Update
👉 चेन्नई: पल्लावरम - आचार्य श्री तुलसी का 23 वें महाप्रयाण दिवस का आयोजन
👉 हुबली ~ जैन संस्कार विधि से विवाह संपन्न
प्रस्तुति - *🌻 संघ संवाद🌻*
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*अणुव्रत प्रवर्तक आचार्यश्री तुलसी के*
*23वें महाप्रयाण दिवस पर*
*अणुव्रत महासमिति की श्रद्धांजलि*
: श्रद्धावनत:
*अणुव्रत सोशल मीडिया*
: प्रसारक:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🛡 *मानवीय मूल्यों की रक्षा अणुव्रत का आशय है,* ✨
💙 *आध्यात्मिकता प्रमाणिकता उसका अमल ह्रदय है ।* ✨
🌑 *हिंसा के इस गहन तिमिर में अणुव्रत एक उजारा ।।* ☀
🙏 *'अणुव्रत' आंदोलन प्रवर्तक गणाधिपति गुरुदेव आचार्य श्री तुलसी का 23 वां "महाप्रयाण दिवस"..*
🙏 *'अणुव्रत' अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी का अपनी "अहिंसा यात्रा" के साथ 'बेंगलुरु' शहर - "नगर प्रवेश".. व*
👉 *आज के "मुख्य प्रवचन" कार्यक्रम के कुछ विशेष मनोरम दृश्य..*
दिनांक: 20/06/2019
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
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*परमपूज्य गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी के 23वें महाप्रयाण दिवस पर भावभीनी श्रद्धांजलि*
: *श्रद्धावनत*:
🙏 *जैन विश्व भारती परिवार* 🙏
*मीडिया एवं प्रचार प्रसार विभाग*
🌐 *जैन विश्व भारती* 🌐
प्रसारक:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 59* 📖
*मूल्यांकन की दृष्टि*
गतांक से आगे...
सीधे-सादे शब्दों में आचार्य मानतुंग ने बहुत गहरी बात कहते हुए प्रस्तुत श्लोक रच डाला, जिसमें उनकी ये भावनाएं जीवंत हैं—
*मन्ये वरं हरिहरादय एव दृष्टा,*
*दृष्टेषु येषु हृृदयं त्वयि तोषमेति।*
*किं विक्षितेन भवता भुवी येन नान्यः,*
*कश्चिन् मनो हरति नाथ! भवान्तरेपि।।*
यदि हम इस श्लोक के शब्दार्थ पर अटक जाएं, तात्पर्यार्थ में न जाएं तो ऐसा लगेगा— स्तुतिकार ने दूसरे दार्शनिकों को कुछ नीचा दिखाने का प्रयत्न किया है। वस्तुतः इसमें किसी दार्शनिक पर आक्षेप नहीं है। व्यक्ति और सिद्धांत– ये दो संदर्भ हैं। व्यक्ति की आलोचना नहीं होनी चाहिए। सिद्धांत की आलोचना हो सकती है। वह व्यक्ति अच्छा नहीं है, बुरा है, ऐसा नहीं कहना चाहिए। अमुक सिद्धांत सही है अथवा नहीं है। सही है तो क्यों है? गलत है तो क्यों है? यह सिद्धांत की समीक्षा अथवा आलोचना है। विवेकशील मनुष्य अपने तर्क और बुद्धिबल से ऐसी समीक्षाएं करता रहता है।
भगवती सूत्र का प्रसंग है। आर्द्रककुमार और आजीवक श्रमणों के बीच संवाद चल रहा था। आजीवक श्रमणों ने बहुत प्रश्न रखे। आर्द्रककुमार ने उनके प्रश्नों के बहुत तीखे उत्तर दिए। आजीवक ने कहा— आप हमारी निंदा कर रहे हैं। उस समय आर्द्रककुमार ने बहुत मार्मिक बात कही— मैं किसी व्यक्ति की आलोचना नहीं कर रहा हूं, विचार और दृष्टि की आलोचना कर रहा हूं।
