08.09.2019 ►Acharya Shri Gyan Sagar Ji Maharaj Ke Bhakt ►News

Published: 12.09.2019
Updated: 12.09.2019
उत्तम संयम धर्म अनुशासन का पाठ पढाने आया है....

आज दिनांक 8 सितंबर को श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र, तिजारा की पावन धरा पर पर्यूषण पर्वराज की पावन बेला में परम् पूज्य आचार्य श्री 108 ज्ञानसागर जी मुनिराज ने अपने मंगल प्रवचन में कहा कि उत्तम संयम धर्म अनुशासन का पाठ पढ़ाने आया है।
संस्कार प्रदान करने वाली दसलक्षण धर्म रूपी दशदिनी पाठशाला में, प्रथम दिन उत्तम क्षमा धर्म के द्वारा प्रतिकूलता के क्षणों में समता भाव रखने का पाठ पढ़ाया था।
द्वितीय दिन उत्तम आर्जव धर्म ने अहंकार रूपी अंधकार को दूर करने की प्रेरणा दी।
तृतीय दिन उत्तम मार्दव धर्म ने नपा तुला जीवन जीने का पाठ पढ़ाया।
चतुर्थ दिन उत्तम शौच धर्म ने लोभ कषाय से दूर होने का पाठ पढ़ाया।
पांचवे दिन उत्तम सत्य धर्म में सभी को हित-मित - प्रिय वचन बोलने का पाठ पढ़ाया।

आज उत्तम संयम धर्म सभी को अनुशासन का पाठ पढ़ाने, संतुलित जीवन जीने, और सावधानीपूर्वक जीवन का पाठ पढ़ाने आया है। जिस संयम का पाठ आपको रसोईघर से भी सीखने को मिलता है। अगर आप भोजन बनाते समय नमक की मात्रा दूनी डाल देंगे तो क्या होगा, आप स्वयं भोजन नहीं कर पाओगे। किस चीज में कितना सामान डालना इसकी जानकारी जरूरी है रास्ते पर चलने के भी नियम है, यह एक अनुशासन है अगर आप गलत दिशा में चलता है तो आप की दशा बिगड़ सकती है।

वीणा के तार अगर संतुलित होंगे, तभी उसका स्वर निकलेगाऔर ज्यादा कसे होंगे तब भी स्वर नही निकलेंगे और ज्यादा ढीले होंगे तब भी स्वर नही निकलेंगे। उन तारो को संतुलित होना होगा ।

संयम का अर्थ-मैन और इंद्रियों को वश में रखना। जीवो की रक्षा करना, अनुशासित जीवन जीना, इंद्रीय और मन की स्वच्छंद प्रवर्ति को संयमित करना *संयम धर्म* है।
आत्मा रूपी सेठ अकेला 5-5 इन्द्रिय रूपी फोन की घंटियों की पुकार को पूरा करने में अपना पूरा समय निकाल देता है।
कभी स्पर्शन इन्द्रिय की घंटी टन टनाती है अरे! यहां बहुत गर्मी है पंखे ए. सी चलाओ और आप उसकी पूर्ति कर देते हो। कभी रसना इन्द्रिय की घंटी टन टनाती है कि इसमे नमक कम है, इसमें मीठा कम है और आप उसकी पूर्ति कर देते हो। इसी तरह अन्य इंद्रियों की पुकार,मन की पुकार पूरी करने में ही समय निकल जाता है ।

आचार्य कहते हैं कि हाथी स्पर्श इंद्रियों के वश में, मछली रसना इन्द्रिय के वश में, भौंरा घ्राणेन्द्रिय के वश में, पतंगा चक्षु इन्द्रिय के वश में,हीरन कर्ण इन्द्रिय के वश मैं अपने अपने प्राण गंवा देते है, तो मानव तो अहर्निश पांचो इन्द्रियों के विषयों की पूर्ति मैं अपना समय निकाल देता है, तो मानव की क्या दशा होगी।

एक गाड़ी बहुत अच्छी है, पर उस गाड़ी में ब्रेक नहीं है तो वह किसी भी गड्ढे में गिरा सकती है, ठीक उसी प्रकार से जीवन रूपी गाड़ी में संयम रूपी ब्रेक नहीं हैतो यह गाड़ी विनाश के कगार मैं चली जाती है। अतः जीवन रूपी गाड़ी मैं ब्रेक लगाओ।

संयम का अर्थ होश पूर्वक प्रवर्ति करना, जब भी चलो देखभाल कर चलो,जब भी बोलो तोल कर बोलो,जब भी भोजन करो देखभाल कर करो ।सांसारिक जो भी कार्य करने हो, सावधानी पूर्वक करो।

एक देश संयम एवम सकल संयम के भेद से संयम के दो भेद है, जिनका पालन क्रमशःश्रावक और श्रमण करते है।संयम,नियम का संबंध जहाँ मोक्ष से है,वही तन मन की स्वस्थता से भी है,अतः प्रत्येक व्यक्ति को छोटे छोटे नियम का पालन अवश्य करना चाहिए । नियमो के पालन से मनोबल मजबूत होता है।

तन भी स्वस्थ रहता है,संयम जीवन मे सुरक्षा कवच का कार्य करता है,अतः प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शक्ति के अनुसार संयम धर्म का पालन करना चाहिए।

Sources

Acharya Gyan Sagar Ji Maharaj
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