24.06.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 24.06.2019
Updated: 25.06.2019

Update

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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 62* 📖

*मूल्यांकन की दृष्टि*

गतांक से आगे...

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मानतुंग कहते हैं— सब दिशाओं में नक्षत्र और तारे हैं। प्रकाश सब दिशाओं में जाता है, किंतु सूर्य को सब दिशाएं उत्पन्न नहीं करतीं। सूर्य किस दिशा में निकलता है? अंशु सब दिशाओं में है, पर अंशु का जाल सब दिशाओं में नहीं है। अंशुमाली को पूर्व दिशा ही उत्पन्न करती है। मानतुंग ने बहुत सुंदर तुलना की है— प्रकाश होना एक बात है, प्रकाशपुंज को प्रकट करना दूसरी बात है। जब प्रकाशपुंज प्रकट होता है, सारी दिशाएं प्रकाशित हो जाती हैं। माता मरुदेवा ने उस प्रकाशपुंज को जन्म दिया, जिससे पूरा अध्यात्म-जगत् आलोकित हो गया। इस समग्र भावना को मानतुंग ने प्रस्तुत श्लोक में समाहित कर दिया—

*स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान्,*
*नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता।*
*सर्वा दिशो दधति भानि सहस्ररश्मिं,*
*प्राच्येव दिग् जनयति स्फरदंशुजालम्।।*

इस स्तुति में आचार्य ने न मरुदेवा के जन्म और शरीर को महत्त्व दिया, न ऋषभ के जन्म और शरीर को महत्त्व दिया। केवल गुणात्मक विशेषता का वर्णन किया है। गुणी आदमी के गुणों को जानने वाले लोग इस दुनिया में बहुत कम होते हैं। आदमी में अवगुणों को ग्रहण करने की दृष्टि तो ज्यादा विकसित होती है, किंतु गुणों को ग्रहण करने की दृष्टि प्रायः संकुचित होती है। जहां किसी के गुणानुवाद का प्रसंग आता है, मुंह बंद सा हो जाता है। जहां अवर्णवाद अथवा निंदा का प्रसंग आता है, मुंह विकस्वर बन जाता है। गुणी के गुणों की पहचान और मूल्यांकन करने में सब व्यक्ति कुशल नहीं होते। रत्न की पहचान और मूल्यांकन जितना एक जौहरी कर सकता है, उतना एक आदिवासी भील नहीं कर सकता। एक आदिवासी रत्न को कांच का टुकड़ा मानता है और उसका मूल्य होता है पांच रुपये। एक रत्न परीक्षक रत्न को बहुमूल्य मणि और पन्ने के रूप में देखता है। उसके लिए वह सवा लाख का भी हो सकता है, नौ लाख का भी हो सकता है और करोड़ का भी हो सकता है।

भील और उसकी पत्नी कहीं जा रहे थे। रास्ते में श्वेत मोती का हार मिल गया। भील ने कहा— 'देखो, मोती की माला है, पहन लो।' भील पत्नी बोली— 'नहीं चाहिए, ऐसी माला। केवल श्वेत मोती हैं। इनसे तो अच्छा है मेरे गले में पड़ा हुआ गुंगचियों का हार। लाल और काले रंग का यह हार कितना अच्छा लगता है। इसके सामने ये मोती कुछ भी नहीं हैं।'

जिसने गुंगचियों के रक्त-श्याम रंग को ही मूल्यांकन माना है, वह कभी महार्ध्य रत्नों का मूल्य नहीं आ सकता। गुणों के मूल्यांकन के लिए जैसी दृष्टि चाहिए, वह सब को प्राप्त नहीं होती। मानतुंग कह रहे हैं— कोई दूसरा आपके गुणों का मूल्यांकन करे या न करे, किंतु मेरी दृष्टि में इन गुणों का मूल्य अनिर्वचनीय है, इसीलिए मैं यह कह सकता हूं— ऐसा पुत्र किसी माँ ने पैदा नहीं किया।

*आचार्य मानतुंग भगवान् ऋषभ का गुणोत्कीर्तन किस प्रकार कर रहे हैं...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 74* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*जन-उद्धारक आचार्य*

