10.10.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 10.10.2018
Updated: 11.10.2018

Update

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*एक आह्वान अणुव्रतियों के नाम*
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*परम श्रद्धेय अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण के सानिध्य में चेन्नई में आयोजित 69वें अणुव्रत अधिवेशन पर संभागी के रूप में पधारे सभी अणुव्रती कार्यकर्त्ताओं का हार्दिक अभिनंदन।*
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अणुव्रत अनुशास्ता के प्रेरणा पाथेय से सम्प्राप्त *हमारी कार्य-ऊर्जा*
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श्रद्धेय चारित्रआत्माओं के प्रेरक उद्बोधन से प्रेरित *हमारी कार्य-क्षमता*
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अणुव्रत महासमिति के निष्ठाशील पूर्वाध्यक्षों की कसौटी पर कसी गई *हमारी कार्य-शक्ति*
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सभी अणुव्रती कार्यकर्ताओं के हेल-मेल एवं सह-आसन से प्राप्त *हमारी कार्य-पद्धति*
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*इन सबके फलस्वरूप तथा आप सबकी स्नेहिल उपस्थिति एवं सहयोग से यह अधिवेशन एक अविस्मरणीय यादगार के रूप में हम सभी के हृदय में अंकित हो चुका है। अब समय है आगामी वर्ष हेतु लिए गए निर्णयों की क्रियान्विति का। आइये, अपने सार्थक कदम बढ़ाते हैं अहिंसक और नैतिक समाज की संरचना की ओर......*
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आपका सहयात्री,
अशोक संचेती,
अध्यक्ष,
*अणुव्रत महासमिति*

संप्रेषक: *संघ संवाद*

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Video

Source: © Facebook

👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 10 अक्टूबर 2018

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Update

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आचार्य श्री महाश्रमण
प्रवास स्थल
माधावरम, चेन्नई

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परम पूज्य गुरुदेव
मंगल उद्बोधन
प्रदान करते हुए

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आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य

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कार्यक्रम की
मुख्य झलकियां

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दिनांक:
10 अक्टूबर 2018

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प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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Source: © Facebook

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 444* 📝

*महामहिम आचार्य मेरुतुंग*

अंचलगच्छ के आचार्य मेरुतुंगसूरि उच्चकोटि के विद्वान् थे। वे कवि, साहित्यकार एवं मंत्र विद्या के प्रयोक्ता थे। वर्तमान में उनकी अधिक प्रसिद्धि जैन महाकाव्य मेघदूत के रचनाकार के रूप में है।

*गुरु-परंपरा*

मेरुतुंगसूरि की गुरु परंपरा में जयसिंहसूरि, महेंद्रसिंहसूरि, सिंहप्रभसूरि, अजितसिंहसूरि, देवेंद्रसिंहसूरि, धर्मप्रभसूरि, सिंहतिलकसूरि, महेंद्रसूरि आदि आचार्य हुए। मेरुतुंगसूरि के गुरु महेंद्रप्रभसूरि के तीन शिष्य थे। मुनिशेखर, जयशेखर और मेरुतुंग। इन तीनों शिष्यों में मेरुतुंग कनिष्ठ थे।

*जन्म एवं परिवार*

मेरुतुंगसूरि प्राग्वाट् (पोरवाल) थे। उनके पिता का नाम वीरसिंह और माता का नाम नाल्हणदेवी था। मारवाड़ (राजस्थान) के अंतर्गत 'नाणी' ग्राम में उनका जन्म वीर निर्वाण 1873 (विक्रम संवत् 1403) में हुआ। बालक का नाम वस्तिग रखा गया। श्री धर्ममूर्ति पट्टावली के अनुसार मेरुतुंगसूरि का जन्म वीर निर्वाण 1875 (विक्रम संवत् 1405) में बोहरा परिवार में हुआ।

*जीवन-वृत्त*

बालक वस्तिग धार्मिक प्रवृत्ति का था। उसने लघुवय में आचार्य महेंद्रसूरि के पास वीर निर्वाण 1880 (विक्रम संवत् 1410) में दीक्षा ग्रहण की। वस्तिग की उम्र दीक्षा ग्रहण के समय मात्र सात वर्ष की थी। श्री धर्ममूर्ति पट्टावली के अनुसार मेरुतुंगसूरि के दीक्षा वीर निर्वाण 1828 (विक्रम संवत् 1418) में हुई दीक्षा लेने के बाद संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं का एवं सिद्धांत, दर्शन, इतिहास, व्याकरण आदि विविध विषयों का उन्होंने गहन अध्ययन किया। श्री मेरुतुगग वीर निर्वाण 1896 (विक्रम संवत् 1426) में सूरिपद पर एवं वीर निर्वाण 1915 (विक्रम संवत् 1445) में गच्छ के नायक बने।

मेरुतुंगसूरि के जीवन में कई विशेषताएं थीं। वे योग के अभ्यासी थे। वे प्राणायाम आदि यौगिक क्रियाएं करते और नियमित ध्यान करते थे। ग्रीष्मऋतु में धूप में और शीतकाल में ठंडे स्थान पर कायोत्सर्ग करते थे।

वे मंत्रवादी भी थे। उन्होंने कई राजाओं को मंत्र शक्ति से प्रभावित कर प्रतिबोध दिया। वे धर्म प्रचार की दिशा में भी प्रयत्नशील थे। उनका शिष्य परिवार भी विशाल था। गुजरात, महाराष्ट्र, सौराष्ट्र आदि अनेक स्थानों में विहरण कर उन्होंने जैन धर्म का संदेश जनता तक पहुंचाया।

