Update
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*योग साधना* की *महत्वपूर्ण प्रचलित* पध्दति है -
*"प्रेक्षाध्यान"*
*प्रेक्षाध्यान* से संबंधित *साहित्य* की श्रंखला *में* प्रस्तुत है -
'धर्मचक्रवती', 'युगप्रधान', *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* की *कृति..*
📖 *"प्रेक्षाध्यान - दर्शन और प्रयोग"*
*जैन विश्व भारती* द्वारा *प्रकाशित यह पुस्तक* अब एक अभिनव रूप में *उपलब्ध हैं।* शीघ्र *बुकिंग* करवाकर सुरक्षित करवाएं।
*सम्पर्क सूत्र: 8742004849, 7002359890*
*मीडिया एवं प्रचार प्रसार विभाग*
🌐 *जैन विश्व भारती* 🌐
प्रसारक:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 75* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जन-उद्धारक आचार्य*
*संदेशवाहक*
धीरे-धीरे प्रचार-कार्य में उन्हें अकल्पनीय सफलता मिलने लगी। लोग उनसे अपने-अपने ग्रामों में पधारने के लिए प्रार्थना करने लगे। क्वचित् ग्राम के ग्राम उनके भक्त बन गए। स्वामीजी का मन उस भक्ति-भाव से कभी अहंकार-पूरित नहीं हुआ। वे तो अपने आपको भगवान् का एक संदेश-वाहक ही मानते रहे। केलवा के रावल ठाकुर मोखमसिंहजी के एक प्रश्न पर दिए गए उत्तर से उनके यह भावना एकदम स्पष्ट हो जाती है। एक बार केलवा में स्वामीजी विराजमान थे। धर्म-परिषद् जुड़ी हुई थी। रावल मोखमसिंहजी दर्शन करने तथा व्याख्यान सुनने के लिए आए। व्याख्यान के पश्चात् वे बातचीत करने के लिए उपपात में बैठ गए। कुछ लोग बाहर से आए हुए थे। वे स्वामीजी से अपने यहां पधारने के लिए प्रार्थना कर रहे थे। स्वामीजी जब उनसे निवृत्त हुए तो रावलजी ने प्रश्न करते हुए कहा— 'स्वामीजी आपके पास गांव-गांव की प्रार्थनाएं आती हैं, लोग आपकी इतनी भक्ति करते हैं, आपको अपने यहां आया देखकर हर्ष-विभोर हो उठते हैं। आपमें ऐसी क्या विशेषता है कि जिससे आपके प्रति लोगों का इतना आकर्षण है?'
स्वामीजी ने कहा— 'जिस प्रकार किसी पतिव्रता नारी का पति परदेश में हो और उसका संदेशवाहक बनकर कोई व्यक्ति उसके यहां आए, तो वह बहुत प्रसन्न होती है। उसको ससम्मान पास में बिठाकर सारे समाचार पूछती है, भोजन आदि सुविधाओं की भी व्यवस्था करती है। संदेशवाहक का वह सम्मान उसकी अपनी गुण-गरिमा से नहीं, किंतु पति का संदेश लेकर आने से होता है। उसी प्रकार जनता हमारा जो सम्मान करती है तथा हमें जो चाहती है, उसका कारण भी यही है कि हम भगवान् के संदेशवाहक हैं। हम उन्हें भगवद्-वाणी सुनाते हैं। उससे सभी को आत्म-सुख और शांति की प्राप्ति होती है।'
ठाकुर मोखमसिंहजी का उपयुक्त प्रश्न तथा स्वामीजी का उत्तर इस बात के प्रमाण हैं कि स्वामीजी जब धर्म-प्रचार की ओर ध्यान देने लगे तब जनता में उनके प्रति आकर्षण बढ़ा और वह उनके भक्त बनने लगी। स्वामीजी में एक चुंबकीय शक्ति थी, जिससे लोग स्वतः ही उनकी ओर आकृष्ट होते चले जाते थे। जो लोग स्वामीजी के भक्त बने, उनके प्रति उनके पूर्व गुरुओं ने संभवतः पूर्ण निराश होकर ही यह कहा होगा— *भीखण रा भरमाया, कदे न पाछा आया।* स्वामीजी वस्तुतः एक महान् साधक, महान् सुधारक, महान् आचार्य तथा महान् जन-उद्धारक पुरुष के रूप में इस धरती पर आए और अपने लक्ष्य में पूर्णरूपेण सफल होकर जनता के हृदयेश्वर बन गए।
*तेरापंथ धर्मसंघ में चौथे तीर्थ... यानी साध्वी-दीक्षा व धर्मसंघ में श्रावक-श्राविकाओं... साधु-साध्वियों की संख्या...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 63* 📖
*गुणोत्कीर्तन*
भक्तामर का पहला पद है भक्त। जहां यह भक्ति का स्तोत्र है, भक्तिरस से परिपूर्ण है, वहां इसमें तत्त्वज्ञान और दर्शन भी है, आचार और व्यवहार भी है। भक्ति का सूचक पद है— 'त्वाम्'। किसी बड़े आदमी को 'तू' अथवा 'तुम' कह दो तो उसे अच्छा नहीं लगेगा। लोग 'तुम' शब्द के प्रयोग को बुरा मान लेते हैं, इसलिए आप कहना पड़ता है। आप शब्द में रस तो नहीं है, किंतु व्यक्ति यह मानकर 'आप' शब्द का प्रयोग करता है कि अमुक आदमी बड़ा है। भगवान् भी बड़े हैं किंतु वे भक्त से बड़े नहीं है।
प्रश्न आया— 'बड़ा कौन है?'
