16.05.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 16.05.2019
Updated: 17.05.2019

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*जैन विश्व भारती द्वारा अंतर्राष्ट्रीय आवासीय विद्यालय के संदर्भ में आचार्य प्रवर के विचार*--

🌼एक ऐसा विद्यालय जहां पढ़ाई भी अच्छी हो और संस्कार भी अच्छे मिल सके।

🌼 तेरापंथ समाज यह न सोचें कि हमारे यहां पर उच्च स्तर का विद्यालय नहीं है इसलिए हमें अन्य विद्यालयों में अपने बच्चों को भेजना पड़ता है।

🌼समाज के बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ जैनत्व के तेरापंथ के संस्कार अच्छे मिल सके। उनका जीवन अच्छा बन सके,वे समाज के लिए उपयोगी बन सके,वे समस्या नहीं समाधान बन सके,ऐसी विद्यार्थी पीढ़ी तैयार हो इस दृष्टि से जो विद्यालय का प्रकल्प है वह अपने आप में महत्वपूर्ण है|

*मीडिया एवं प्रचार प्रसार विभाग*
🌐 *जैन विश्व भारती* 🌐
सम्प्रसारक

🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 31* 📖

*सौंदर्य की मीमांसा*

गतांक से आगे...

क्रोध नहीं होता है तो बहुत सारे विषैले परमाणु नष्ट हो जाते हैं। वैज्ञानिक परीक्षण किया गया नखों के आधार पर। नाखूनों में सैंकड़ों प्रकार के रसायन मिल जाते हैं। जब बुरे भाव जागते हैं तब वे शरीर में एक प्रकार के विष का निर्माण करते हैं। इस विष का प्रभाव नखों पर बहुत शीघ्र दिखाई देता है। सांप, बिच्छू जैसे जीवों को बहुत जहरीला माना गया है, किंतु मनुष्य को सर्वाधिक जहरीला माना गया है। भगवती सूत्र ने कहा गया है— आदमी इतना विषैला होता है कि अपने शरीर के विष से वह हजारों कोस दूर स्थित व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है, समाप्त कर सकता है। इतना जहर है मनुष्य के शरीर में। कुछ आदमी अपने शरीर में इतना विष इकट्ठा कर लेते हैं कि सांप या बिच्छू भी उनके जहर से मर जाते हैं। उस आदमी को कोई भी काट ले तो वह नहीं मरता, बल्कि काटने वाला ही मर जाता है।

जिनमें ये आवेग, आवेश, अशुद्ध विचार और अशुद्ध भाव होते हैं, उनका सारा शरीर जहरीला बन जाता है। शांतरस के परमाणुओं से निर्मित व्यक्ति का आभामंडल इतना पवित्र होता है कि उसे कितना ही देखें, तृप्ति नहीं मिलती। आजकल आभामंडल पर काफी काम हो रहा है। जिसका आभामंडल पवित्र है, उसके पास जाएंगे तो सुख और शांति का अनुभव होगा। जिसका आभामंडल दूषित है, उसके निकट जाएंगे तो बेचैनी का अनुभव होगा। यही आभामंडल की पवित्रता व्यक्ति को आकर्षित करती है। कोरा रूप-रंग किसी को आकर्षित नहीं करता।

दूसरी बात जो मानतुंग कहते हैं, वह यह है— त्रिभुवनैकललामभूतः - आप तीनों लोकों के ललामभूत हैं ललाम का अर्थ है तिलक। आप तीन लोक में तिलक के समान हैं। चक्रवर्ती सम्राटों के गले में सुशोभित माला को ललाम कहा जाता है। आप तीनों लोकों के ललाम बन गए हैं। आप जैसा तीनों लोकों में दूसरा कोई दिखाई नहीं दे रहा है।

*आचार्य मानतुंग की यह सारी स्तुति किस पर आधारित है...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 43* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*भाव संयम की भूमिका*

*गुरु का रुख*

स्वामीजी कुछ दिनों पश्चात् सोजत पहुंचे। गुरु चरणों में भक्तिपूर्वक वंदन किया। आचार्य रघुनाथजी ने न उनका वंदन स्वीकार किया और न उनसे रुख ही जोड़ा। चतुर स्वामीजी ने तत्काल भांप लिया कि मुनि वीरभानणजी ने पहले ही सारी बात कहकर अवसर बिगाड़ दिया है। वे बिगड़ी बात को भी सुधारना जानते थे, अतः नम्रतापूर्वक बोले— 'गुरुदेव! आपका चित्त उदास क्यों है? आपने न मेरे वंदन को स्वीकार किया और न मेरे सिर पर अपना वात्सल्यपूर्ण हाथ ही रखा।'

आचार्य रघुनाथजी ने कहा— 'तुम्हारे मन में शंकाएं उत्पन्न हो गई हैं, इसलिए तुम्हारा और हमारा मन अब मिल नहीं सकता। आज से तुम्हारे साथ हमारा साम्भोगिक संबंध भी नहीं रहेगा।'

स्वामीजी ने सोचा— 'इनमें तथा हममें न सम्यक्त्व है और न साधुत्व, तब सम्भोगिक रहने या न रहने में कोई अंतर नहीं पड़ता, फिर इस समय यह विवाद अनावश्यक होगा। अभी तो यही उचित है कि यदि इनके मन में यह आशंका हो कि शिष्य रूप में रहना मुझे स्वीकार नहीं है अथवा मैं स्वयं से पृथक् होना चाहता हूं, तो इस आशंका को दूर कर इनके हृदय विश्वास पैदा करूं कि मेरे मन में ऐसा कोई विचार नहीं है। समस्त साधु-संघ को सुधारना है तो पहले गुरु से संपर्क रखना और उन्हें सारी बातों से अवगत कराना आवश्यक है। यह सब विश्वास के बिना नहीं हो सकता। अविश्वास जहां कार्य को नष्ट करता है, वहां विश्वास नष्ट हुए कार्य को भी पुनः सुधार देता है।'

स्वामीजी ने तब गुरु को विश्वस्त करने के लिए कहा— 'यदि मेरे मन में व्यर्थ की शंकाएं उत्पन्न हो गई हैं, तो आप उनको दूर कीजिए और मुझे प्रायश्चित्त द्वारा शुद्ध करके सहभोजी कीजिए।' इस प्रकार आचार्य की व्यर्थ की आशंकाओं को दूर कर वे साम्भोगिक बने और वार्तालाप करने का अवसर प्राप्त किया।

*स्वामीजी ने अपनी बात गुरु से किस प्रकार निवेदित की और उसका आचार्य रघुनाथजी पर क्या प्रभाव पड़ा...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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News in Hindi

👉 कालीकट - जन्मोत्सव एवं पटोत्सव के उपलक्ष्य में पचरंगी
👉 मोहनपुर (झारखंड) - जन्मोत्सव-पट्टोत्सव कार्यक्रम
👉 रायपुर - आचार्य श्री महाश्रमण जन्मोत्सव व पदाभिषेक समारोह का आयोजन
👉 विजयनगर, (बेंगलुरु) महाश्रमण अष्टकम लिखित प्रतियोगिता आयोजित
👉 हासन - तीर्थ स्थापना दिवस का आयोजन

प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद 🌻*

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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन

👉 *हृदय परिवर्तन के सूत्र - २*: श्रंखला ३*

एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

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#Preksha #Foundation
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