*महामहिम आचार्य मेरुतुंग द्वारा रचित साहित्य एवं उनके आचार्य-काल के समय-संकेत* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 98* 📜

*कालूरामजी जम्मड़*

*तोलियासर से*

जम्मड़ परिवार मूलतः तोलियासर का निवासी था। कालूरामजी के पितामह उम्मेदमलजी वहां खेती तथा लेन-देन का कार्य करते थे। काम बहुत कम था। परिवार के भरण-पोषण योग्य भी कमाई नहीं हो पाती थी। फिर भी परिचित स्थितियों को छोड़कर अपरिचित स्थितियों से जूझने का साहस वे नहीं कर पाए। कालांतर में उनके पुत्र खेतसीदासजी ने वह साहस किया। परंपरागत कार्य को छोड़कर वे संवत् 1896 में सरदारशहर आकर बसे। आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए उन्होंने अनेक प्रयास किए, फिर भी उसमें कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं कर पाए। ज्यों-त्यों परिवार की गाड़ी खींची जाती रही।

*एक व्यंग*

एक बार सरदारशहर में भैरूंदानजी छाजेड़ के यहां 'ओसर' का भोज था। पूरे समाज को निमंत्रित किया गया था। खेतसीदासजी जम्मड़ की पत्नी वहां भोजन करने के लिए गई। उनके वस्त्र बहुत साधारण थे। सुहाग चिन्ह बोर भी कपड़े एवं कांच के मणकों का ही बना हुआ था। स्वर्ण के आभूषणों की तो कोई स्थिति ही नहीं थी। केवल एक बाजूबंद चांदी का था, परंतु वह किसी अन्य से मांग कर बांधा गया था।

स्त्री का अपमान करने में बहुधा स्त्री ही अधिक उतावली होती है। व्यंगबाण भी उसी के अधिक वेधक और तीक्ष्ण होते हैं। एक स्त्री खेतसीदासजी की पत्नी के पास में ही बैठकर भोजन कर रही थी। उसने चांदी का बाजूबंद देखा तो कहने लगी— "तुम यह बाजूबंद किसे दिखा रही हो? अभी तक तुम्हारे पूर्वज तो श्मशान की राख के नीचे दबे पड़े हैं। 'ओसर' करके पहले उनका उद्धार करो। फिर आभूषण पहनना।" खेतसीदासजी की पत्नी के हृदय में बात तीर की तरह चुभ गई। वह उसके बाद एक कौर भी नहीं खा सकीं। वहां से उठकर सीधी घर आई और रोते-रोते अपने अपमान की सारी कथा पति से कही। चुभने वाली बात थी, अतः पति के मन में भी वह बहुत चुभी। आर्थिक स्थिति की विपरीतता के कारण तत्काल तो वे कुछ नहीं कर पाए, परंतु धन कमाने के लिए बंगाल जाने का निर्णय उन्होंने उसी समय कर लिया।

बींजराजजी दुगड़ खेतसीदासजी के परम मित्र थे। वे भी तोलियासर से ही आकर वहां बसे थे। खेतसीदासजी ने अपने मन का निश्चय उनके सम्मुख रखा और उन्हें भी व्यापारार्थ बंगाल चलने के लिए प्रेरित किया। वे तैयार हो गए तब दोनों मित्र संवत् 1908 में वहां से विदा होकर कलकत्ता गए। सरदारशहर के गुलाबचंदजी छाजेड़ और चौथमलजी आंचलिया भी उस यात्रा में उनके साथ थे। चारों ने मिलकर 'मोजी राम खेतसीदास' नाम से कपड़े का व्यापार प्रारंभ किया। उन्होंने उसमें अच्छा लाभ प्राप्त किया।

खेतसीदासजी अपनी पत्नी के अपमान को भूले नहीं थे। कलकत्ता में रहते हुए भी उनके हृदय में व्यंग का वह बाण टीस रहा था। प्रथम यात्रा संपन्न कर जब वे सरदारशहर आए तब सर्वप्रथम उस व्यंग का ही उत्तर दिया। उन्होंने ओसर में चार प्रकार की मिठाइयों का भोज दिया।

*एक योग्य पिता के योग्य पुत्र एवं सर्वमान्य व्यक्ति कालूरामजी जम्मड़ की योग्यताओं* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 *अधिवेशन स्थल - चेन्नई से..*

🎴 *अभातेमम 43 वां राष्ट्रीय महिला अधिवेशन*

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*संकल्प*
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📍 *सान्निध्य - आचार्य श्री महाश्रमण*

📍 *त्रिदिवसीय अधिवेशन के सत्रानुसार कार्यक्रम की विगतवार रिपोर्ट*

दिनांक: 3-4-5 अक्टूबर 2018

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
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News in Hindi

👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ

प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन

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👉 सूरत - पच्चीस बोल प्रतियोगिता का आयोजन
👉 जयपुर शहर - बने नारी अहिंसा की सैनानी विषय पर भाषण प्रतियोगिता का आयोजन
👉 सी- स्कीम जयपुर - भिक्षु साधना केंद्र में मेडिकल कैम्प का आयोजन
👉 चेन्नई - अणुव्रत महासमिति अधिवेशन में बारडोली उत्तम श्रेणी में तृतीय स्थान से सम्मानित
👉 शाहीबाग, अहमदाबाद - बारह व्रत दीक्षा कार्यशाला
👉 कांकरिया, अहमदाबाद - बारह व्रत दीक्षा कार्यशाला
👉 अहमदाबाद - तपस्वी अभिनदंन समारोह
👉 पुणे - बारह व्रत दीक्षा कार्यशाला

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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