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मुम्बई महिला मंडल आयोजित स्वयंसिद्धा कार्यक्रम
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⛲
*जीवन*
की दिशा
बदलने
वाला
*अणुव्रत*
*साहित्य*
📍
*:प्रकाशन:*
जैन विश्व भारती
☄
*:प्रसारक:*
अणुव्रत महासमिति
🌻
*:संप्रसारकः*
संघ संवाद
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News in Hindi
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 546* 📝
*धर्मवृद्धिकारक आचार्य धर्मसागर*
*जीवन-वृत्त*
गतांक से आगे...
चिरंजीलाल की प्रारंभिक शिक्षा मोतीलाल छाबड़ा आदि के संरक्षण में दुगारी ग्राम में हुई। इस दुगारी गांव में चिरंजीलाल के पिताश्री का जन्म हुआ था। यह इस परिवार के पूर्वजों की जन्मस्थली थी।
बालक चिरंजीलाल के जीवन में धृति, संतोष आदि गुणों का सहज विकास हुआ था। धर्म और अध्यात्म के प्रति बालक का विशेष झुकाव था। भाग्य से 'नैनवां' ग्राम में मुनि चंद्रसागरजी की उपासना का एवं इंदौर में आचार्य वीरसागरजी की सन्निधि का अवसर उसे प्राप्त हुआ। मुनि चंद्रसागरजी की पुनः-पुनः सन्निधि प्राप्त होने से बालक चिरंजीलाल की जीवनधारा अध्यात्म की ओर दिन-प्रतिदिन उन्मुख बनती गई।
घर में विवाह की चर्चा चली उन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने का दृढ़ संकल्प लेकर सबको अवाक् कर दिया एवं भावी जीवन की दिशा में सोचने के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
जीविकोपार्जन हेतु चिरंजीलालजी ने एक छोटी सी दुकान खोली। इंदौर के एक कारखाने में नौकरी की, पर हिंसात्मक प्रवृत्तियों को देखकर मन में घृणा हो गई। नौकरी छोड़ दी।
युवा चिरंजीलाल के हृदय में वैराग्य की लौ जल रही थी। अंतर्मुखता से प्रेरित होकर एक दिन चिरंजीलालजी ने आचार्य वीरसागरजी से द्वितीय प्रतिमा व्रत बड़नगर में मुनि चंद्रसागरजी से सप्तम प्रतिमा व्रत धारण किया। बहन दाखांबाई सरल स्वभावी एवं धार्मिक वृत्ति की महिला थी। दोनों भाई-बहनों ने व्रत प्रधान जीवन प्रारंभ किया।
सांसारिक सुखों से पूर्णतः विरक्त होकर चिरंजीलालजी ने मुनि चंद्रसागरजी द्वारा वीर निर्वाण 2471 (विक्रम संवत् 2001 चैत्र शुक्ला सप्तमी के दिन) में क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की। क्षुल्लक जीवन में उनका नाम भद्रसागर रखा गया। पंच कल्याणक प्रतिष्ठा के समय कुलेरा ग्राम में वैशाख मास में वीर निर्वाण 2478 (विक्रम संवत् 2008) में आचार्य वीरसागरजी द्वारा क्षुल्लक भद्रसागर ने एलक दीक्षा ग्रहण की। इस वर्ष कुलेरा चातुर्मास में उन्होंने कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी को मुनि दीक्षा ग्रहण की और भद्रसागरजी धर्मसागरजी के नाम से संबोधित हुए।
मुनि जीवन में उन्होंने छह चातुर्मास वीरसागरजी के पास किए। वीरसागरजी के स्वर्गवास के बाद वे स्वतंत्र रूप से विहरण करने लगे। मुनि जीवन में उन्होंने कई दीक्षाएं दीं। आचार्य शिवसागरजी के स्वर्गवास के पश्चात् वीर निर्वाण 2465 (विक्रम संवत् 2025) में उनकी आचार्य पद पर नियुक्ति हुई। इस अवसर पर धर्मसागरजी द्वारा कई दीक्षाएं संपन्न हुईं।
राजस्थान, दिल्ली, मालवा, महाराष्ट्र, गुजरात आदि क्षेत्र धर्मसागरजी के विहरण स्थल थे।
भगवान् महावीर की पच्चीससौवीं निर्वाण शताब्दी के अवसर पर आचार्य धर्मसागरजी दिल्ली में थे। वहां आचार्य देशभूषणजी एवं धर्मसागरजी दोनों दिगंबर आचार्यों का तथा तेरापंथ धर्म संघ के नवमें अधिशास्ता आचार्य श्री तुलसी और स्थानकवासी आचार्य श्री आनंद ऋषि जी का मिलन हुआ। कई दीक्षाएं वहां पर दी गई थीं।
विभिन्न घटनाक्रमों को समेटे हुए आचार्य धर्मसागरजी का त्याग-तपोमय जीवन जन-जन के लिए प्रेरणास्पद है।
आपका समाधिमरण राजस्थान के अंतर्गत सीकर में ईस्वी सन् 12 अप्रैल, 1987 को हुआ।
