19.05.2020 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 19.05.2020
Updated: 19.05.2020

Updated on 19.05.2020 20:30

🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन

👉 *#तनाव #कारण व #निवारण* : *#श्रंखला २*

एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/io/
🌻 #संघ #संवाद 🌻

Watch video on Facebook.com


Updated on 19.05.2020 15:00

👉 ग्वालपाड़ा(असम) ~ गणपति देवी कोठारी द्वारा तिविहार संथारा प्रत्याख्यान

प्रस्तुति : 🌻 *संघ संवाद* 🌻


📍 *नवीन सूचना.....*
*---------------------------*
*सुखसाता समाचार*
📍
*परम श्रद्धेय आचार्यश्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती 'बहुश्रुत परिषद संयोजक' मुनिश्री महेंद्र कुमार जी ठाना 5 पूना से अणुव्रत भवन, वाशी आज करीब 11 बजे सुखसाता पूर्वक पधार गए हैं ।*

📮 दिनांक ~ *19 मई 2020*

संप्रसारक : 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Updated on 19.05.2020 08:41

🪔🪔🪔🪔🙏🌸🙏🪔🪔🪔🪔

जैन परंपरा में सृजित प्रभावक स्तोत्रों एवं स्तुति-काव्यों में से एक है *भगवान पार्श्वनाथ* की स्तुति में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित *कल्याण मंदिर स्तोत्र*। जो जैन धर्म की दोनों धाराओं— दिगंबर और श्वेतांबर में श्रद्धेय है। *कल्याण मंदिर स्तोत्र* पर प्रदत्त आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रवचनों से प्रतिपादित अनुभूत तथ्यों व भक्त से भगवान बनने के रहस्य सूत्रों का दिशासूचक यंत्र है... आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति...

🔱 *कल्याण मंदिर - अंतस्तल का स्पर्श* 🔱

🕉️ *श्रृंखला ~ 45* 🕉️

*14. कहां करें परमात्मा की खोज*

आचार्य के मन में एक प्रश्न और पैदा हो गया— प्रभो! योगी लोग आपके परमात्मरूप को सदा अपने हृदय के कमलकोश में देखते हैं। किसी गूढ़ या अदृष्ट वस्तु को देखने का स्थान है हमारा हृदय-कमल। कमल शब्द का प्रयोग अनेक स्थानों पर होता है, जैसे— नयन-कमल, मुख-कमल, हृदय-कमल, कर-कमल, नाभि-कमल, चरणकमल। कमल निर्मलता का प्रतीक है। वह कीचड़ से लिप्त नहीं होता, पवित्र रहता है।

प्रभो! योगी लोग सदा आपको हृदय-कमल में देखते हैं। आप मोक्ष में चले गए, ऊर्ध्वलोक में चले गए। अगर आप यहां होते तो आपको देख लेते। आप तो ऊपर बैठे हैं। हम यहां खोज रहे हैं। क्या यह भ्रांति नहीं है?

आचार्य एक के बाद एक प्रश्न पूछते जा रहे हैं। भगवान् पार्श्व मौन है। उनके पास बोलने का कोई साधन ही नहीं है। वे अशरीरी हैं और अशरीरी के पास बोलने का कोई साधन नहीं होता। वही बोल सकता है जिसके पास साधन होता है। औरों की बात छोड़ दें, देवता भी बोल नहीं सकते।

बहुत लोग कहते हैं, आज अमुक देवता बोला। मैं (ग्रंथकार आचार्यश्री महाप्रज्ञ) कहता हूं— देवता के पास बोलने का साधन ही नहीं है। वही बोल सकता है, जिसके पास स्वरयंत्र होता है। देवता के पास स्वरयंत्र नहीं है। स्वरयंत्र औदारिक शरीर में ही होता है। वैक्रिय शरीर में स्वरयंत्र नहीं होता। वहां न अस्थि होती है, न मज्जा, न स्नायु, न रक्त, न मांस— कुछ भी नहीं होता। देवता के कोई संहनन नहीं होता, अस्थि-रचना नहीं होती। उसके अभाव में स्वरयंत्र भी नहीं होता। देवता किसी दूसरे माध्यम से बोलते हैं। देवताओं के भाषा पर्याप्ति और मनःपर्याप्ति एक ही मानी गई है। मनुष्य में छ: पर्याप्तियां पाई जाती हैं। देवताओं को भाषा पर्याप्ति की जरूरत नहीं है। वे मन से ही सारी बात कर लेते हैं।

यहां स्तुतिकार ने एक नया चिन्तन प्रस्तुत किया है— आत्मा की खोज कहां करें? हृदयाम्बुज में। परमात्मा की खोज कहां करें? हृदयाम्बुज में। हृदय शब्द का अर्थ थोड़ा भिन्न हो सकता है। हृदय का एक अर्थ धड़कने वाला का हृदय किया जाता है। हमारी दृष्टि में हृदय का अर्थ है मस्तिष्क का एक भाग हाइपोथेलेमस।

शरीर में सबसे महत्वपूर्ण और सुन्दर स्थान है मस्तिष्क। मस्तिष्क विद्या के अनुसार मस्तिष्क के दो भाग हैं बायां पटल और दायां पटल। बायां पटल लौकिक जीवन चलाने के लिए, लौकिक विद्या के लिए जिम्मेदार है। हमारा दायां पटल गूढ़ विद्या, रहस्य विद्या, अध्यात्म विद्या का क्षेत्र है। प्रभु की खोज करनी है, आत्मा की खोज करनी है, अर्हत् की खोज करनी है तो जो लोकोत्तर हिस्सा है उसे जाग्रत् करना होगा।