कहा गया— 'पृथ्वी बड़ी है।'
'क्या पृथ्वी से बड़ा कोई नहीं है?'
'पृथ्वी से बड़ा है समुद्र। पृथ्वी का भाग बहुत छोटा है, जल का भाग बहुत बड़ा है।'
'क्या समुद्र से बड़ा कोई नहीं है?'
'आकाश समुद्र से बड़ा है। उसमें सब समाए हुए हैं।'
तर्क आगे बढ़ा— 'आकाश से बड़ा कौन है?'
'आकाश से बड़ा है भगवान्। उसमें आकाश समाया हुआ है।'
'क्या भगवान् सबसे बड़ा है?'
'नहीं, भगवान से बड़ा है भक्त। भक्त के हृदय में भगवान् समा जाता है, इसलिए भक्त भगवान् से भी बड़ा है।'
भक्त बड़ा है, इसलिए वह भगवान् के लिए *'त्वाम्'—* तुम शब्द का प्रयोग कर सकता है। यदि वह बड़ा नहीं होता तो उसे 'तू' नहीं कहना पड़ता। भक्ति इतनी महान् होती है कि उसमें 'तू' का प्रयोग होता है। यदि 'तू' नहीं होता तो भक्ति का रस ही समाप्त हो जाता। भक्ति में जो रस है, वह *'त्वाम्'—* 'तू' कहने में है, वह *'भवन्तम्'—* आप कहने में नहीं है। मानतुंग का हृदय भक्ति से परिपूर्ण था, इसीलिए उन्होंने ऋषभ के लिए *'त्वाम्'—* तू शब्द का प्रयोग किया।
'त्वाम्' संबोधन से अपनी स्तुति प्रारंभ करते हुए मानतुंग ने कहा— मुनिजन तुम्हें परम पुमान् कहते हैं। यहां मुनि का अर्थ साधु नहीं है। मुनि का अर्थ है ज्ञानी। प्राकृत में इसका रूप बनता है— मुणयतीति मुणी। संस्कृत का रूप है— मन्यते इति मुनिः अथवा मननात् मुनिः। मुनि का अर्थ यह भी किया जाता है— मौनेन मुनिः– मौन रखने वाला मुनि होता है। यदि मौन रखने से ही मुनि बन जाए तो बहुत सारे अमुनि भी मुनि कहलाएंगे। अनेक लोग शारीरिक विकृतियों के कारण बोल नहीं पाते। अनेक शिशु बचपन से ही स्वर-यंत्र की विकृति से पीड़ित होते हैं। अनेक ऐसे शिशु होते हैं, जो न सुन पाते हैं और न कुछ कह पाते हैं। कुछ लोग बहुत रूपवान् हैं, किंतु अज्ञानी होने के कारण बोल नहीं पाते। वस्तुतः ऐसे लोग मुनि नहीं कहलाते। मौन का अर्थ है ज्ञान।
आचारांग सूत्र में कहा गया है— जो ज्ञानी लोग हैं, वे अपने आप को परम पुमान् मानते हैं, परम पुरुष मानते हैं। पुमान् शब्द के दो अर्थ हैं। एक बाह्य अर्थ है और दूसरा अंतरंग अर्थ। बाह्य अर्थ है शरीर। अंतरंग अर्थ है शरीर में रहने वाला जीव।
*आचार्य मानतुंग भगवान् ऋषभ के पुमान् के बारे में क्या कह रहे हैं...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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🙏 *पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ..*
🛣 *प्रातःविहार करके 'गांधीनगर -बेंगलुरु' (Karnataka) पधारे..*
⛩ *गुरुदेव का आज दिन का प्रवास: तेरापंथ सभा भवन - गांधीनगर (बेंगलुरु)*
*लोकेशन:*
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💦 *प्रवचन स्थल* - *सेंट्रल कॉलेज ग्राउंड (गांधीनगर- बेंगलुरु)*
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👉 *आज के विहार का मनोरम दृश्य..*
दिनांक: 25/06/2019
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला १७४* - *चित्त शुद्धि और समाधी ११०*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
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