23.09.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 23.09.2019
Updated: 05.10.2019

Updated on 23.09.2019 17:10

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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...

🔰 *सम्बोधि* 🔰

📜 *श्रृंखला -- 46* 📜

*अध्याय~~3*

*॥आत्मकर्तृत्ववाद॥*

💠 *भगवान् प्राह*

*46. शुभं नाम शुभं गोत्रं, शुभमायुश्च लभ्यते।*
*वेदनीयं शुभं जीवः, शुभकर्मोदये सति।।*

शुभ-कर्मों का उदय होने पर जीव को शुभ नाम, शुभ गोत्र, शुभ आयुष्य और शुभ वेदनीय की प्राप्ति होती है।

*47. अशुभं वा शुभं वापि, कर्म जीवस्य बन्धनम्।*
*आत्मस्वरूपसंप्राप्तिः, बन्धे सति न जायते।।*

कर्म शुभ हो या अशुभ, आत्मा के लिए दोनों ही बंधन हैं। जब तक कोई भी बंधन रहता है, तब तक आत्मा को अपने स्वरूप की संप्राप्ति नहीं होती।

*48. सुखानुगामि यद् दुःखं सुखमन्वेषयन् जनः।*
*दुःखमन्वेषयत्येव, पुण्यं तन्न विमुक्तये।।*

क्योंकि सुख के पीछे दुःख लगा हुआ है। अतः जो जीव पौद्गलिक सुख की खोज करता है, वह वस्तुतः दुःख की ही खोज करता है, इसलिए पुण्य से मुक्ति की प्राप्ति नहीं होती।

*49. पुद्गलानां प्रवाहो हि, नैष्कर्म्येण निरुद्ध्यते।*
*त्रुट्यन्ति पापकर्माणि, नवं कर्म न कुर्वतः।।*

कर्म पुद्गलों का जो प्रवाह आत्मा में प्रवाहित हो रहा है, वह नैष्कर्म्य— संवर से रुकता है। जो नए कर्म का संग्रह नहीं करता, उसके पूर्व संचित पाप-कर्म का बंधन टूट जाता है।

*50. अकुर्वतो नवं नास्ति, कर्मबन्धनकारणम्।*
*नोत्पद्यते न प्रियते, यस्य नास्ति पुराकृतम्।।*

जो क्रिया नहीं करता, संवृत हो जाता है, उसके नए कर्मों के बंधन का कारण शेष नहीं रहता। जिसके पहले किए हुए कर्म नहीं हैं, वह न जन्म लेता है और न मरता है।

*कर्मबद्ध जीव का ही निरंतर भवभ्रमण... इच्छा की नहीं, कर्म की प्रधानता... मेघ को आत्म-पुरुषार्थ का उपदेश... अकर्मात्मा का स्वरूप और तदर्थ प्रेरणा...* समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... आगे के श्लोकों में... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...

प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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Updated on 23.09.2019 17:10

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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 133* 📖

*भक्तामर स्तोत्र व अर्थ*

*9. आस्तां तव स्तवनमस्तसमस्तदोषं,*
*त्वत्संकथाऽपि जगतां दूरितानि हन्ति।*
*दूरे सहस्रकिरणः कुरुते प्रभैव,*
*पद्माकरेषु जलजानि विकासभाञ्जि॥*

समस्त दोषों का नाश करने वाला तुम्हारा स्तवन तो दूर, तुम्हारे विषय में बातचीत भी प्राणियों के पापों को नष्ट करती है। सहस्ररश्मि सूर्य तो दूर, उसकी प्रभा ही सरोवरों में अलसाए कमलों को विकस्वर करती है।

*10. नात्यद्भुतं भुवनभूषण! भूतनाथ!*
*भूतैर्गुणैर्भुवि भवन्तमभिष्टुवन्तः।*
*तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किं वा,*
*भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति?॥*

हे भुवनभूषण! हे भूतनाथ! इस धरातल पर यथार्थ गुणों के द्वारा तुम्हारी स्तुति करने वाले तुम्हारे समान हो जाते हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। उस स्वामी से क्या प्रयोजन, जो अपने आश्रित को वैभव से अपने समान नहीं बनाता?