*आत्म-बल ही सहायक*

स्वामीजी के पास उस समय हर प्रकार की सामग्री का प्रायः अभाव ही था। वे जहां जाते, वहां अधिकांश व्यक्ति उनके विरोधी होते, सहायक बहुधा कोई नहीं होता। यदि कोई होता भी तो वह सामाजिक बहिष्कार के भय से खुलकर सामने नहीं आ पाता। प्रायः प्रत्येक गांव में शास्त्रार्थ या चर्चा का वातावरण बना रहता। अपने विरुद्ध प्रसारित की गई भ्रांतियों का निराकरण करने में भी उन्हें काफी शक्ति लगानी पड़ती। स्वयं सहित आठ साधुओं का छोटा सा संघ और अंगुली-गणनीय श्रावक-वर्ग, बस इसी नगण्य सामग्री के आधार पर उन्होंने अपना कार्य प्रारंभ किया। उस समय यदि कोई उनका प्रबल सहायक था, तो वह एकमात्र आत्म-बल ही था। उसी के आधार पर उन्होंने वैसा कार्य कर दिखाया, जैसा सभी प्रकार की साधन-संपन्नता में भी हो पाना संभव नहीं होता। चारों ओर से घुमड़ कर आती हुई विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने कभी अपना धैर्य नहीं खोया और धीरे-धीरे उन सभी पर विजय प्राप्त कर ली। यह उनके व्यक्तित्व की विरल-प्राप्य विशेषता थी।

संस्कृत-कवि वागीश्वर ने एक नीति श्लोक में लंका-अभियान के समय राम की विषम स्थितियों का वर्णन करते हुए लिखा है—

*विजेतव्या लङ्का चरण-तरणीयो जलनिधिः,*
*विपक्षः पौलस्त्यो रणभुवि सहायाश्च कपयः।*
*तथाप्येको रामः सकलमवधीद् राक्षस-कुलं,*
*क्रियासिद्धिः सत्त्वे वसति महतां नोपकरणे।।*

अर्थात् 'लंका जैसी दुर्जेय नगरी को जीतना था, समुद्र के अगाध जल को लांघना था, रावण जैसे बलिष्ठ-शत्रु से भिड़ंत थी, रण-भूमि में सहायक थे मात्र बंदर, फिर भी अकेले राम ने समग्र राक्षस-वंश को पराजित कर दिया, क्योंकि कार्य-सिद्धि महापुरुषों के आत्म-बल पर जितनी आधारित होती है, उतनी बाह्य उपकरणों पर नहीं।' राम की उपर्युक्त स्थिति से स्वामीजी की तत्कालीन स्थिति बहुत कुछ मेल खाती है। उनकी विजय का मूल भी उन्हें प्राप्त साधारण साधन-सामग्री में नहीं, किंतु उनके अपार आत्मबल में निहित था। अन्यथा इतने बड़े सुनियोजित विरोध के सम्मुख अकेले व्यक्ति का टिक पाना और फिर उसमें विजय प्राप्त करना असंभव ही होता। एकमात्र स्वामीजी के आत्मबल ने ही वहां असंभव को भी संभव कर दिखाया। उसी के बल पर वे सभी समस्याओं के सम्मुख धैर्य के साथ डटे ही नहीं रहे, अपितु उन सभी को परास्त किया।

*जब धर्म-प्रचार कार्य में स्वामीजी को सफलता मिलने लगी... तब वे अपने आपको क्या मानते थे...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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👉 इचलकरंजी - योग दिवस का आयोजन
👉 पीलीबंगा - "सही अवसर की करें पहचान सफलता की राह बने आसान" कार्यशाला का आयो
👉 मंडिया (कर्नाटक) - महिला मंडल का शपथ ग्रहण
👉 रायपुर - आचार्य तुलसी महाप्रयाण दिवस
👉 कांलावाली - राज्य स्तरीय शोभा यात्रा व मंगल भावना कार्यक्रम
👉 सिंधनुर - शोभायात्रा एवं भिक्षु भक्ति संध्या

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 24 जून 2019

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

News in Hindi

🙏 *पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ 🛣 प्रातःविहार करके 'कॉक्स टाउन -बेंगलुरु' (Karnataka) पधारे..*

💦 *प्रवचन स्थल एवं साध्वीप्रमुखा श्री जी का आज दिन का प्रवास* - *गोवर्नमेंट फर्स्ट ग्रेड कॉलेज (एम एम रोड - बेंगलुरु)*
*लोकेशन:*
https://maps.app.goo.gl/tsLJLDXDCPwXBRy6A

⛩ *गुरुदेव का आज दिन का प्रवास: श्री श्रीचंद जी मोहणोत के यहां - कॉक्स टाउन (बेंगलुरु)*
*लोकेशन:*
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🙏 *साध्वीप्रमुखा श्री जी विहार करते हुए..*
👉 *आज के विहार के मनोरम दृश्य..*

दिनांक: 24/06/2019
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