05.08.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 05.08.2019
Updated: 05.08.2019

Update

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'संबोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी संबोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'संबोधि' के माध्यम से...

🔰 *संबोधि* 🔰

📜 *श्रृंखला -- 2* 📜

*॥आशीर्वचन॥*

गतांक से आगे...

संबोधि का रचना क्रम श्रीमद्भगवद्गीता गीता जैसा है। योगीराज कृष्ण की तरह इसके उपदेशक तीर्थंकर महावीर हैं। संबोधि का अर्जुन भंभासार श्रेणिक का पुत्र मुनि मेघकुमार है। इसकी संवादात्मक शैली शिक्षित और अल्प-शिक्षित सभी लोगों के लिए समान रूप से उपयोगी होगी।

धवल समारोह पर 'मनोनुशासनम्' लोगों के सामने आया। उसमें जैन-दर्शन के आधार पर योग-प्रक्रिया का दिग्दर्शन कराया गया है। उसके प्रकाश में आने के बाद मुझे (गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी) यह आवश्यकता प्रतीत हो रही थी कि उस प्रक्रिया को विस्तृत और विश्लेषणपूर्वक समझाने वाले किसी ग्रंथ की रचना अवश्य हो। 'संबोधि' को देख मेरी वह भावना बहुत अंशों में साकार हुई।

मुझे (गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी) तब बहुत आश्चर्य हुआ, जब शिष्य मुनि नथमल (अब आचार्य महाप्रज्ञ) ने मेरे बिना किसी पूर्व इंगित के यह कार्य संपन्न कर मेरे समक्ष रखा। यद्यपि उसके पश्चात् इसमें परिवर्तन-परिवर्द्धन भी किया गया, किंतु प्रारंभ की 'संबोधि' स्वयं संबुद्ध ही थी।

संबोधि शब्द सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र को अपने में समेटे हुए है। सम्यक् दर्शन के बिना ज्ञान अज्ञान बना रहता है और चारित्र के अभाव में ज्ञान और दर्शन निष्क्रिय रह जाते हैं। आत्म-दर्शन के लिए इन तीनों का सामान और अपरिहार्य महत्त्व है। इस दृष्टि को ध्यान में रखते हुए इसका नाम 'संबोधि' रखा गया है।

लेखक ने अपनी प्रतिपादन-पद्धति में समयानुसार कितना परिवर्तन कर लिया है, यह इनके पिछले और वर्तमान साहित्य को देखने से ही पता लग जाता है। 'संबोधि' के पद जहां सरल और रोचक बन पड़े हैं, वहां उतनी ही सफलतापूर्वक गहराई में पैठे हैं। उनकी सरलता और मौलिकता का एक कारण यह भी है कि वे भगवान् महावीर की मूलभूत वाणी पर आधारित हैं। बहुत सारे पद्य तो अनूदित हैं, पर उनका संयोजन सर्वथा नवीन शैली लिए हुए हैं। आशा है अध्यात्म जिज्ञासु व्यक्तियों को यह ग्रंथ एक अच्छी खुराक देगा।

मुझे (गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी) गौरव है कि मेरे साधु-समुदाय ने मौलिक साहित्य-सर्जन की दिशा में प्रगति की है और कर रहा है।

*गणाधिपति तुलसी*

*'संबोधि' के महान् ग्रंथकार आचार्यश्री महाप्रज्ञ के भाव प्रस्तुति के माध्यम से...* जानेंगे... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...