दृष्टि, विचार अथवा मत की आलोचना करना सर्वमान्य बात है। स्तुतिकार ने इस श्लोक में कुछ शब्द प्रतीकात्मक लिए हैं। जहां हरि हैं, वहां हरि का दर्शन है। जहां हर है, वहां शैव दर्शन है। इनके साथ 'आदि' शब्द का प्रयोग कर अनेक एकांतवादी दर्शनों की ओर संकेत किया है। एकांतदृष्टि की आलोचना और अनेकांतदृष्टि का अभ्युपगम— दोनों इस श्लोक में स्पष्ट परिलक्षित हैं। मानतुंग का यह कथन इसका स्पष्ट साक्ष्य है— यह अनेकांत दर्शन भावांतर में भी मुझे प्रभावित करता रहेगा।
स्तुतिक्रम में मानतुंग ऋषभ की मां की स्मृति करते हुए कहते हैं— प्रभो! धन्य है आपकी माता को, जिसने ऐसे अनुपम पुत्र को जन्म दिया। सैकड़ों-हजारों स्त्रियां पुत्र का प्रसव करती हैं, किंतु किसी माता ने ऐसे पुत्र को जन्म नहीं दिया, जो आपकी तुलना में आ सके। जो महापुरुष होता है, उसके माता-पिता को भी धन्यवाद दिया जाता है। ऐसे अनुपम पुत्ररत्न का प्रसव करने वाली माता का बहुत महत्त्व माना गया है। प्राकृत और संस्कृत साहित्य में इस विषय पर बहुत विचार हुआ है की माता कैसी हो? पुत्र कैसा हो? वह माता जिसमें कुछ विशिष्ट अर्हता है, जिसकी विशिष्ट आकृति है, जिसमें विशेष गुण है, उसके विशिष्ट पुत्र उत्पन्न होता है। वर्तमान अनुवांशिकी सिद्धांत में भी यह माना गया है कि माता-पिता के द्वारा जो संस्कार-बीज मिलते हैं, वे पुत्र के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं।
*भगवान् ऋषभ की माता के बारे में विस्तृत जानकारी...* प्राप्त करेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 71* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जन-उद्धारक आचार्य*
*करेंगे या मरेंगे*
स्वामीजी अपने कार्य को प्राणों की बाजी लगाकर करने वाले व्यक्ति थे। या तो वे कार्य को कर लेते थे या फिर उसकी सिद्धि के लिए अपने को मिटा देने को उद्यत रहते थे। यही दृढ़ता उनकी सफलता का मंत्र था। अपने कष्टमय जीवन और उसके पश्चात् मिली आशातीत सफलता का उल्लेख करते हुए उन्होंने मुनि हेमराजजी को अपने संस्मरण सुनाते समय जो कुछ कहा है, वह उनकी इसी दृढ़ता को सिद्ध करता है। उनके वे प्रेरक शब्द इस प्रकार हैं—
*म्हे उणा नै छोड्या जद पांच वर्ष तांईं तो पूरो आहार न मिल्यो...। आहार-पाणी जाच नै उजाड़ में सर्व साध परहा जावता। रूंखरा री छांयां आहर-पाणी मेल नै आतापना लेता। आथण रा पाछा गांव में आवता। इण रीते कष्ट भोगवता, कर्म काटता। म्हे या न जाणता, म्हारो मारग जमसी, नै म्हां में यूं दीक्षा लेसी, नै यूं श्रावक-श्राविका हुसी। जाण्यो, आत्मा रा कारज सारसां, मर पूरा देसां, इम जाण नै तपस्या करता...।*
स्वामीजी के उपर्युक्त कथन से जहां यह अच्छी तरह जाना जा सकता है कि उन्हें अनेक वर्षों तक जनता की उत्कट अवज्ञा का सामना करना पड़ा था और उन्हें जितनी सफलता मिली थी, उसकी स्वयं उन्हें कोई संभावना नहीं थी। वहां यह भी स्पष्ट हो जाता है कि वे अपने निश्चय से अंशमात्र भी विचलित होने वाले नहीं थे। जनता का सहयोग न मिलने पर वे अकेले ही अभीष्ट मार्ग पर बढ़ चले थे। कवींद्र रवींद्र की निम्नोक्त पंक्तियां उनके एकाकी गमन पर बहुत ही ठीक उतरती हैं—
*जोदि तोर डाक सुने केउ ना आसे,*
*तबे एकला चल ओरे।*
