27.09.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 27.09.2019
Updated: 09.10.2019

Updated on 27.09.2019 18:17

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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...

🔰 *सम्बोधि* 🔰

📜 *श्रृंखला -- 50* 📜

*अध्याय~~4*

*॥सहजानंद-मीमांसा॥*

💠 *भगवान् प्राह*

*12. सर्वकर्मविमुक्तानां, जानतां पश्यतां समम्।*
*सर्वापेक्षाविमुक्तानां, सर्वसङ्गापसारिणाम्।।*

*13. मुक्तानां याद्दशं सौख्यं, तादृशं नैव विद्यते।*
*सम्पन्नसर्वकामानां, नृणामपि सुपर्वणाम्।।*
*(युग्मम्)*

जो सब कर्मों से विमुक्त हैं, जो सबकुछ जानते-देखते हैं, जो सब प्रकार की अपेक्षाओं से रहित हैं और जो सब प्रकार की आसक्तियों से मुक्त हैं, उन मुक्त आत्माओं को जैसा सुख प्राप्त होता है, वैसा सुख काम-भोगों से संपन्न मनुष्य और देवताओं को भी प्राप्त नहीं होता।

*14. सुखराशिर्विमुक्तानां, सर्वाद्धापिण्डितो भवेत्।*
*सोऽनन्तवर्गभक्तः सन्, सर्वाकाशेऽपि माति न।।*

यदि मुक्त आत्माओं की सर्वकालीन सुख-राशि एकत्रित हो जाए, उसे हम अनंत वर्गों में विभक्त करें और एक-एक वर्ग को आकाश के एक-एक प्रदेश पर रखें तो वे इतने वर्ग होंगे कि सारे आकाश में भी नहीं समाएंगे।

*15. यथा मूकः सितास्वादं, काममनुभवन्नपि।*
*साधनाऽभावमापन्नो, न वाचा वक्तुमर्हति।।*

*16. यथाऽरण्यो जनः कश्चिद्, दृष्ट्वा नगरमुत्तमम्।*
*अदृष्टनगरानन्यान्, न तज्ज्ञापयितुं क्षमः।।*

*17. तथा हि सहजानन्दं, सर्ववाचामगोचरम्।*
*साक्षादनुभवंश्चापि, न योगी वक्तुरमर्हति।।*
*(त्रिभिर्विशेषकम्)*

जैसे मूक व्यक्ति चीनी की मिठास का भलीभांति अनुभव करता हुआ भी वाणी रूपी साधन के अभाव में उसे बोलकर बता नहीं सकता, जैसे जंगल में रहने वाला कोई मनुष्य बड़े नगर को देखकर उन व्यक्तियों को उसका स्वरूप नहीं समझा सकता, जिन्होंने नगर न देखा हो, उसी प्रकार योगी सहज आनंद का साक्षात् अनुभव करता हुआ भी उसे वाणी के द्वारा व्यक्त नहीं कर सकता, क्योंकि वह वचन का विषय नहीं है।

*अनिर्वचनीयभाव असीम, बुद्धिवाद ससीम... दो प्रकार के पदार्थ— तर्कगम्य और अतर्कगम्य... तर्क की सीमा... सम्यक् दृष्टि कौन...? अतींद्रिय पदार्थों के जानने के दो हेतु... सहज आनंद की स्फुरणा के बाधक तत्त्व...* के बारे में जानेंगे... आगे के श्लोकों में... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...

प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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Updated on 27.09.2019 18:17

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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 137* 📖

*भक्तामर स्तोत्र व अर्थ*

*25. बुद्धस्त्वमेव विभुधार्चितबुद्धिबोधात्,*
*त्वं शंकरोऽसि भुवनत्रयशंकरत्वात्।*
*धाताऽसि धीर! शिवमार्गविधेर् विधानात्,*
*व्यक्तं त्वमेव भगवन्! पुरुषोत्तमोऽसि॥*

देवों द्वारा अर्चित प्रभो! केवलज्ञान से समग्र वस्तुओं के ज्ञाता हो इसीलिए तुम्हीं बुद्ध हो।

