10.01.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 10.01.2019
Updated: 10.01.2019

Update

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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 167* 📜

*तोलारामजी कोठारी*

*डालगणी का विश्वास*

तोलारामजी को डालगणी और कालूगणी इन दो आचार्यों की मुख्यतः सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ। दोनों ही आचार्यों की उन पर महती कृपा रही। डालगणी सहजतया किसी पर कृपालु कम ही हुआ करते थे, परंतु कोठारीजी ने उनकी दुर्लभ कृपा और विश्वास दोनों प्राप्त किए थे। एक बार डालगणी चूरू में रायचंदजी सुराणा के मकान में विराज रहे थे। गोचरी के समय साध्वियां कोठारीजी के वहां गईं। अन्य भोज्य पदार्थ बहराने के पश्चात् उन्होंने घृत लेने के लिए प्रार्थना की। साध्वियों ने पात्र निकाला और चम्मच से 'बहराने' के लिए कहा। कोठारीजी ने कहा— "चम्मच से टपके गिरने की संभावना रहेगी, अतः भाजन से ही ले लीजिए। आपकी इच्छा से अधिक नहीं डालूंगा।" साध्वियों ने पात्र सामने रख दिया। घृत कुछ पिघला हुआ और कुछ जमा हुआ था, अतः कोठारीजी ज्यों ही बहराने लगे त्यों ही जमे हुए घृत का एक बड़ा सा अंश अचानक पात्र में आ गिरा। तोलारामजी को उससे बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने क्षमा याचना करते हुए कहा— "साध्वीश्री मैंने जानबूझकर ऐसा नहीं किया, भूल से हो गया है।" साध्वियों ने कहा— "यह तो हम जानती हैं, परंतु डालगणी का उपालंभ इससे टलने वाला नहीं लगता।" साध्वियों ने वहां से आकर ज्यों ही डालगणी के सम्मुख गोचरी के पात्र रखे, उन्होंने पूछा— "इतना घृत कैसे ले आईं?" साध्वियों ने डरते-डरते सारी स्थिति बताते हुए कहा— "तोलारामजी के हाथ से गिर गया।" डालगणी ने एक क्षण के लिए कुछ सोचा और फिर फरमाया— "तोलाराम अविवेक से कार्य करने वाला तो नहीं है। अवश्य ही अचानक गिर गया है।" साध्वियां "जान बची तो लाखों पाए" का आनंद मनाती हुईं अपने स्थान पर चली गईं।

मध्याह्न में तोलारामजी सेवा में उपस्थित हुए। वे घृत के विषय में कुछ निवेदन करना ही चाहते थे कि डालगणी ने स्वयं फरमाया— "घृत के विषय में मैंने साध्वियों को कोई उपलंभ नहीं दिया है। मैं जानता हूं कि तुम जानबूझकर वैसा नहीं कर सकते।" डालगणी के उस विश्वास पर तोलारामजी उनके चरणों में झुक गए।

*गंभीर विचारक*

तोलारामजी एक गंभीर विचारक व्यक्ति थे। हर कार्य से पूर्व वे उसके परिणाम के विषय में सोच लिया करते थे। प्रवाह पाती होकर कार्य करने में उन्हें कोई विश्वास नहीं था। संवत् 1983 में थली के ओसवाल समाज में श्रीसंघ और विलायती नाम से दो पक्ष हो गए। उनमें परस्पर काफी तेज सामाजिक विग्रह चला। उसका केंद्र स्थल चूरू था। एक पक्ष के मुखिया कोठारी थे तो दूसरे के सुराणा। दोनों ही चूरू के धनीमानी और बड़े परिवार थे। कुछ लोगों ने उस विग्रह को धार्मिक क्षेत्र में भी लाने का प्रयास किया। उनके निमंत्रण पर स्थानकवासी आचार्य जवाहरलालजी उधर आए। उनका प्रयास था कि कोठारी पक्ष को सामाजिक स्तर पर समर्थन देने वाले सभी व्यक्तियों को स्थानकवासी बन जाना चाहिए। कोठारी परिवार के अनेक व्यक्ति उस समय स्थानकवासी बने। उन लोगों ने तोलारामजी पर भी अनेक दबाव डाले, परंतु उन्होंने कहा— "हमारा झगड़ा कुछ सामाजिक प्रश्नों को लेकर है, धर्म को उसके बीच में लाने की आवश्यकता ही नहीं है।" उनकी उस सुविचारित दृढ़ता ने अन्य अनेक व्यक्तियों को बहुत बल प्रदान किया। फलतः विरोधियों की वह सारी योजना ही विफल हो गई। पहली बार में जो स्थानकवासी बन गए, बस वही रह गए, बाद में अन्य किसी परिवार ने उनका साथ नहीं दिया।

*चूरू के व्रतधारी श्रावक तोलारामजी कोठारी के धर्मसंघ के प्रति समर्पित जीवन* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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