*क्या सामान्य आदमी परमात्मा की खोज करना जानता है...?* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
🪔🪔🪔🪔🙏🌸🙏🪔🪔🪔🪔
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹

शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 288* 📜

*श्रीमद् जयाचार्य*

*महान् योजनाएं*

*1. पुस्तकों का सांघिकीकरण*

*प्रारम्भिक अभाव*

जयाचार्य ने सर्वप्रथम पुस्तकों के अभाव को मिटाने की योजना अपने हाथ में ली। स्वामी भीखणजी के समय से ही संध में पुस्तकों का बड़ा अभाव था। न तो आगम-प्रतियों की ही बहुलता थी और न व्याख्यान आदि की प्रतियों की। कई साधु तो एक चतुर्मास में एक व्याख्यान को ही अनेक बार सुनाया करते थे। स्वामीजी को अपने प्रारम्भिक वर्षों में जब आहार और स्थान आदि का भी पूरा-पूरा अभाव भोगना पड़ा था, तो वैसी स्थिति में पुस्तकों की सुलभता की कल्पना करना ही व्यर्थ है। जयाचार्य को वह अभाव सदा से ही खटकता रहा, परन्तु प्रत्येक कार्य उपयुक्त समय की अपेक्षा रखता है। उनके आचार्य बनते ही अपेक्षित समय आ गया, ऐसा प्रतीत होता है।

*संग्रह और तारतम्य*

स्वामीजी के समय की स्थिति में धीरे-धीरे परिवर्तन आया। गृहस्थों के पास से तथा यतियों के उपाश्रय में संगृहीत भण्डारों से पुस्तकें प्राप्त होने लगी। अनेक साधु भी स्वयं लिखकर उस आवश्यकता की पूर्ति करने लगे। साधु-साध्वियों के सिंघाड़े जिन क्षेत्रों में जाते, वहाँ सुलभ होने पर भण्डारों आदि में से शास्त्रों की गवेषणा करते। जो सिंघाड़े दूर-दूर तक विहार किया करते, उनको स्वभावतः ही पुस्तक-प्राप्ति के अधिक अवसर प्राप्त हो जाते, परन्तु जो दूर जाने की स्थिति में नहीं होते, उन्हें क्षेत्र की इयत्ता के अनुरूप ही भण्डारों आदि का सुयोग प्राप्त हो पाता। इन्हीं सब कारणों के आधार पर पुस्तकों के संग्रह में काफी तरतमता उत्पन्न हो गई । किसी सिंघाड़े में पुस्तकों की बहुलता हो गई तो किसी में वही पुरातनकालीन अभाव चलता रहा। पुस्तकें होते हुए भी सुव्यवस्था के अभाव में उनका लाभ संघ के सब सदस्य नहीं उठा पा रहे थे।

जयाचार्य ने अपने अग्रणी-काल में काफी भण्डारों का निरीक्षण किया। वहां से उन्होंने पुस्तकें भी बहुत प्राप्त कीं। अपनी पुस्तकों में से काफी प्रतियां उन्होंने दूसरे सिंघाड़ों को प्रदान कीं, फिर भी अनेक सिंघाड़े ऐसे थे जिनके पास आवश्यक पुस्तकों का अभाव था। साध्वियों के पास तो वह अपेक्षाकृत और भी गम्भीर था। जयाचार्य ने अपना प्राथमिक लक्ष्य बनाया कि सभी सिंघाड़ों की पुस्तकों सम्बन्धी न्यूनतम आवश्यकत्ता यथाशीघ्र पूर्ण की जाए।

*श्रीमद् जयाचार्य द्वारा सभी सिंघाड़ों में पुस्तकों की न्यूनतम आवश्यकता पूर्ति हेतु किए गए करार एवं विचारों के नवोन्मेष...* के बारे में जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹

Posted on 19.05.2020 06:57

🌧💦🌧💦🌧💦🌧💦🌧💦🌧

_*महाप्रज्ञ अमृतवाणी*_
*:::::::::::::::::::::::::::::::::::::*

⏰ _*दिनांक -* 19 मई 2020_

🎥 _*वीडियो- प्रस्तुति ~* अमृतवाणी_

📍 _*संप्रसारक ~* संघ संवाद_

🌧💦🌧💦🌧💦🌧💦🌧💦🌧

Watch video on Facebook.com


🙏 *वंदे गुरुवरम्* 🙏
https://www.instagram.com/p/CAWbWU8JY0c/?igshid=lwjnsdnzh7mo

आज का विशेष दृश्य आपके लिए..
स्थल ~ BMIT कॉलेज सोलापुर (महाराष्ट्र)

दिनांक : 19/05/2020
*प्रस्तुति : 🌻 संघ संवाद* 🌻


🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन

👉 *#तनाव #कारण व #निवारण* : *#श्रंखला १*

एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/io/
🌻 #संघ #संवाद 🌻

Watch video on Facebook.com


Sources

SS
Sangh Samvad
View Facebook page

Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Shvetambar
      • Terapanth
        • Sangh Samvad
          • Publications
            • Share this page on:
              Page glossary
              Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
              1. Preksha
              2. SS
              3. Sangh
              4. Sangh Samvad
              5. आचार्य
              6. आचार्यश्री महाप्रज्ञ
              7. महाराष्ट्र
              8. सोलापुर
              Page statistics
              This page has been viewed 221 times.
              © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
              Home
              About
              Contact us
              Disclaimer
              Social Networking

              HN4U Deutsche Version
              Today's Counter: