News in Hindi
👉 शाहीबाग, अहमदाबाद: “जैन संस्कार विधि” से “सामूहिक जन्मोत्सव” का आयोजन
👉 मुम्बई - मेधावी छात्र सम्मान समारोह का आयोजन
👉 लुधियाना - भक्ताम्बर पाठ व करें स्वंय का आध्यात्मिक आरोहण कार्यशाला
👉 पर्वत पाटिया, सूरत - करें लक्ष्य का निर्धारण कार्यशाला का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
⛩ *चेन्नई* (माधावरम): *'संस्था शिरोमणि' - जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा* के तत्वावधान में आयोजित त्रिदिवसीय *"तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन"- 2018* का शुभारंभ...
⛲ *परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी* प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए....
💎 *असाधारण साध्वीप्रमुखाजी* द्वारा मंगल उद्बोधन....
🛡 *मुख्यमुनिश्री* द्वारा संबोधन.....
💠 *महासभा के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनिश्री विश्रुतकुमारजी* द्वारा मंगल प्रेरणा.....
📕 *महातपस्वी के श्रीचरणों* में लोकार्पित महासभा की अद्वितीय कृति *तेरापंथी सभा संचालन मार्गदर्शिका तथा कार्यवृत्त पुस्तिका*
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 400* 📝
*वादकुशल आचार्य वादिदेव*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
मुनिचंद्रसूरि के स्वर्गवास के बाद वादिदेवसूरि मारवाड़ की तरफ गए। विद्वान् देवबोध द्वारा वादिदेवसूरि की प्रशंसा सुनकर सपादलक्ष (साम्भर) के राजा ने उनका स्वागत किया।
इस समय पाटण नरेश सिद्धराज ने सपादलक्ष पर आक्रमण किया और चारों ओर से नरेश को घेर लिया, परंतु नरेश को जब यह ज्ञात हुआ कि देवसूरि यहीं विराजमान हैं, उसने सोचा 'मध्यस्थितेऽत्र तन्मित्रे दुर्गं लातुं न शक्यते।' मित्र देवसूरि के यहां रहते विजय पाना कठिन है। यह सोचकर सिद्धराज जयसिंह ने चुपचाप अपना घेरा उठा लिया तथा अपने देश की ओर प्रस्थान किया। संतजनों का प्रभाव अद्वितीय होता है। पाटण पहुंचकर नरेश सिद्धराज जयसिंह ने देवसूरि को अपने देश में बुलाया। उसके बाद पुनः आक्रमण कर पाटण नृपति ने सपादलक्ष (सांभर) के किले को हस्तगत किया। सपादलक्ष (सांभर) यात्रा के बाद देवसूरि का प्रथम चातुर्मास पाटण में और द्वितीय चातुर्मास कर्णावती में हुआ। दिगंबर विद्वान् कुमुदचंद्र का पावस-प्रवास भी वहीं था। इस प्रवास के बाद दोनों पाटण आए। पाटण के अधिपति सिद्धराज जयसिंह की अध्यक्षता में वीर निर्वाण 1651 (विक्रम संवत् 1881, ईस्वी सन् 1124) में वैशाख शुक्ला पूर्णिमा के दिन देवसूरि का दिगंबर विद्वान् कुमुदचंद्र के साथ शास्त्रार्थ हुआ। केशव आदि तीन विद्वान् एवं कई नागरिकजन विद्वान् कुमुदचंद्र के पक्ष का तथा भाभू (भानू) और महाकवि श्रीपाल आचार्य देवसूरि के पक्ष का समर्थन कर रहे थे।
*'तस्मिन् महर्षिरुत्साहः सागरश्च कलानिधिः।*
*प्रज्ञाभिरामो रामश्च नृपस्यैते सभासदः।।210।।*
*(प्रभावक चरित्र, पृष्ठ 179)*
महर्षि' उत्साह' कलानिधि 'सागर' और प्रज्ञाभिराम 'राम' ये तीन विद्वान् राजा के प्रमुख सभासद थे।
कोषाध्यक्ष गाङ्गिल कुमुदचंद्र के पक्ष में था।