तीन लोकों में सुख और कल्याण करने वाले हो इसीलिए तुम ही शंकर हो।

हे धीर! मोक्ष-मार्ग की विधि का विधान बनाने वाले हो इसीलिए तुम्हीं विधाता हो।

भगवन्! तुम जन-जन के हृदय में व्याप्त हो रहे हो इसीलिए तुम्हीं विष्णु हो।

*26. तुभ्यं नमस्त्रिभुवनार्तिहराय नाथ!*
*तुभ्यं नमः क्षितितलामलभूषणाय।*
*तुभ्यं नमस्त्रिजगतः परमेश्वराय,*
*तुभ्यं नमो जिन! भवोदधिशोषणाय।।*

हे नाथ! तुम तीन लोकों की पीड़ा का हरण करते हो, इसलिए तुम्हें नमस्कार।

तुम पृथ्वीतल के अमल अलंकार हो, इसलिए तुम्हें नमस्कार।

तुम त्रिलोकी के परमेश्वर हो, इसलिए तुम्हें नमस्कार।

हे जिन! तुम संसार समुद्र का शोषण करने वाले हो— समस्याओं से मुक्ति देने वाले हो, इसलिए तुम्हें नमस्कार।

*27. को विस्मयोऽत्र यदि नाम गुणैरशेषैस्-,*
*त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश!*
*दोषैरुपात्तविविधाश्रयजातगर्वैः,*
*स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचिदपीक्षितोऽसि।।*

हे मुनीश! तुम सर्वथा दोषमुक्त हो, इसमें क्या आश्चर्य है? क्योंकि जगत् के सब गुणों ने अपना आश्रय बना लिया है। अब दोषों को तुम्हारे भीतर आने का अवकाश ही नहीं रहा। दोषों को दूसरे के वहां आश्रय मिल गया, इस गर्व से अहंकारी बने हुए दोषों ने तुम्हें स्वप्नान्तर में भी नहीं देखा।

*28. उच्चैरशोकतरुसंश्रितमुन्मयूख-*
*माभाति रूपममलं भवतो नितान्तम्।*
*स्पष्टोल्लसत् किरणमस्ततमोवितानम्,*
*बिम्बं रवेरिव पयोधर-पार्श्ववर्ति।।*

ऊर्ध्ववर्ती नीलवर्ण वाले अशोकवृक्ष के नीचे विराजमान तुम्हारे निर्मल शरीर से निकलने वाली रश्मियां ऊपर की ओर जाती हैं। उस समय तुम्हारा रूप वैसे ही शोभित होता है, जैसे अंधकार को चीरता हुआ प्रभास्वर रश्मियों के साथ नीले बादलों के बीच सूर्य का बिंब।

*भगवान् ऋषभ के विभिन्न रूपों...* के बारे में जानेंगे और समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻

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Updated on 27.09.2019 18:17

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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 149* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*जीवन के विविध पहलू*

*15. पात्रानुसार उत्तर*

*अभी चर्चा मत करो*

आमेट में स्वामीजी का पदार्पण हुआ। वहां पुर के काफी लोग दर्शन करने के लिए आए। परस्पर तत्त्व-चर्चा करते समय एक प्रश्न उठा कि छह पर्याप्ति और दस प्राण जीव हैं या अजीव? कई व्यक्ति उन्हें जीव कहते थे, कई अजीव। कुछ गरम प्रकृति के व्यक्तियों ने उस तत्त्व-चर्चा को विवाद में परिणत कर दिया। झगड़ा बहुत तीव्रता पर पहुंच गया, तब किसी समझदार भाई ने उन सब से कहा— 'इसका निर्णय हमें स्वामीजी से पूछ कर करना चाहिए।' उसके दबाव देने पर वे लोग स्वामीजी के पास आए, परंतु वहां भी उन्होंने अपने-अपने पक्ष पर झगड़ा प्रारंभ कर दिया।

स्वामीजी ने जब देखा कि दोनों ही पक्ष इस समय पूर्ण आग्रह पर हैं, जिज्ञासा किसी को नहीं है, तब उन्होंने कहा— 'इस समय दिया गया मेरा उत्तर तुम्हारे में ज्ञान की अपेक्षा जय-पराजय के भाव ही अधिक जगाएगा, अतः इस विषय में अभी मुझे कुछ नहीं कहना है। तुम लोगों के लिए भी यही उचित है कि मौन हो जाओ और इस संबंध की अभी कोई चर्चा मत करो।' यों समझाकर दोनों पक्षों को शांत किया और उनका तनाव मिटाया।

*अपने प्रश्न को संभालो*

स्वामीजी भीलवाड़ा में थे। वहां कुछ व्यक्ति चर्चा करने के लिए आए। उन्होंने पूछा— 'भीखणजी! किसी श्रावक ने पाप का सर्वथा त्याग कर दिया हो, तो उसे आहार पानी देने में क्या हुआ?'