प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 106* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*जीवन के विविध पहलू*

*3. आकर्षण के केन्द्र*

*रोकथाम के बावजूद*

स्वामीजी जनता के लिए आकर्षण के केंद्र बने हुए थे। वे जहां भी जाते, लोग उत्सुकता पूर्वक उनकी बाट देखते रहते। किसी स्थान पर कुछ दिन रहकर जब वे विहार करते, तो लोग तरसते-से रह जाते। जिनको उनसे मिलने का कभी अवसर नहीं मिला होता, वे उनके विषय में नाना कल्पना करते रहते। जो मिल सकते थे, वे अवसर पाते ही मिलने को लालायित रहते। जो एक बार मिल लेते, वे प्रायः सदा के लिए उनके ही हो जाया करते थे। उनके विरोधी इसीलिए अपने अनुयायियों को उनके पास जाने से रोकने का प्रयास किया करते, किंतु वे उस कार्य में बहुधा असफल ही रहते। स्वामीजी का आकर्षण सब रोकथामों के बावजूद उन्हें अपनी ओर खींच लिया करता था।

*ऐसा हठ मत करना*

स्वामीजी सिरियारी से विहार करने लगे, जनता ने कुछ दिन और ठहरने की प्रार्थना की। वे नहीं माने। प्रार्थना का रूप हठ में बदलने लगा। फिर भी नहीं माने, तो सामजी भंडारी ने आगे बढ़कर अपनी पगड़ी स्वामीजी के पैरों में रख दी और कहा— 'कम-से-कम आज तो आपको विराजना ही पड़ेगा, इस बगड़ी के लाज रखनी पड़ेगी।' स्वामीजी ने उनका मन नहीं तोड़ा और उस दिन के लिए ठहरने की स्वीकृति देते हुए कहा— 'आज तो तुम्हारी प्रार्थना मान लेते हैं, पर फिर कभी ऐसा हठ मत करना।'

*ऐसी प्रार्थना मत करना*

अगरिया से स्वामी विहार करने लगे, तो लोगों ने कुछ दिन और विराजने की प्रार्थना की। उन्होंने उसे अस्वीकार करते हुए विहार कर दिया। जनता का मन एकदम उदास हो गया।

मुनि भारमलजी ने जनता के अत्यंत उदासी देखी तो मार्ग में स्वामीजी से कहा— 'आपने विहार तो कर दिया, किंतु यहां जनता बहुत उदास हो गई है। आप उनकी प्रार्थना मान लेते तो अच्छा रहता।'

दयालु स्वामीजी ने विहार स्थगित कर दिया और वापस ग्राम में पधार गए। उन्होंने सबको सावधान करते हुए कहा— 'संतों के विहार से ऐसी उदासी क्यों आनी चाहिए?' मुनि भारमलजी ने भी कहा— 'आज तो तुम्हारी बात मान कर वापस आ गए हैं, पर फिर कभी ऐसी प्रार्थना मत करना।'

*स्वामीजी का आकर्षण जनता ने किस कदर छाया हुआ था... कुछ प्रसंगों के माध्यम से...* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 94* 📖

*परिणमन की शक्ति*

गतांक से आगे...

ऋषभ के पैर का वर्णन करते हुए स्तुतिकार ने कहा— आपका पैर स्वर्ण-कमल के विकस्वर पुञ्ज जैसा है। यदि स्वर्ण कमल एक है तो पुञ्ज जैसा नहीं बनेगा। स्वर्ण कमल नौ हैं तो विकस्वर कांति का पुञ्ज होगा। एक ओर उस काति-पुञ्ज से चमकती हुई पीली आभा प्रस्फुटित हो रही है। दूसरी ओर आपके नख से निकलती हुई किरणों की शिखा बन रही है। इस कारण आपके पैर बड़े सुंदर लग रहे हैं। स्तुतिकार कहते हैं— कांति युक्त स्वर्णिम पीत आभा वाले चरण और नखों से फूटती रश्मियों से ऐसा लग रहा है, मानो दर्पण आ गया है। किसी को अपना मुंह देखना है तो उस दर्पण में देख सकता है। प्रकाशशील पारदर्शी रश्मियों से प्रत्येक बिंब प्रतिबिंबित हो रहा है। इस प्रकार के आपके चरण जहां टिकते हैं, वहां देवता कमल का निर्माण कर देते हैं—

*उन्निद्रहेमनवपंकजपुञ्जकान्ती*
*पर्युल्लसन्नखमयूखशिखाभिरामौ।।*
*पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्रधत्तः!*
*पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयंति।।*

