05.06.2020 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 05.06.2020
Updated: 05.06.2020

Updated on 05.06.2020 20:42

💫 *आचार्य तुलसी की २४वीं पुण्यतिथि पर*

आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित

💫 *आँनलाइन तुलसी" "ज्ञानोत्तरी"*

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🌻 *संघ संवाद* 🌻


📍नवीन सूचना .....

❗दिनांक : 05/06/2020

🌻 *संघ संवाद* 🌻


👉 सुजानगढ़ ~ विश्व पर्यावरण दिवस पर वृक्षारोपण कार्यक्रम
👉 हिसार ~ विश्व पर्यावरण दिवस पर वृक्षारोपण कार्यक्रम

प्रस्तुति : *🌻संघ संवाद🌻*

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Updated on 05.06.2020 16:20

तेरापंथ विज्ञप्ति-5
संप्रसारक:🌻 संघ संवाद 🌻


👉 पूर्वांचल कोलकाता ~ "हमारा समाज-हमारा दायित्व" कार्यशाला का आयोजन
👉 बेंगलुरु~ महिला मंडल द्वारा ऑनलाइन कार्यशाला आयोजित
👉 जयपुर शहर ~ तेमम द्वारा वेबिनार का आयोजन
👉 पूर्वांचल कोलकाता ~ तेमम द्वारा अंताक्षरी का आयोजन
👉 वापी ~ चार भावना कार्यशाला का आयोजन
👉 जयपुर ~ पर्यावरण दिवस पर पौधारोपण
👉 सिलीगुड़ी ~ विश्व पर्यावरण दिवस पर वृक्षारोपण कार्यक्रम

प्रस्तुति : 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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Updated on 05.06.2020 10:55

🙏 *पूज्य गुरुदेव के सुख संवाद* 🙏

5 जून। परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमणजी नलदुर्ग से करीब 15 कि.मी. का विहार कर भोसगा में स्थित डॉ. के. डी. शेंडगे इंग्लिश मीडियम स्कूल में सानंद सुखसातापूर्वक पधार गए हैं।
विस्तृत रिपोर्ट शाम तक जारी होने वाली *तेरापंथ विज्ञप्ति* में दी जा सकेगी।


*सूचना एवं प्रसारण विभाग*
*जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा*

🌻 *संघ संवाद* 🌻

Posted on 05.06.2020 08:38

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जैन परंपरा में सृजित प्रभावक स्तोत्रों एवं स्तुति-काव्यों में से एक है *भगवान पार्श्वनाथ* की स्तुति में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित *कल्याण मंदिर स्तोत्र*। जो जैन धर्म की दोनों धाराओं— दिगंबर और श्वेतांबर में श्रद्धेय है। *कल्याण मंदिर स्तोत्र* पर प्रदत्त आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रवचनों से प्रतिपादित अनुभूत तथ्यों व भक्त से भगवान बनने के रहस्य सूत्रों का दिशासूचक यंत्र है... आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति...

🔱 *कल्याण मंदिर - अंतस्तल का स्पर्श* 🔱

🕉️ *श्रृंखला ~ 58* 🕉️

*19. तब बनता है अशोक*

मन की अनेक दशाएं होती हैं। मुख्य रूप से दो अवस्थाएं हैं— हर्ष और शोक। अनुकूल स्थिति बनती है, मन में हर्ष की तरंगें उठने लग जाती हैं और प्रतिकूल परिस्थिति आती है, मन शोक से भर जाता है।

एक परिवार दर्शन करने आया। बहुत उदास और तनावग्रस्त। उस परिवार की दशा को देखा। पारिवारिकजनों की आंखों से अश्रुधारा बह रही थी।

मैंने (ग्रंथकार आचार्यश्री महाप्रज्ञ) पूछा— 'क्या हुआ?'