*एकला चल, एकला चल, एकला चल ओरे।।*
अर्थात् 'यदि तुम्हारा आह्वान सुनकर भी कोई साथ चलने को उद्यत न हो तो तुम अकेले ही चल पड़ो, अकेले ही चल पड़ो।'
सत्य तथा न्याय के पद पर चलते रहने का स्वामीजी का अद्वितीय आग्रह भर्तृहरि के इस सूक्त को याद दिला देता है—
*निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु,*
*लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।*
*अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा,*
*न्याय्यात् पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः।।*
अर्थात् 'धीर पुरुष न्याय-पथ से एक पग भी इधर-उधर नहीं होते। ऐसा करने में लोग चाहे उनकी निंदा करें या स्तुति, संपत्ति ठहरे या जाए, मृत्यु चाहे आज ही आ जाए या युगों बाद, वे उनकी कोई परवाह नहीं करते।' *आत्मा रा कारज सारसां मर पूरा देसां*— स्वामीजी के ये शब्द *कार्यं वा साधयेयं, देहं वा पाततेयम्* अर्थात— 'करेंगे या मरेंगे' कि भारतीय ऋषि-मानस से उद्भूत शाश्वत प्रतिज्ञा को एक बार फिर से दोहरा देने वाले थे। उनकी वह अपराजेय प्रतिज्ञा ही उनके जीवन-सूत्र की संचालक थी।
*स्वामीजी के जीवन-क्रम को बदलने वाली... उन्हें एक जन-उद्धारक आचार्य के रूप में जन-जीवन में लाने वाली... एक प्रेरक घटना...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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🌊 *नैतिकता की सुर-सरिता में जन-जन मन पावन हो* 💦
🙏 *पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ आज कर रहे..*
🏰 *'बेंगलुरु' - "नगर प्रवेश"* 🏰
🛣 *गुरुदेव का आज प्रातःकाल का विहार लगभग 12.20 कि.मी. का..*
⛩ *आज दिन का प्रवास: श्री पार्श्व सुशील धाम जैन मंदिर - अत्तिबेले (बेंगलुरु-कर्नाटक)*
*लोकेशन:*
https://maps.app.goo.gl/S9FxU2FkHtwwccwF9
👉 *आज के विहार का मनोरम दृश्य..*
दिनांक: 20/06/2019
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 छापर - मुमुक्षु प्रज्ञा का मंगलभावना समारोह
👉 सोलापुर ~ तेरापंथ महिला मंडल का अध्यक्षीय मनोनयन
🔹 जैन संस्कार विधि से सामूहिक संस्कार
👉 राउरकेला - कार्यशाला का आयोजन
👉 इस्लामपुर - CONNECTION with OPPORTUNITIES 'सही अवसर की करे पहचान, सफलता की राह बने आसान' कार्यशाला का आयोजन
👉 पूर्वांचल कोलकात्ता - 'सीख लें अगर रिश्तों की ABCD, खुशहाल रहेगी हर पीढ़ी' कार्यशाला का आयोजन
👉 अहमदाबाद - आध्यात्मिक मिलन समारोह
👉 सि स्कीम जयपुर - "सोच बदलें- दुनिया बदलें" कार्यशाला का आयोजन
👉 सरदारशहर - शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन
प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद 🌻*
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#तटस्था की #सापेक्षता*: #श्रंखला ३*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482
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🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला १६९* - *चित्त शुद्धि और समाधी ५*
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