यह कितना विचित्र अतिशय है— जहां भी आप चलते हैं, कमल पर चलते हैं, जमीन पर आपके पैर नहीं टिकते। इस अतिशय को समझने में भी कठिनाई होती है कि जहां जहां चरण पड़ते हैं, वहां-वहां कमल निर्मित हो जाते हैं। क्या देवता निरंतर सेवा में रहते हैं? ऐसा माना जाता है— कोटि-कोटि देवता निरंतर तीर्थंकर की सेवा में रहते हैं। एक जैन पुराण में उल्लेख है— वासुदेव की सेवा में आठ हजार देव, चक्रवर्ती की सेवा में सोलह हजार देव और तीर्थंकर की सेवा में कोटि देव रहते हैं। इतने देव रहते हैं फिर भी दिखाई क्यों नहीं देते? हम कभी किसी श्रावक के घर जाते हैं। वहां देव-स्थान में मंगलपाठ सुनाते हैं। अनेक बार देवता किसी व्यक्ति के माध्यम से बोलते हैं— हम तो सदा आपकी सेवा में ही रहते हैं। संभव है इसी प्रकार देव तीर्थंकर की सेवा में रहते हैं और उनके चरणों के नीचे स्वर्ण-कमल का निर्माण करते हैं। हरिकेशबल का प्रसंग विश्रुत है। जब वे यज्ञपाठ में गए, यक्ष उनकी सेवा में था। उस समय एक घटना घटित हुई। हरिकेशबल के शरीर में प्रविष्ट होकर ब्राह्मण कुमारों से संवाद किसने किया? उन्हें मूर्च्छित किसने किया? क्या हरिकेशबल ने किया? यह मुनि की सेवा में रहने वाले यक्ष की करामात थी।

जो सिद्धयोगी होते हैं, उनकी साधना प्रबल होती है। उनके परिपार्श्व में कुछ विशिष्ट चमत्कार भी घटित होते हैं। वे योगी चमत्कार नहीं दिखाते हैं, किंतु चमत्कार घटित हो जाते हैं। योग की महिमा परिणामिक भाव से होती है। यदि यह न मानें अतिशय देवकृत होते हैं तो यह भी माना जा सकता है— ये स्वतः परिणमन से होते हैं।

*अतिशय स्वतः परिणमन से होते हैं... उन्नीसवीं-बीसवीं शताब्दी की एक घटना के माध्यम से...* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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👉 *कुम्बलगुडु, बैंगलोर से -*

💠 *अभातेमम के तत्वावधान में*
💠 *15 वां राष्ट्रीय कन्या मण्डल अधिवेशन*

🌼 *सान्निध्य - आचार्य श्री महाश्रमण*
🌼 *प्रेरणा पाथेय - साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभा*

*⃣ *गरिमामय उपस्थिति - अभतेमम अध्यक्ष श्रीमती कुमुद कच्छारा*

🔼 ध्वजारोहण के साथअधिवेशन का विधिवत शुभारम्भ
🔼 प्रथम सत्र - तेरापंथ की जन्म कहानी
🔼 साध्वी प्रमुखा श्री जी का प्रेरणादायी उद्बोधन

दिनांक 05-08-2019

प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻

👉 *कुम्बलगुडु, बैंगलोर से -*

💠 *अभातेमम के तत्वावधान में*
💠 *15 वां राष्ट्रीय कन्या मण्डल अधिवेशन*

🌼 *सान्निध्य - आचार्य श्री महाश्रमण*
🌼 *प्रेरणा पाथेय - साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभा*

*⃣ *गरिमामय उपस्थिति - अभातेमम अध्यक्ष श्रीमती कुमुद कच्छारा*

🔼 *पूज्यवर से प्रेरणा पाथेय प्राप्त करते हुए*
🔼 *रैली के रूप में पूज्यवर के सान्निध्य में*
🔼 देश भर के 80 क्षेत्र से लगभग 600 कन्याए व 100 प्रभारी अधिवेशन में भाग लेने हेतु पहुंची

दिनांक 05-08-2019

प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻

News in Hindi

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