*11. दृष्ट्वा भवन्तमनिमेषविलोकनीयं,*
*नान्यत्र तोषमुपयाति जनस्य चक्षुः।*
*पीत्वा पयः शशिकरद्युतिदुग्धसिन्धोः*
*क्षारं जलं जलनिधेरसितुं क इच्छेत्॥*

तुम अपलक दृष्टि से देखने योग्य हो, अतः तुम्हें देखने के बाद अन्यत्र कहीं भी मनुष्य का चक्षु तोष को प्राप्त नहीं होता। चंद्रमा की किरणों के समान उज्जवल क्षीर समुद्र के दूध को पीकर लवण समुद्र के खारे जल का पान करना कौन चाहेगा?

*12. यैः शान्तरागरुचिभिः परमाणुभिस्त्वं*
*निर्मापितास्त्रिभुवनैकललामभूत!*
*तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां,*
*यत्ते समानमपरं नहि रूपमस्ति॥*

तीन जगत् में असाधारण तिलक समान! वीतराग आभा वाले जिन परमाणुओं ने तुम्हारा निर्माण किया है वे परमाणु इस पृथ्वी पर उसने ही हैं। क्योंकि इस धरती पर तुम्हारे समान रूप वाला दूसरा कोई नहीं है।

*भगवान् ऋषभ के गुणों...* के बारे में जानेंगे और समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻

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Updated on 23.09.2019 17:10

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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 145* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*जीवन के विविध पहलू*

*14. जैसे को तैसा*

*विवाह के बिना धर्म नहीं*

कुछ व्यक्ति स्वामीजी के पास आए और चर्चा करते हुए बोले— 'आप अहिंसा की कितनी भी प्रशस्ति क्यों न करें, परंतु हिंसा के बिना धर्म हो नहीं सकता।' उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा— 'दो श्रावक थे, उन्होंने चने खरीदे। उनमें से एक को उस दिन अग्नि के आरंभ का त्याग था, अतः वह तो कच्चे ही चने चबाने लगा। दूसरे को त्याग नहीं था। उसने चनों के भूगड़े बना लिए। उसी समय एक तपस्वी साधु वहां आ गए। भूगड़े वाले ने पात्र-दान देकर तीर्थंकर-गोत्र का उपार्जन किया। अग्नि के आरंभ का जिसे त्याग था, वह देखता ही रह गया। उसके पास दान देने योग्य कोई वस्तु नहीं थी। इससे सिद्ध होता है कि हिंसा के बिना धर्म नहीं होता।'

स्वामीजी ने कहा— 'यदि तुम लोग ऐसा मानते हो, तो एक दृष्टांत में भी सुनाता हूं। दो श्रावक थे। उनमें से एक ने यावज्जीवन के लिए पूर्ण शीलव्रत स्वीकार किया, तो दूसरे ने विवाह किया। उसके पांच पुत्र हुए। बड़े होने पर उनमें से दो को विराग हुआ, तब पिता ने बड़े हर्ष से दीक्षा की आज्ञा दी और उससे तीर्थंकर-गोत्र का उपार्जन किया। जिसे विवाह का त्याग था, वह देखता ही रह गया। उसके कोई पुत्र नहीं था, अतः दीक्षा दे भी तो किसे?'

दोनों दृष्टांतों की तुलना करते हुए स्वामीजी ने कहा— 'तुम्हारी मान्यता से हिंसा के बिना दान नहीं होता, अतः हिंसा में भी धर्म है। तो तुम्हें यह भी मानना होगा कि पुत्रोत्पत्ति के बिना दीक्षा नहीं दी जा सकती, अतः विवाह में भी धर्म है।'

स्वामीजी के उक्त कथन का वे कोई उत्तर नहीं दे पाए, अतः वह चर्चा वहीं समाप्त हो गई।