'हम आ रहे थे, डाकुओं ने हमारे सारे गहने लूट लिए।'

मैंने कहा— धन पर किसी एक का अधिकार नहीं होता। उस पर बहुतों का अधिकार होता है। धन पर अग्नि का अधिकार है। बड़े-बड़े भवन, बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां स्वाहा हो जाती हैं। धन पर पानी का भी अधिकार है। बाढ़ आती है, अरबों की सम्पत्ति नष्ट हो जाती है। चोरों, डाकुओं का भी अधिकार है। राजा का भी अधिकार है। आज की भाषा में कहें तो आयकर विभाग का अधिकार है। धन पर किसी एक का अधिकार नहीं हो सकता। इसीलिए सोमप्रभसूरि ने सिन्दूर-प्रकर में बहुत सुन्दर लिखा है—

*दायादाः स्पृहयन्ति तस्करगणा मुष्णन्ति भूमीभूजो,*
*गृह्णन्तिच्छलमाकलय्य हुतभुग्भस्मीकरोति क्षणात्।*
*अम्भः प्लावयते क्षितौ विनिहितं यक्षा हरन्ते हठाद्,*
*दुर्वृत्तास्तनया नयन्ति निधनं धिग्बह्वधीनं धनम्।।*

धन की कुटुम्बीजन इच्छा करते हैं, चोर चुराकर ले जाते हैं, राजा कपटपूर्वक हर लेते हैं, अग्नि क्षण भर में जला देती है, पानी बहा कर ले जाता है, पृथ्वी में गड़े हुए धन का यक्ष बलपूर्वक हरण कर लेते हैं, अविनीत पुत्र नष्ट कर देते हैं, इस प्रकार यह धन बहुत जनों के अधीन है। इस धन पर मेरा ही नहीं, सबका अधिकार है। मौका मिलता है तब चला जाता है। शोक करने की क्या बात है? किन्तु मन शक्तिशाली नहीं होता है तो थोड़ा सा वियोग होते ही शोक हो जाता है।

तीर्थकर के आठ प्रातिहार्य/अतिशय माने गए हैं। उनमें एक प्रातिहार्य है— अशोक वृक्ष। यह मान्यता रही है कि जब तीर्थकर धर्मोपदेश करते हैं, अशोक वृक्ष उनके ऊपर रहता है। सिद्धसेन अशोक वृक्ष के अतिशय को काव्यात्मक प्रस्तुति दे रहे हैं— प्रभो! आपकी विचित्र महिमा है। जब आप धर्मदेशना करते हैं तब वृक्ष भी अशोक हो जाता है। फिर आपका धर्म सुनने वाला अशोक बन जाए, उसमें आश्चर्य की क्या बात है। उसका तो शोक मिटना ही चाहिए। धर्म सुना, तत्त्व को समझा और इस सचाई को समझा कि मैं अकेला हूं, मेरा कोई नहीं है। शरीर भी मेरा नहीं है। कहा जाता है कि अकेला आया हूं, अकेला जाना है। कुछ भी साथ लेकर नहीं आया। किन्तु बहुत सूक्ष्म संस्कारों को साथ लेकर आता है, अकेला नहीं आता। यदि वस्तु की दृष्टि से विचार करें तो न कोई वस्तु लाता है, न कोई वस्तु ले जाता है। अकेलेपन की अनुभूति ही अन्तिम सचाई है। और तो सारी स्थूल सचाइयां हैं। परिवार, मित्र, धन— सब साथ हैं, यह व्यवहार की सचाई है। आज है, कल समाप्त हो जाती है। अन्तिम सचाई है कि व्यक्ति अकेला है। जो इस सचाई को समझ लेता है— *अशोको भवति*— वह अशोक हो जाता है, उसे कभी शोक नहीं होता।

प्रसंग आता है मोहजीत राजा का। एक योगी ने महाराज और महारानी से कहा— राजकुमार को सिंह खा गया। राजा ने अकेलेपन की सचाई का अनुभव किया था, मोह विजय की साधना की थी इसलिए शोक नहीं हुआ। जब तक ममत्व का बंधन रहता है, ममत्व की चेतना का विकास होता है, तब तक शोक होता है। जब यह चिंतन रहे कि 'मेरा था ही नहीं', चला गया तो चला गया। आदमी धन कमाता है, क्या पहले वह उसका था? पहले तो नहीं था। अर्जन किया तब आ गया और बाद में चला गया। इस सचाई को समझने वाला शोक नहीं करता।

आचार्य कह रहे हैं— प्रभो! *'सविधानुभावात्'* आपके सान्निध्य का इतना प्रभाव है कि वृक्ष भी अशोक बन जाता है। आपकी धर्मदेशना सुनने वाला अशोक बन जाए तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

