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⛩ *चेन्नई* (माधावरम): *पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ प्रबुद्ध जन..*
💠 *तमिलनाडु राज्य के पूर्व हाउसिंग बोर्ड मंत्री विधायक श्री के. पिचण्डी*
💠 *ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी में जनरल सेक्रेटरी श्री सी.डी. मेयप्पन*
💠 *लाइंस इंटरनेशनल में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉ.श्री नरसिम्हन*
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👉 बायतु - अ.भा.ते.यु.प कार्यकारिणी सदस्यों द्वारा संगठन यात्रा
👉 राजगढ़ - अच्छा मानव कैसे बने कार्यशाला का आयोजन
👉 टिटिलागढ - सामुहिक तप अभिनन्दन
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 27 अगस्त 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
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माधावरम, चेन्नई (तमिलनाडु): दो धाराओं का आध्यात्मिक मिलन.....
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🔰 *निमंत्रण* 🔰
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*आइये!*
*सपरिवार आमंत्रण*
*श्रद्धा-भक्ति अर्पण*
*करने चलें।*
*अपनी यात्रा सुनिश्चित करें।*
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💢 *216 वां भिक्षु चरमोत्सव*💢
💥 *विराट भिक्षु भक्ति संध्या*💥
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*गूजेंगी स्वर लहरी*
*झूमेंगे भिक्षु भक्त*
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*दिनांक 22 सितम्बर 2018, सिरियारी*
♨ *आयोजक-निमंत्रक:- आचार्य श्री भिक्षु समाधि स्थल संस्थान, सिरियारी*♨
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 410* 📝
*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र*
*राजवंश*
गतांक से आगे...
सिद्धराज जयसिंह का परामर्श पाते ही आचार्य हेमचंद्र ने स्वयं को इस कार्य के लिए नियोजित किया। हेमचंद्राचार्य के कथन पर सिद्धराज जयसिंह ने काश्मीर प्रदेशांतर्गत प्रवर प्रदेश के भारती कोष से आठ विशाल व्याकरणों की प्रतियां मंगवाईं। प्रवर प्रदेश से व्याकरण ग्रंथों के साथ उत्साह नाम के पंडित को भेजा गया था। व्याकरण ग्रंथों का गंभीर अध्ययन कर हेमचंद्राचार्य ने पञ्चाङ्गपूर्ण उत्तम व्याकरण ग्रंथ की रचना की। व्याकरण ग्रंथ का नाम 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' रखा गया जो नरेश सिद्धराज और आचार्य हेमचंद्र के सम्मिलित प्रयत्न का सूचक बना।
सर्वांग परिपूर्ण सिद्धहेमव्याकरण को पाकर गुजरात का साहित्य चमक उठा। हाथी के हौदे पर रखकर उस व्याकरण ग्रंथ का राज्य में प्रवेश कराया गया। वैराकरणों ने इस व्याकरण का सम्यक् प्रकार से अवलोकन कर इसे प्रमाणित किया। विद्वानों और राजपुरोहितों ने तीन वर्ष तक इसका वाचन किया। तीन सौ लिपिकों ने बैठकर उसकी प्रतिलिपियां तैयार कीं। काश्मीर के पुस्तकालयों में इस व्याकरण ग्रंथ को सम्मान प्राप्त हुआ। पाटण नरेश द्वारा बीस प्रतियां काश्मीर में प्रेषित की गई थीं।