*तुमने भी व्यापार नहीं छोड़ा*

रीयां में व्याख्यान देते समय स्वामीजी ने आचार की चौपाई के कुछ पद्य गा कर सुनाए और उनकी व्याख्या करते समय शिथिलाचार के विरुद्ध कुछ विचार व्यक्त किए।

मोतीरामजी बोहरा व्याख्यान सुनने के लिए आए हुए थे। वे स्वामीजी के कट्टर विरोधी थे। उन्हें वे विचार बिलकुल रुचिकर नहीं लगे। उन्होंने स्वामीजी से कहा— 'भीखणजी! बंदर बूढ़ा हो जाता है, तो भी छलांग लगाना नहीं छोड़ता। वही स्थिति तुम्हारी भी है। बूढ़े हो गए हो, फिर भी दूसरों का खंडन करना नहीं छोड़ा है।'

स्वामीजी बोले— 'मेरा कार्य साध्वाचार को सुदृढ़ करना तथा शिथिलाचार को दूर हटाना है। इसे छोड़ा कैसे जा सकता है? तुम अपना ही उदाहरण क्यों नहीं लेते? तुम्हारे पिता ने व्यापार किया और हुंडियां लिखीं। तुम्हारे दादा ने भी वैसा ही किया था और मैं देखता हूं कि अभी तक तुमने भी दुकान उठाई नहीं है।'

दीपचंदजी मुणोत मोतीरामजी के साथ स्वामीजी के पास गए थे। उक्त वार्तालाप के पश्चात् जब वे घर आए, तो अपने मित्रों और संबंधियों से कहा— 'मोतीरामजी के लिए भीखणजी के जो शब्द निकले हैं, उनसे लगता है कि निकट भविष्य में ही उनकी दुकान बंद हो जाएगी।' संयोग ही कहना चाहिए कि कुछ दिन ही व्यतीत हो पाए थे कि दिवाला निकल जाने के कारण उन्हें अपना व्यापार बंद कर देना पड़ा।

*पानी से ज्ञानी नहीं*

रीयां में अमरसिंहजी के टोले के मुनि तिलोकजी स्वामीजी के पास आए और चर्चा करने लगे। जब स्वामीजी के उत्तरों पर प्रत्युत्तर देना कठिन पड़ने लगा, तब रौब जमाने की दृष्टि से बोले— 'मुझे क्या बताते हो, मैंने आगरे और दिल्ली का पानी पीया है।'

स्वामीजी ने कहा— 'आगरे और दिल्ली में तो कसाईखाने भी चलते हैं। वहां का पानी पीने से कोई ज्ञानी नहीं बन जाता। तत्त्व-चर्चा के लिए आगम-ज्ञान की गहराई चाहिए। वह हो तो बोलो, अन्यथा इधर-उधर की बातें करना निरर्थक है।'

मुनि तिलोकजी ने अपनी बात जमती नहीं देखी, तब चुपचाप वहां से चलते बने।

*'जैसे को तैसा' उत्तर वाले स्वामीजी के कुछ और भी प्रसंगों...* के बारे में जानेंगे... समझेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻

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Updated on 23.09.2019 17:08

👉 इचलकरंजी - ज्ञानशाला प्रशिक्षक प्रशिक्षण परीक्षा का आयोजन
👉 रायपुर - बारह व्रत कार्यशाला व परीक्षा का आयोजन
👉 जींद - ज्ञानशाला प्रशिक्षक प्रशिक्षण परीक्षा का आयोजन
👉 सिरसा - पांच दिवसीय बारह व्रत कार्यशाला का आयोजन
👉 फ़रीदाबाद - कनेक्शन विथ सक्सेस कार्यशाला का आयोजन
👉 साकरी - त्रिदिवसीय ज्ञानशाला प्रशिक्षक प्रशिक्षण शिविर
👉 बारडोली - रक्तदान शिविर का आयोजन

प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻

Photos of Sangh Samvads post

Updated on 23.09.2019 17:08

👉 *कुम्बलगुडू, बेंगलुरु - ईसाई धर्म के शताधिक प्रतिनिधि सी.आर.आई. की अध्यक्ष फादर एडवर्ड थोमस पूज्यवर के दर्शनार्थ*

