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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 129* 📜
*श्रीचंदजी गधैया*
*महान् शासन-सेवी*
श्रीचंदजी एक महान् शासन-सेवी श्रावक थे। शासन के किसी भी कार्य के लिए आवश्यकता होने पर वे आधी रात को भी तैयार रहते थे। यू. पी. (वर्तमान उत्तरप्रदेश) दिल्ली, बड़ौदा आदि में प्रस्तुत 'बाल दीक्षा विरोधी बिल' का सफल विरोध करने में उन्हें अपने साथियों के साथ बहुत दौड़-धूप करनी पड़ी थी।
तेरापंथ के प्रत्येक हित साधन का वे अत्यंत ध्यान रखते। जिस कार्य को करवा पाने की संभावना लगती, उसे वे तत्काल करवा डालते। तेरापंथ के विरुद्ध लिखी गई पुस्तकें जब सरकार द्वारा जप्त की गईं तब उसके साथ ही श्रीचंदजी ने प्रयास किया और जनरल पोस्ट ऑफिस (जी. पी. ओ.) से यह आदेश निकलवाया की तेरापंथ विरोधी कोई भी साहित्य उसके द्वारा नहीं भेजा जा सकेगा।
श्रीचंदजी सबसे आगे होकर कार्य करने वाले व्यक्ति थे। इसलिए अन्य सभी के लिए सहज ही पथ दर्शक के रूप में आदरणीय थे। केसरीचंदजी कोठारी, छोगमलजी चोपड़ा, वृद्धिचंदजी गोठी, रावतमलजी सेठिया आदि ने शासन सेवा का प्रारंभिक पाठ उन्हीं के साथ रहकर पढ़ा था। कार्यकर्ताओं को जुटाने और प्रशिक्षित करने की उनमें अद्वितीय क्षमता थी।
जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा के वे संस्थापक सदस्यों में थे। दीक्षार्थियों को आज्ञा दिलाने में वे निरंतर प्रयासरत रहते। साधर्मिकों के प्रति उनके मन में अपार आदर भाव था। समाज के साधारण से साधारण व्यक्ति को भी वे बहुत सम्मान की दृष्टि से देखते तथा उसे हर संभव सहयोग देने को उद्यत रहते।
*महान् उपासक*
श्रीचंदजी आचार्यों तथा साधु-साध्वियों की उपासना में निरंतर उद्यत रहने वाले व्यक्ति थे। गुरु उपासना में उन जैसे निपुण व्यक्ति विरल ही मिलते हैं। गुरु दर्शन एवं सेवा की रुचि उनमें प्रारंभ से ही उत्कट थी। समय के साथ उसमें और निखार आता गया। वे क्रमशः अधिकाधिक अवसर निकालकर दर्शन सेवा का लाभ लेते रहे। अपने जीवन का अंतिम दशक तो उनका बहुधा सेवा में ही व्यतीत हुआ। उस समय वे प्रायः प्रतिवर्ष नौ-दस महीने सेवा में व्यतीत करने लगे। आचार्यश्री कालूगणी की मेवाड़, मारवाड़, जयपुर तथा हरियाणा आदि यात्राओं में गमन तथा आगमन दोनों अवसरों पर वे आद्योपान्त सेवा में रहे।
एक सच्चे उपासक की तरह श्रीचंदजी की दिनचर्या धर्म बहुल थी। सामायिक, जप तथा ध्यान आदि में वे निरंतर अपना नियत समय लगाया करते। उनके बहुत से प्रत्याख्यान आगार-रहित थे। उन्हें अपने शील तथा संकल्प पर बहुत भारी विश्वास था। उनके मुख से निकला वजन बहुधा सफल होता। एक बार उनकी पत्नी के पेशाब की तकलीफ हो गई। स्थिति यहां तक पहुंच गई कि उन्हें बीकानेर ले जाने की आवश्यकता प्रतीत होने लगी। श्रीचंदजी भेजना नहीं चाहते थे। उन्होंने दृढ़ता पूर्वक कहा— "बीकानेर ले जाने की कोई आवश्यकता नहीं। यह आज ही ठीक हो जाएगी।" वस्तुतः उनके वचन में कार्य किया और उनकी स्थिति उसी समय से सुधरने लग गई। प्रातः तक तो वे बिल्कुल ठीक हो गईं।
*महान् शासन-सेवी... महान् उपासक... आचार्यों के कृपापात्र श्रावक श्रीचंदजी गधैया पर आचार्यों की अतिशय कृपादृष्टि* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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