अंग, बंग, कलिंग, लाट, कर्णाटक, कुंकुण, महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, वत्स, कच्छ, मालव, सिंधु, सौवीर, नेपाल, पारस, मुरुण्ड, हरिद्वार, काशी, चेदि, गया, कुरुक्षेत्र, गौड़, कान्यकुब्ज, श्रीकामरूप, सपादलक्ष, जालंधर, सिंहल, चौल, कौशिक आदि अनेक नगरों में इस व्याकरण का प्रचार हुआ। ये प्राचीनकाल के सुप्रसिद्ध नगर थे।
गुजरात के पाठ्यक्रम में भी इस व्याकरण की स्थापना हुई और उसके अध्यापन के लिए विशेष अध्यापकों की नियुक्तियां की गईं। उनमें प्रमुख अध्यापक कायस्थ कुल का कवि चक्रवर्ती शब्दानुशासन-शासनाम्बुधिपारद्रष्टा काकल नामक विद्वान् था। वह आठ सुप्रसिद्ध व्याकरण ग्रंथों का विशिष्ट ज्ञाता था। छात्रों को काकल सम्यक् प्रकार से व्याकरण ग्रंथ पढ़ाता और प्रतिमास ज्ञानपञ्चमी के दिन उनकी परीक्षा भी लेता था। परीक्षोत्तीर्ण छात्रों को राज्य की ओर से कनक-भूषण, कङ्कण, रेशमी वस्त्र, सुखासन, आतपत्र आदि का पुरस्कार दिया जाता था।
हेमचंद्र की प्रवचन शैली प्रभावक थी। वे चतुर्मुख जिनालय में नेमिनाथ चरित पर व्याख्यान करते। उस समय उनके व्याख्यान को सुनने के लिए जैन, जैनेतर सभी प्रकार के लोगों की उपस्थिति रहती थी। पाण्डव प्रकरण पर ब्राह्मण वर्ग में चर्चा चली। हेमचंद्र ने सिद्धराज जयसिंह के सम्मुख ब्राह्मणों के प्रश्नों का तर्कयुक्त समाधान कर दिया।
*आचार्य हेमचंद्र की व्यवहार कुशलता* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 64* 📜
*भीमराजजी पारख*
*नाड़ी-वेत्ता*
भीमराजजी पारख एक अच्छे नाड़ी-वेत्ता थे। नाड़ी देखकर वे जितना बता देते थे, अनेक वैद्य पूरी पूछताछ कर लेने के पश्चात् भी उतना नहीं बता पाते थे। यही कारण था कि अन्य अनेक वैद्यों को दिखाने पर भी जब रोग या रोगी के विषय में मन निर्भ्रांत नहीं हो पाता था, तब उसे भीमराजजी को ही दिखाया जाता था। वे जो कुछ कहते, बहुधा ठीक निकला करता था, अतः उन पर सभी का विश्वास जमा हुआ था।
संवत् 1938 में जयाचार्य का अंतिम चातुर्मास जयपुर में था। वे उन दिनों अत्यंत रुग्ण थे। दूर-दूर से लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए आ रहे थे। राजगढ़ में भीमराजजी भी दर्शनेच्छा से वहां पहुंचे। एक दिन जयाचार्य की नाड़ी तथा आकृति देखकर उन्होंने युवाचार्य मघवागणी से प्रार्थना की कि 'संथारा' करवाना हो तो अब अवसर आ गया है। उनके इस कथन पर ध्यान देकर जयाचार्य को उसी समय मध्याह्न में संथारा करवा दिया गया। वह उसी दिन सांय समय संपूर्ण हो गया। मघवागणी ने श्ररावक भीमराजजी के नाड़ी-ज्ञान का उल्लेख करते हुए जय-सुजस (65/दोहा 4-6) में उक्त घटना के विषय में अग्रोक्त पद्य दिए हैं—
"शहर राजगढ़ नो तिहां, श्रावक सखर सुजोय।
भीमराज नामे भलो, अवसरविदु अवलोय।।
सेवा कारण आवियो, पारख जाति पिछाण।
नाड़ी तणी पारख तसु, तनु चेष्टा पिण जाण।।
नाड़ी देख करी अर्ज तिण, अवसर एह उदार।
जावजीव कराविये, संथारो श्रीकार।।"
*उभय पक्ष सम्मत*
पारखजी एक निपुण गृहस्थ और व्यवहार कुशल व्यक्ति थे। दूसरों का विश्वास जीत लेने में वे बड़े सिद्धहस्त थे। उन्होंने मध्यस्थ या पंच होकर अनेक परिवारों के झगड़े सलटाए थे। वे जयपुर गए उन दिनों वहां के बांठिया परिवार में संपत्ति के बंटवारे को लेकर दो भाइयों में परस्पर जोरों से झगड़ा चल रहा था। अनेक व्यक्ति प्रयास कर चुके थे, परंतु झगड़ा मिट नहीं पाया। भीमराजजी का वहां ननिहाल था, वे यही चाह रखते थे कि किसी भी तरह यह झगड़ा शांत हो। आखिर लोगों के कहने सुनने पर दोनों पक्ष भीमराजजी को मध्यस्थ मान लेने को तैयार हो गए। उन्होंने अपना निर्णय देने से पूर्व दोनों पक्षों से यह लिखवा लिया था कि वे जो भी निर्णय देंगे वह उन्हें पूर्णतः मान्य होगा। उसके बाद उन्होंने संपत्ति का इस प्रकार बंटवारा किया कि जिससे दोनों भाई सहमत हुए ही, साथ ही झगड़ा और मनमुटाव भी समाप्त हो गया।
