एक सैद्धांतिक कृति है। इस ग्रंथ पर अभयदेवसूरि ने 1638 श्लोक परिमाण भाष्य का निर्माण किया एवं थाराप्रद गच्छीय शांतिसूरि ने टीका रचना की।

*(4)* प्रमालक्ष्मवृत्ति इस ग्रंथ का चार हजार पद्य परिमाण है। इस कृति के मूल पद्य 405 हैं। यह प्रमाण विषयक प्रशस्त रचना है। इसमें जिनेश्वरसूरि की दार्शनिक प्रतिभा का परिचय मिलता है।

*(5, 6)* अष्टप्रकरणवृत्ति एवं चैत्य वंदन टीका इन दोनों की रचना जवालिपुर (जालौर) में हुई। अष्टप्रकरण वृत्ति हरिभद्रसूरि कृत अष्टप्रकरण की व्याख्या है। इसे हरिभद्रीय अष्टप्रकरण वृत्ति भी कहते हैं। इस कृति का रचनाकाल विक्रम संवत् 1080 है।

*(7)* लीलावती कथा इस कथा का निर्माण आशापल्ली में विक्रम संवत् 1082 से 85 तक में हुआ है ।यह प्राकृत पद्यमयी रचना है। इस कथा का पद लालित्य आकर्षक है। श्लेषादि विविधालंकारों से मंडित प्रस्तुत लीलावती (लीलावईकहा) की रचना चैत्यवंदन टीका से पहले की है। मूल रूप में यह कथा अनुपलब्ध है। जिनेश्वरसूरि द्वारा इस कथा का सार रूप संस्कृत भाषा में निबद्ध है।

*समय-संकेत*

जिनेश्वरसूरि रचित अष्टप्रकरणवृत्ति की रचना का समय वीर निर्वाण 1550 (विक्रम संवत् 1080) और लीलावती कथा की रचना वीर निर्वाण 1552 से 1555 (विक्रम संवत् 1082 से 1085) तक बताया गया है। पंचलिंगी प्रकरण का निर्माण वीर निर्वाण 1558 (विक्रम संवत् 1088) एवं कथाकोष का निर्माण वीर निर्वाण 1578 (विक्रम संवत् 1108) में हुआ है। बुद्धिसागरसूरि ने भी व्याकरण की रचना वीर निर्वाण 1550 (विक्रम संवत् 1080) में की थी। इन ग्रंथों में प्राप्त संवत् समय के आधार पर स्पष्ट है जगवत्सल जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि वीर निर्वाण 16वीं (विक्रम की 11वीं) शताब्दी के विद्वान् थे।

*आस्था-आलम्बन आचार्य अभयदेव (नवांगी टीकाकार) के प्रभावक चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:

*बाहर उजला भीतर मैला: वीडियो श्रंखला ४*

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*- Preksha Foundation*
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संप्रेषक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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