स्वामीजी— 'धर्म हुआ।'

आगंतुक— 'आप धर्म कैसे कहते हैं? आपकी श्रद्धा के अनुसार तो श्रावक को देना अव्रत का पोषण है, वह धर्म न होकर पाप ही होना चाहिए।'

स्वामीजी— 'तुम पहले अपने प्रश्न को संभाल लो। जिस श्रावक ने पाप का सर्वथा त्याग कर दिया, वह श्रावक न रहकर साधु ही हो गया। साधु को देना अव्रत का नहीं, व्रत का पोषक है।'

*आज्ञा दी, वह धर्म है*

एक व्यक्ति ने स्वामीजी से पूछा— 'पौषध करने वाले को अपना मकान दिया, उसे क्या हुआ?'

स्वामीजी— 'अपने मकान में पौषध करने की आज्ञा देने वाले को धर्म ही हुआ।'

वह व्यक्ति— 'मैं आज्ञा देने की बात नहीं पूछता, मकान देने की बात पूछता हूं।'

स्वामीजी— 'पौषध के लिए मकान देने का अर्थ उसका स्वामित्व देना नहीं है। उसका तात्पर्य तो अपने स्थान में पौषध करने की आज्ञा देना ही होता है, और वह धर्म है। स्थान तो परिग्रह है। उसका सेवन करना तथा करवाना धर्म नहीं होता।'

*स्वामी भीखणजी मानव-मन के बड़े पारखी थे... कुछ प्रसंगों...* के माध्यम से जानेंगे... समझेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻

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Updated on 27.09.2019 18:17

⏩ *अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमणजी* द्वारा उद्घोषित *अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह* के अन्तर्गत *सांप्रदायिक सौहार्द दिवस* का आयोजन *अणुव्रत महासमिति* के तत्वावधान में अणुव्रत समितियों द्वारा.....

✡ गुवाहाटी
☢ सादुलपुर-राजगढ़
✳ मोमासर
✡ अहमदाबाद
☢ अमराइवाडी ओढ़व
✳ केलवा
✡ उधना, सूरत
☢ बल्लारी
✳ बेंगलुरु
✡ फरीदाबाद
☢ गंगाशहर
✳ कोलकाता

⏺ हिसार - जीवन विज्ञान दिवस का आयोजन
🅾 कांदिवली, मुम्बई - जीवन विज्ञान दिवस का आयोजन

🌺 गदग ~ कनेक्शन विथ सक्सेस कार्यशाला का आयोजन
🏅 सेलम ~ सम्मान समारोह का आयोजन
🏆 जलगांव ~ ग्रीटिंग कार्ड प्रतियोगिता का आयोजन
🎰 ओरंगाबाद ~ कनेक्शन विथ फुड साइंस का कार्यक्रम
🌺 सूरत - कनेक्शन विथ सक्सेस कार्यशाला का आयोजन
🎤 ओरंगाबाद - एक शाम महाप्रज्ञ के नाम गायन प्रतियोगिता का आयोजन
🏵 बीकानेर - हैप्पी एंड हारमोनियस फैमिली का आयोजन

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Photos of Sangh Samvads post

Updated on 27.09.2019 18:17

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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*

💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_

📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*

🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*

♎ *_अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह:_* जीवन विज्ञान दिवस

⌚ _दिनांक_: *_27 सितंबर 2019_*

🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*

https://www.facebook.com/SanghSamvad/

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Updated on 27.09.2019 18:17

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आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ
चेतना सेवा केन्द्र,
कुम्बलगुड़ु,
बेंगलुरु,


महाश्रमण चरणों मे

📮
: दिनांक:
27 सितम्बर 2019

🎯
: प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻

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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन

👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २६८* - *ध्यान के प्रकार ५*

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भागलेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
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🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन

👉 *#कैसे #सोचें *: #विधायक #भाव ४*

एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
#Preksha #Foundation
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SS
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