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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 535* 📝
*आत्मसंगीत उद्गाता आचार्य आत्मारामजी*
आत्मारामजी स्थानकवासी श्रमण संघ के प्रथमाचार्य थे। वे प्रकांड विद्वान् थे। आगम ग्रंथों के तलस्पर्शी अध्येता थे। उपनिषद्, महाभारत, स्मृति, पुराण आदि का उन्हें गहन अध्ययन था। संस्कृत, प्राकृत, पालि इन तीनों भाषाओं पर उनका अधिकार था। ज्योतिष विद्या के मेधावी आचार्य सोहनलालजी का पांडित्य एवं काशीरामजी का गंभीर व्यक्तित्व आत्मारामजी में समन्वित होकर झलकता था।
*गुरु-परम्परा*
पंजाबी स्थानकवासी परंपरा में अमरसिंहजी, सोहनलालजी, काशीरामजी आदि कई प्रभावी आचार्य हुए। आचार्य काशीरामजी के उत्तराधिकारी आचार्य आत्मारामजी थे। आत्मारामजी के दीक्षा गुरु संतश्री शालिग्रामजी एवं विद्या गुरु आचार्य मोतीरामजी थे।
*जन्म एवं परिवार*
आत्मारामजी का जन्म जालंधर जिले के अंतर्गत 'राहो' गांव में क्षत्रिय चौपड़ा परिवार में हुआ। वीर निर्वाण 2409 (विक्रम संवत् 1939) भाद्रव शुक्ला द्वादशी उनका जन्मदिन था। उनके पिता का नाम मनसाराम एवं माता का नाम परमेश्वरी था।
*जीवन-वृत्त*
आत्मारामजी का गृहस्थ जीवन संघर्षों में बीता। आत्मारामजी दो वर्ष के थे तभी माता का वियोग हो गया। आठ वर्ष की अवस्था में पिता के विरह का आघात लगा। माता-पिता से निराश्रित बालक का पालन-पोषण कुछ समय तक दादी ने किया। दस वर्ष की अवस्था में उनका यह सहारा भी टूट गया। कुछ दिन तक मामा के यहां रहे। उन्हें चाची का संरक्षण भी मिला, पर उनका मन कहीं नहीं लगा। सौभाग्य से एक दिन वे संतों की सन्निधि में पहुंच गए। तत्त्वज्ञान का प्रशिक्षण लेकर उन्होंने एक दिन सन्त की भूमिका में प्रवेश किया। श्रमण दीक्षा का यह समय वीर निर्वाण 2421 (विक्रम संवत् 1951) था।
संत श्री आत्मारामजी प्रखर प्रतिभा के धनी थे। वे न्याय, दर्शन, ज्योतिष, भूगोल, खगोल आदि विषयों के गंभीर अध्येता थे एवं जैन दर्शन के मर्मज्ञ विद्वान् थे। भारतीय दर्शन की विविध धाराओं का उन्हें अधिकृत ज्ञान था।
अमृतसर में विक्रम संवत् 1969 में संत आत्मारामजी को उपाध्याय पद से विभूषित किया गया था।
आचार्य काशीरामजी के स्वर्गवास के बाद वीर निर्वाण 2473 (विक्रम संवत् 2003) में महावीर जयंती के दिन पंजाब संघ के द्वारा संत आत्मारामजी को पंजाब प्रांत का आचार्य बनाकर उनका सम्मान किया गया।
*आत्मसंगीत उद्गाता आचार्य आत्मारामजी का वर्धमान श्रमण संघ के आचार्य के रूप में मनोनयन, उनके द्वारा रचित साहित्य व आचार्यकाल के समय-संकेत* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 189* 📜
*टीकमचंदजी चंडालिया*
*त्याग और तपस्या*
राजलदेसर निवासी श्रावक टीकमचंदजी चंडालिया का जन्म संवत् 1928 में हुआ। वे अधिक पढ़े-लिखे नहीं थे, फिर भी जैन धर्म के प्रति उनकी आस्था बहुत गहरी थी। त्याग और तपस्या उनके जीवन के अंग बने हुए थे। बारह व्रत धार लेने के पश्चात् भी विशिष्ट प्रत्याख्यान इस प्रकार से थे— स्कंध प्रत्याख्यान अर्थात् उन्हें यावज्जीवन के लिए हरित्काय, सचित्त, रात्रि भोजन और अब्रह्मचर्य का परित्याग था। मांचे तथा ढोलिये आदि पर सोने का परित्याग था। नैनसुख तथा फलालीन के अतिरिक्त वस्त्र पहनने, ओढ़ने के काम में नहीं लेते थे। शीत ऋतु में फलालीने की एक दोवड़ रखते थे, उससे अधिक वस्त्र ओढ़ने का परित्याग था। अंतिम छब्बीस वर्षों में उन्होंने आठ द्रव्यों से अधिक के उपभोग का परित्याग रखा। रुग्णावस्था में भी उक्त संख्या से अधिक द्रव्यों का आगार नहीं था।