पाटण के श्रीसंपन्न श्रेष्ठ थाहड़ और नागदेव ये दोनों देवसूरि के पक्ष में थे। दोनों ने देवसूरि से निवेदन किया "आर्यदेव! शास्त्रार्थ में विजय हेतु हमारे द्वारा अर्जित धन का यथेष्ठ उपयोग किया जा सकता है।"
इन दोनों की भावपूरित भावना सुनकर देवसूरि बोले "धर्मानुरागी आर्यजनों! शास्त्रार्थ में धनबल से अधिक प्रज्ञाबल आवश्यक है। देव, गुरु की कृपा से सब ठीक होगा।"
*इस शास्त्रार्थ में स्वीकृत प्रतिज्ञा-पत्र क्या था...? इसमें किसकी विजय हुई...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 54* 📜
*शोभाचंदजी बैंगानी (द्वितीय)*
*साधर्मिक वात्सल्य*
साधर्मिकों के प्रति उनके मन में बहुत बड़ा स्थान था। समाज के साधारण से साधारण व्यक्ति को भी वे अपने समान मानकर चलते थे। उनका परिचय समाज के प्रमुखों से तो था ही, साधारणों की भी उन्हें अच्छी जानकारी थी। आचार्यश्री के चातुर्मास या मर्यादा महोत्सव बीदासर में होते उस समय मेवाड़, मारवाड़, गुजरात और महाराष्ट्र आदि दूरस्थ क्षेत्रों से आए साधर्मिकों को कम से कम एक बार तो भोजन के लिए वे अपने घर पर अवश्य निमंत्रित करते। बहुत बार वे उनके साथ बैठकर ही भोजन करते। कई बार अपने हाथ से परोस कर उन्हें भोजन कराते। इतने मान्य और गौरवशाली व्यक्ति का अपने साथ समानता का व्यवहार देखकर प्रत्येक का मन गदगद हो जाता। उनका वात्सल्य सभी आगंतुकों के मन में उनके प्रति अपार आदर भाव उत्पन्न कर देता।
*न्यायालय में*
एक बार उन्हें सुजानगढ़ के न्यायालय में साक्षी के लिए जाना पड़ा। वे कहीं अन्यत्र जाना कम ही पसंद किया करते थे, अतः साक्षी में अपना नाम देने की उन्होंने मना ही कर दी थी, फिर भी अपना कार्य बना लेने के लोभ से एक व्यक्ति ने उनका नाम साक्षी में लिखा था। वे वहां गए तब कुछ लोग तो बीदासर से ही उनके साथ थे, कुछ सुजानगढ़ के हो गए। तीस-चालीस साहूकारों को एक साथ न्यायालय में आते देखा तो नाजिम भी चकराया। सम्मान पूर्वक उन्हें आगे निमंत्रित किया और पूछा कि आज आप लोग इतने साहूकार मिलकर यहां कैसे पधारे हैं? उनमें से एक व्यक्ति ने परिचय कराते हुए कहा— "सेठ साहब साक्षी देने पधारे हैं, अतः हम लोग तो उनके सम्मान में साथ आए हैं।" नाजिम ने नम्रतापूर्वक सेठ शोभाचंदजी से कहा— "मुझे पहले पता होता तो आपको यहां आने का कष्ट नहीं देता। मैं स्वयं वहां आकर साक्षी ले लेता।" सेठजी ने कहा— "कोई बात नहीं नाजिम साहब! इसी बहाने आपके न्यायालय को देखने का अवसर मिल गया।" इसके पश्चात् उन्होंने न्यायाधीश के सम्मुख साक्षी दी और वापस बिदासर आ गए।
*श्रावक शोभाचंदजी को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से यति केवलचंदजी की करतूत* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
⛩ *चेन्नई* (माधावरम): *'संस्था शिरोमणि' - जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा* के तत्वावधान में होने वाले *"तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन"- 2018* के लिए *रजिस्ट्रेशन काउण्टर का शुभारम्भ..*
👉 सम्मेलन से पूर्व..
💎 *महासभा के प्रबन्ध मण्डल, मार्गदर्शक, परामर्शक व ट्रस्ट बोर्ड की बैठक..*
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