*मृत्यु से आंख-मिचौनी*
अपने अंतिम वर्षों में वे क्रमशः अधिकाधिक निवृत्त हो गए। तख्त पर सोते, प्रतिदिन आठ-दस सामायिक कर लेते। एक रुपए से अधिक पैसा अपने पास नहीं रखते। वह पूरा होने पर ही अपने पुत्र से दूसरा रुपया लेते। विभिन्न प्रत्याख्यान भी रखते।
मृत्यु से छह मास पूर्व वे रुग्ण हुए। कुछ दिनों तक रोग का सामना करके वे एकाएक मूर्छित हो गए। शरीर के हर अवयव का स्पंदन समाप्त हो गया। जानकारों ने देखभाल कर उन्हें मृत समझ लिया और तदनुकूल सारी तैयारी कर ली। यहां तक कि बैंकुठी भी बना ली गई। थोड़ी देर पश्चात् लोगों ने साश्चर्य देखा कि उनके शरीर में उन्हें हलचल पैदा हो गई। सहसा उन्होंने आंखें खोल दी और उसी प्रकार से उठ बैठे जैसे कोई सो कर उठा हो। मृत्यु के साथ आंख-मिचौनी खेल कर वे पुनः लौट आए। पारिवारिकों द्वारा की गई शव यात्रा की सारी तैयारी धरी रह गई। उन्होंने अपने चारों ओर के वातावरण को देख कर कहा— "अभी मेरा समय आया नहीं है।"
छह महीने के पश्चात् वे पुनः रुग्ण हुए। इस बार मृत्यु से तीन-चार दिन पूर्व ही उन्होंने कहना प्रारंभ कर दिया कि अब मेरे जाने का समय आ गया है। वैसा ही हुआ। वे उस रोग से पुनः स्वस्थ नहीं हो सके।
*राजलदेसर के श्रावक उदयचंदजी बैद (ताराणी) के प्रेरणादायी जीवन-वृत्त* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
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👉 हैदराबाद - तेरापंथ किशोर मंडल ने केरल में राहत सामग्री भेजी
👉 विजयनगर, बेंगलुरु: मासखमण तप अभिनंदन
👉 विजयवाड़ा - अणुव्रत समिति द्वारा केरल के बाढ़ पीड़ितों की सहायता
👉 राजाराजेश्वरी नगर - तेरापंथ युवक परिषद राजाराजेश्वरी नगर ने किया अन्नदान
👉 भुज - अभातेयुप संगठन यात्रा
👉 रायपुर - मास खमण तप अभिनन्दन
👉 काठमांडू - प्रेक्षाध्यान कार्यशाला का आयोजन
👉 काठमांडू - Personality Development ice breaking program का आयोजन
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल
माधावरम, चेन्नई
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परम पूज्य गुरुदेव
मंगल उद्बोधन
प्रदान करते हुए
📒
आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य
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कार्यक्रम की
मुख्य झलकियां
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दिनांक:
27 अगस्त 2018
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प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल, माधावरम,
चेन्नई.......
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परम पूज्य आचार्य प्रवर
के प्रातःकालीन भ्रमण
के मनमोहक दृश्य....
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दिनांक:
27 अगस्त 2018
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