उन्हें एक सर्वाधिक कठिन त्याग यह था कि यदि एक बार भी क्रोध आ जाए तो लगातार तीन दिनों तक रोटी और पानी के अतिरिक्त तीसरा कोई द्रव्य ग्रहण नहीं करेंगे।
वे तपस्या भी काफी किया करते थे। उनकी तपस्या प्रायः चौविहार हुआ करती थी, अतः अधिक लंबी न होने पर भी कष्ट-साध्य होती थी। अधिक से अधिक उन्होंने आठ दिनों तक की तपस्या की थी। उससे पूर्व के सभी थोकड़े अनेक बार किए थे। अंतिम छब्बीस वर्षों में वे लगातार पांच तिथियों के उपवास करते रहे थे।
*सामायिक और पंचोला*
वे प्रतिदिन पांच-चार सामायिक कर लेते थे। कम से कम एक सामायिक करने से पूर्व तो अन्न-जल भी ग्रहण नहीं करते थे। एक बार उन्हें अतिसार हो गया। उसमें थोड़ी-थोड़ी देर के पश्चात् शौच के लिए जाना पड़ता रहा। सामायिक कर सकें इतना समय मिल ही नहीं पाया। सामायिक करने से पूर्व न वे कोई औषध लेने को राजी हुई और न भोजन करने को ही। घर वालों ने काफी दबाव दिया कि रोग आदि विशिष्ट स्थितियों के लिए हर त्याग में आगार रखा जाता है, अतः औषध तथा भोजन से कोई व्रत भंग नहीं होगा, परंतु उन्होंने किसी की बात नहीं मानी। लगातार पांच दिनों तक रोग की वही स्थिति चलती रही। आखिर छठे दिन उसका उपशमन हुआ तब छह सामायिक कर लेने के पश्चात् ही उन्होंने चौविहार पंचोले का पारण किया।
*सुदृढ़ संकल्प शक्ति के धनी राजलदेसर के श्रावक टीकमचंदजी चंडालिया की अडिग निष्ठा* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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कोयम्बत्तूर में आयोजित 155 वें मर्यादा महोत्सव के त्रिदिवसीय कार्यक्रम की रिपोर्टिंग एवं लाइव प्रसारण के इस कार्य लिए संघ संवाद टीम की और से श्री अशोक जी संचेती, श्री विमल जी बैद, श्री जितेंद्र जी घोषल, श्री बजरंग जी बोथरा, श्री महावीर जी कोठारी, श्री प्रजीत जी बोथरा, श्री जयन्तीलाल जी जीरावला, श्रीमती मंजु जी गेलड़ा, श्रीमती वसंता जी देवड़ा, श्रीमती अलका जी बैद ने कोयम्बत्तूर में अपनी उपस्थिती दर्ज कराकर विशेष सेवाएं प्रदान की। इसके साथ श्री अरुण जी संचेती, राजेश जी कावड़िया, श्री लोकेश जी दुधोड़िया आदि संघ संवाद टीम के सहयोग एवं श्रम से यह कार्य सम्पादित किया गया।
⛩ कोयम्बत्तूर, तमिलनाडु से..
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👉 155 वें त्रिदिवसीय "मर्यादा महोत्सव" के कार्यक्रम का लाइव प्रसारण, न्युज अपडेट एवं रिपोर्टिँग संघ संवाद टीम द्वारा..
👉 दिनांक: 12/02/2019
प्रस्तुति: 🌻 संघ संवाद 🌻
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News in Hindi
📿 *रटो भवि स्वाम नाम नित मन में,* ❤
🌪 *टलै संकट वंकट छिन में ।*🔜⏱
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🙏 *पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ प्रातःविहार करके हिंदुस्तान एवेन्यू, (कोयम्बत्तूर) पधारे..*
🛣 *आज प्रातःकाल का विहार लगभग 06.50 कि.मी. का..*
⛩ *आज प्रातःकाल का प्रवास: निर्मल जी रांका का निवास स्थान, कोयम्बत्तूर (T. N.)*
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👉 *आज के प्रातःविहार के विहार के कुछ मनोरम दृश्य..*
दिनांक: 13/02/2019
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