💠 *प्रस्तुत हुई अहिंसा यात्रा के पहले आयाम सद्भावना की मिशाल।*
💠 *जैन धर्म और ईसाई धर्म के विचारों का हुआ आदान प्रदान।*
💠 *जीसस क्राइस्ट की भांति जनकल्याण कर रहे हैं आचार्यश्री महाश्रमण: फादर थोमस।*

दिनांक - 22-09-2019

प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻

Updated on 23.09.2019 17:08

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आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ
चेतना सेवा केन्द्र,
कुम्बलगुड़ु,
बेंगलुरु,


महाश्रमण चरणों मे

📮
: दिनांक:
23 सितम्बर 2019

🎯
: प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...

🔰 *सम्बोधि* 🔰

📜 *श्रृंखला -- 45* 📜

*अध्याय~~3*

*॥आत्मकर्तृत्ववाद॥*

💠 *भगवान् प्राह*

*41. जीवस्य परिणामेन, अशुभेन शुभेन च।*
*संगृहीताः पुद्गला हि, कर्मरूप भजन्त्यलम्।।*

जीव के शुभ और अशुभ परिणाम से संगृहीत पुद्गल 'कर्म' के रूप में परिणत होते हैं, कर्म कहलाते हैं।

*42. तेषमेव विपाकेन, जीवस्तथा प्रवर्तते।*
*नैष्कर्म्येण विना नैष, क्रमः क्वापि निरुद्ध्यते।।*

उन्हीं कर्मों के विपाक से जीव वैसे ही प्रवृत्त होता है, जैसे उनका संग्रह करता है। नैष्कर्म्य के बिना यह क्रम कभी भी नहीं रुकता।

*43. पूर्णं नैष्कर्म्ययोगस्तु, शैलेश्यामेव जायते।*
*तं गतो कर्मभिर्जीवः, क्षणादेव विमुच्यते।।*

पूर्ण नैष्कर्म्य-योग शैलेशी अवस्था में होता है। यह अवस्था चौदहवें गुणस्थान में प्राप्त होती है। इसमें जीव मन, वाणी और शरीर से कर्म का निरोध कर शैलेश-मेरु पर्वत की भांति अकंप बन जाता है, इसलिए इसको शैलेशी अवस्था कहते हैं। इस अवस्था के प्राप्त होने पर जीव क्षण भर में कर्म मुक्त हो जाता है।

*44. अपूर्णं नाम नैष्कर्म्यं, तदधोपि प्रवर्तते।*
*नैष्कर्म्येण विना क्वापि, प्रवृत्तिर्न भवेच्छुभा।।*

अपूर्ण नैष्कर्म्य-योग शैलेशी अवस्था से पहले भी होता है, क्योंकि नैष्कर्म्य के बिना कोई भी प्रवृत्ति शुभ नहीं होती।

*45. सत्प्रवृत्तिं प्रकुर्वाणः, कर्म निर्जरयत्यघम्।*
*बध्यमानं शुभं तेन, सत्कर्मेत्यभिधीयते।।*

जो जीव सत्प्रवृत्ति करता है, उसके पाप-कर्म की निर्जरा होती है और शुभ-कर्म का संग्रह होता है, इसलिए वह 'सत्कर्मा' कहलाता है।

*शुभ कर्मों के उदय का परिणाम... आत्मस्वरूप की संप्राप्ति में कर्म बाधक... पुण्य से मुक्ति नहीं मिलती... संवर की फलश्रुति... अक्रिया से बंधन नहीं...* समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... आगे के श्लोकों में... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...

प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 हुबली ~ तेयुप द्वारा ज्ञानदीप प्रतियोगिता आयोजित
👉 सूरत - सास बहू कार्यशाला का आयोजन
👉 सचिन, सूरत - अभातेयुप संगठन यात्रा
👉 उदयपुर - ज्ञानशाला प्रशिक्षक प्रशिक्षण परीक्षा का आयोजन

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २६४* - *ध्यान के प्रकार १*

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

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