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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#समाधी साध्य है या #साधना*: #श्रंखला ५*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482
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🌻 #संघ #संवाद 🌻
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला १५८* - *चित्त शुद्धि और कायोत्सर्ग ११*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 08 जून 2019
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
🙏 *पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ प्रातःविहार करके 'भारत नगर' - के.जी.एफ (Karnataka) पधारे..*
🛣 *गुरुदेव का आज प्रातःकाल का विहार लगभग 07.70 कि.मी. का..*
⛩ *आज दिन का प्रवास: जैन स्कूल, भारत नगर (BEML Nagar के पास) - के. जी.एफ (कर्नाटक)*
*लोकेशन:*
https://maps.app.goo.gl/1eQihoGwWtvfBJbK9
🙏 *साध्वीप्रमुखा श्री जी विहार करते हुए..*
👉 *आज के विहार के कुछ मनोरम दृश्य..*
दिनांक: 08/06/2019
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 61* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*तेरापंथ का उदय*
*केलवा में*
स्वामीजी मारवाड़ से विहार करते हुए मेवाड़ में पधारे। उन्होंने अपने चातुर्मास के लिए केलवा ग्राम को चुना। वह राजनगर से लगभग 11 किलोमीटर दूर है। स्वामीजी वहां आषाढ़ शुक्ला 13 को पहुंचे।
वर्षा ऋतु का प्रारंभ काल ही था, फिर भी प्रथम बार में अच्छी वर्षा हो गई, अतः प्रचुर अन्नोत्पत्ति की संभावना में सभी की आकृतियां हर्षोत्फुल्ल थीं। उत्तापहीन स्वच्छ वातावरण और सुकाल के संकेत मानो स्वामीजी के पदार्पण की सफलता के सूचक शुभ शकुन थे। उस वर्ष परिपूर्ण वृष्टि होने का समर्थन सुप्रसिद्ध श्रावक शोभजी की गीतिका के एक पद्य से भी होता है। वे उस समय गर्भावस्था में थे। स्वामीजी के संयम-जीवन संबंधी जन्म-कल्याण का उल्लेख करते हुए उन्होंने लिखा है—
*सोभो गर्भ मांहैं वर्ष सतरै,*
*जद बादल जादा झरिया।*
*जन्म किल्याण श्री पूज केलवै,*
*साध थई संचरिया॥*
स्वामीजी के साथ उस समय चार साधु और थे। उनके नाम इस प्रकार हैं— टोकरजी, हरनाथजी, भारमलजी और वीरभाणजी। यद्यपि वीरभाणजी का नाम किसी भी ग्रंथ में उल्लिखित नहीं है, परंतु 'केलवा में स्वामीजी आदि पांच संत थे।' यह संख्या निर्धारण उपलब्ध है। तब यही संभावना की जा सकती है कि पांचवें संत वीरभाणजी ही थे। क्योंकि संवत् 1815 के राजनगर चातुर्मास में तथा अभिनिष्क्रमण के समय बगड़ी में वे स्वामीजी के साथ थे। उक्त स्थिति में उनका अन्य किसी के साथ जाना संभव नहीं लगता।
यद्यपि स्वामीजी चातुर्मास प्रारंभ होने के लगभग ही केलवा में पहुंचे थे, फिर भी उनके पहुंचने से पूर्व ही वहां विरोधियों द्वारा उनके विरुद्ध प्रचार प्रारंभ किया जा चुका था। अनेक अपवाद और भ्रांतियां फैलाई गईं। सामाजिक स्तर पर उनका पूर्ण बहिष्कार करने के लिए श्रीसंघ की ओर से भी अनेक आज्ञाएं प्रचारित की गईं। स्थानीय जनता के मन में उनके प्रति घृणा और भय का प्रसार इस रूप में किया गया कि जब वे वहां पहुंचे, तब उन्हें कोई स्थान देने वाला भी नहीं मिला।
*स्वामीजी को केलवा में स्थान कहां मिला...?* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 49* 📖
*अपूर्व सूर्य: अपूर्व चांद*
गतांक के आगे...
मानतुंग की कहते हैं— चंद्रमा बादलों की ओट में छिप जाता है, किंतु आपका प्रकाश कभी आवृत नहीं होता। मानतुंग के इस कथन का हार्द है— आपकी निर्मल ज्योति को राग के बादल कभी ढक नहीं पाते। तीन प्रकार का राग बतलाया गया— कामराग, स्नेहराग और दृष्टिराग। आचार्य हेमचंद्र ने लिखा— कामराग और स्नेहराग को थोड़े अभ्यास अथवा प्रयत्न से मिटाया जा सकता है, किंतु यह जो दृष्टि का राग है, सांप्रदायिक अथवा दार्शनिक राग है, वह दुरुच्छेद है।
*कामरागस्नेहरागावीषत्करनिवारणौ।*
*दृष्टिरागस्तु पापीयान, दुरुच्छेद सतामपि॥*
मानतुंग कह रहे हैं— प्रभो! यह जो काम-राग और स्नेह-राग के बादल हैं, जो दृष्टि-राग के बादल हैं वे आपके प्रकाश को कभी आवृत नहीं कर सकते। इनके लिए आप अतीत हो चुके हैं। आप इन से परे जा चुके हैं। बहुत गंभीरता में जाकर आचार्य ने विशुद्ध आध्यात्मिक स्वरूप का चित्रण किया है— आदिनाथ! आप महान् योगी और साधक हैं। जितने दोष माने जाते हैं उन सबको आपने दूर कर दिया। सामान्यतः अठारह दोष अथवा पांच आश्रव बतलाए गए हैं। ये दोष बादल अथवा कोहरा बनकर छा जाते हैं। आपने इन दोषों का अपनयन कर दिया। इसलिए आपका मुख-कमल अनल्प कांति-संपन्न हो गया। चंद्रमा की कांति अल्प होती है। वह पूरे जगत् को उद्योतित नहीं करता। आपकी कांति अनल्प है। आपका मुखकमल इतना तेजस्वी बन गया है कि वह पूरे जगत् को उद्योतित कर सकता है।
जब भीतर की ज्योति प्रकट होती है तब बाहर की ज्योति से तुलना नहीं हो सकती। आचार्य ने प्रयत्न किया— अंतर ज्योति की बाहरी ज्योति से तुलना करूं। उनका यह प्रयास सफल नहीं हुआ। न दीपक की ज्योति से उसकी तुलना हो सकी, न सूर्य के प्रकाश से तुलना हो सकी और न चंद्रमा के उद्योत से तुलना हो सकी। इसीलिए आचार्य मानतुंग को कहना पड़ा— आप अपूर्व दीप हैं। आप सूर्य से अतिशायी महिमा वाले हैं। आप अपूर्व शशांकबिम्ब हैं।
*आचार्य मानतुंग ने कहा— आदिनाथ अपूर्व दीप है... इस कथन को समीक्षात्मक रूप से...* समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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