*अमृतपुरुष आचार्य श्री तुलसी के प्रभावक चरित्र* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 200* 📜
*हीरालालजी मुरड़िया*
*कार्य की बहुलता*
हीरालालजी मुरड़िया का जन्म सा विक्रम संवत् 1930 में हुआ। वे उदयपुर निवासी सुप्रसिद्ध श्रावक अंबालालजी (अंबावराजा) के गोद आए हुए पुत्र थे। मूलतः वे अंबावराजा के छोटे भाई ज्ञानचंदजी के पुत्र थे। अंबावराजा महाराणा शंभूसिंहजी, महाराणा सज्जनसिंहजी तथा महाराणा फतहसिंहजी के कृपा पात्र थे। एक धनी तथा अधिकारी व्यक्ति के पुत्र होने के कारण उन्हें प्रारंभ से ही सुख सुविधा में रहने का अवसर प्राप्त हुआ। तारुण्य के प्रारंभकाल में उनके चरण कुछ इधर-उधर के भटकाव की ओर बढ़ने लगे। अंबावराजा को पता लगा तो उससे उन्हें बड़ा दुःख हुआ। अपने समग्र जीवन में उन्होंने राजकीय तथा सामाजिक स्तर पर जो यश अर्जित किया था, पुत्र के भटकाव के कारण वृद्धावस्था में उसके धूमिल हो जाने की संभावना होने लगी। प्रत्यक्ष रूप में तो उन्होंने उसे कुछ नहीं कहा, पर अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें सुधार लेने की योजना बनाने लगे।
एक बार उन्होंने महाराणा फतहसिंहजी के सम्मुख सारी स्थिति रखी और निवेदन किया कि आप उसे इतना कार्य व्यस्त बना दें कि भटकाव के लिए उसके पास समय ही न रहे। महाराणा ने वैसा ही किया। धीरे-धीरे हीरालालजी के पास इतना कार्य हो गया कि इधर-उधर की बात सोचने का कोई अवकाश ही नहीं रहा। कार्यों की बहुलता ने हीरालालजी की निपुणता को बढ़ाया वहां महाराणा फतहसिंहजी के नैकट्य के भी अनेक अवसर प्रदान किए। समय-समय पर महाराणा उनके कार्यों के विषय में जानकारी करते रहते थे।
*निपुण अभियंता*
अपने पिता अंबावराजा की तरह हीरालालजी भी अभियांत्रिकी के क्षेत्र में ही आगे बढ़े। केलवाड़ा, गामगुड़ा, सलोदा, कालिंजर, वाण्याटुकड़ा, टीडी, खेरकी कथा अमरचंदिया आदि अनेक गांवों के बांध उन्हीं की देखरेख में बने। राज्य के अनेक जीनिंग फैक्ट्रियों, सड़कों तथा पुलों का निर्माण भी उन्हीं की देखरेख में हुआ। इसीलिए लोग उन्हें 'सड़कों वाले' हीरालालजी कहने लगे। चित्तौड़गढ़ का फतह-प्रकाश महल, कुंभलगढ़ का महल तथा उदयपुर का दरबार हॉल आदि अनेक सुन्दर भवनों का निर्माण भी उन्होंने किया। भारत प्रसिद्ध 'सहेलियों की बाड़ी' नामक उद्यान में अनेक परिवर्तन कर उसे विशेष रमणीय बनाने में भी उनके ही बुद्धि कौशल का योग था।
*उदयपुर के श्रावक हीरालालजी मुरड़िया की कार्य निपुणता व धार्मिक सेवाओं* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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*आज 70वें अणुव्रत स्थापना दिवस के पावन अवसर पर आपके नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण, आध्यात्मिकता से भावित सुदीर्घ और यशस्वी मंगल जीवन की कामना।*
🙏
*अणुव्रत महासमिति परिवार*
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🌈 *"अहिंसा यात्रा"* के बढ़ते कदम..
⛩ *आज दिन का प्रवास स्थल- श्री रणजीत सिंह भंडारी जी का निवास स्थान, एडप्पली (एर्नाकुलम), केरल*
🚦लोकेशन: 👇
https://maps.app.goo.gl/W85na
🛣 *आज प्रातःकाल का विहार लगभग 13 कि.मी. का..*
👉 *दिनांक - 01 मार्च 2019*
प्रस्तुति:
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📡 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *भाव परिवर्तन और मनोबल: श्रंखला १*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
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Helpline No. 8233344482
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🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला ६०* - *स्वभाव परिवर्तन और प्रेक्षाध्यान ६*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
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