*आचार्य सिद्धसेन अपनी बात का किस प्रकार समर्थन कर रहे हैं...? और समझा रहे हैं...* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 301* 📜

*श्रीमद् जयाचार्य*

*महान् योजनाएं*

*4. श्रम का सम विभाजन*

*1. समुच्चय के कार्य*

*बांटने का काम*

मध्याह्नकालीन गोचरी में लाये गये आहार का जो संविभाग किया जाता उस कार्य को साधारणतया 'बांटना' कहा जाता। प्रतिदिन एक साझ के चार व्यक्तियों पर उसका भार रहता। गोचरी आने के पश्चात् उनका कार्य प्रारम्भ होता। आये हुए आहार को गिनना, पांती लगाना, यथा-क्रम से सब साझों की पांती रखाना और फिर वहां बिखरी 'सीतों' (अन्नकणों) को बुहार कर उस स्थान को धो-पोंछ कर साफ कर देने तक का कार्य उन्हीं का होता। सौ 'ठाणे' एकत्रित होते तब तक तो चार व्यक्ति ही वह कार्य करते, फिर प्रत्येक नये शतक के प्रारम्भ में एक व्यक्ति बढ़ा दिया जाता।

*घड़े का काम*

तेरापंथ-द्विशताब्दी से पूर्व तक प्रायः एक समय मध्याह्न में ही गोचरी की जाती थी। प्रातः या सायंकाल की गोचरी अपवाद-स्वरूप कदाचित् ही होती। जब कभी ऐसा होता तब उस आहार के संविभाग का दायित्व धड़े की बारी वाले व्यक्ति का होता था। वह कार्य 'धड़े का बांटना' कहलाता। मध्याह्न में भी 'बांटना' होने से पहले या पीछे आने वाली आहार-सामग्री का संविभाग भी धड़े वाला ही करता। उसके अतिरिक्त आचार्यश्री जहां आहार करते वहां आवश्यकता होने पर 'चिलमिली' बांधने तथा वहां पर बिखरे अन्नकणों की सफाई कर स्थान को धो डालने का कार्य भी उसी का होता। इन सारे कार्यों को सम्मिलित रूप से 'घड़े का काम' कहा जाता।

*पानी का काम*

पानी मापने के लिए एक पात्र-विशेष 'कलसिया' होता था। उसी के आधार पर सब पात्र मापे हुए होते थे। पानी लाने वाले सन्तों को ऋतु-अनुसार एक निर्देश दे दिया जाता कि गोचरी में आ सके तो प्रत्येक साधु को इतने 'कलसिया' पानी लाना है। उसी निर्देशानुसार संत पानी लाकर पूर्व निर्धारित स्थान पर रख देते। पानी के काम की जिसकी बारी होती, वह उस आए हुए सारे पानी को छानता, फिर जितने संत होते उतनी पांती लगाकर प्रत्येक साझ के किसी एक व्यक्ति को बुलाकर साझ-क्रम से पांतियां संभला देता। उसके पश्चात् चतुर्थ प्रहर प्रारम्भ होते ही सब साझों में जाकर वह पूछ आता कि किस साझे में कितना पानी और चाहिए? साथ ही यह भी पूछ आता कि गोचरी के समय पात्र के अभाव में या कार्यवश अपने विभाग का पानी कौन-कौन नहीं ला पाया या कम ला पाया है? जितना पानी मंगाया जाता उसमें जितना कम लाया गया होता, उतना तो उन्हें लाने के लिए कह दिया जाता और अधिक मंगाने पर शेष पानी विभागानुसार प्रत्येक गोचरी में से मंगा लिया जाता। जब वह पानी आ जाता, तब जिस साझ में जितने 'कलसिये' मंगाये होते, उसी आधार पर वह विभक्त कर दिया जाता।

*चोकी... परिष्ठापन... बाजोट आदि कार्यों...* के बारे में जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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📍नवीन सूचना .....

❗दिनांक : 05/06/2020

🌻 *संघ संवाद* 🌻


📍नवीन सूचना .....

❗दिनांक : 04/06/2020

🌻 *संघ संवाद* 🌻


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