Updated on 29.08.2020 12:26
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#शरीर का #परिचय* : *#श्रृंखला २*
एक #प्रेक्षाध्यान #शिविर में भाग लें।
देखें, #जीवन बदल जायेगा, जीने का #दृष्टिकोण बदल जायेगा।
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की सम्पूर्ण एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebook.com/io/
🌻 #संघ #संवाद 🌻
Posted on 29.08.2020 11:40
🦚🦚🦋🦚🦚🦋🦚🦚🦋🦚🦚📕 *_.......गुरुवरो घम्म-देसणं......._* 📕
*_________________________________*
*_________________________________*
🏮 _*महाश्रमण वाटिका, शमशाबाद, हैदराबाद*_
📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ ----------*
⌚ _दिनांक_ : *_29 अगस्त 2020_*
🧶 _प्रस्तुति_ : *_संघ संवाद_*
https://t.me/joinchat/NqOXw0XjJyPNJBY-ALmlWA
🦚🦚🦋🦚🦚🦋🦚🦚🦋🦚🦚
🪔🪔🪔🪔🙏🌸🙏🪔🪔🪔🪔
जैन परंपरा में सृजित प्रभावक स्तोत्रों एवं स्तुति-काव्यों में से एक है *भगवान पार्श्वनाथ* की स्तुति में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित *कल्याण मंदिर स्तोत्र*। जो जैन धर्म की दोनों धाराओं— दिगंबर और श्वेतांबर में श्रद्धेय है। *कल्याण मंदिर स्तोत्र* पर प्रदत्त आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रवचनों से प्रतिपादित अनुभूत तथ्यों व भक्त से भगवान बनने के रहस्य सूत्रों का दिशासूचक यंत्र है... आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति...
🔱 *कल्याण मंदिर - अंतस्तल का स्पर्श* 🔱
🕉️ *श्रृंखला ~ 117* 🕉️
*कल्याणमन्दिरस्तोत्रम्*
*अन्वय, अनुवाद और शब्दार्थ*
*25. भो! भो! प्रमादमवधूय भजध्वमेन-*
*मागत्य निर्वृतिपुरीं प्रति सार्थवाहम्।*
*एतन्निवेदयति देव! जगत्त्रयाय,*
*मन्ये नदन्नभिनभः सुरदुन्दुभिस्ते।।*
*अन्वय— हे देव! मन्ये, अभिनभः नदन् ते सुरदुन्दुभिः जगत्त्रयाय एतन्निवेदयति— भो! भो! प्रमादम् अवधूय आगत्य निर्वृतिपुरीं प्रति एनं सार्थवाहं भजध्वम्।*
*अनुवाद—* हे देव! मैं मानता हूं कि आकाश में निनाद करती हुई तुम्हारी देवदुन्दुभि तीनों लोकों के लिए यह निवेदन कर रही है कि प्रमाद को छोड़कर मोक्षनगरी की ओर जाने वाले इस सार्थवाह के पास आकर (पार्श्वनाथ का) आश्रय लो।
*शब्दार्थ—*
*अभिनभ:—* अभि-व्याप्य नमः नभसीत्यर्थः
*नदन्—* शब्दं कुर्वन्
*सुरदुन्दुभिः—* देवदुन्दुभिः
*अवधूय—* परित्यज्य
*निर्वृतिपुरीं प्रति—* मुक्तिनगरीं प्रति
*सार्थवाह—* सार्थं वाहयतीति सार्थवाहस्तम्
*भजध्वम्—* समाश्रयध्वम्
*26. उद्योतितेषु भवता भुवनेषु नाथ!*
*तारान्वितो विधुरयं विहताधिकारः।*
*मुक्ताकलाप-कलितोल्लसितातपत्र-*
*व्याजात् त्रिधा धृततनुर्ध्रुवमभ्युपेतः।।*
*अन्वय— नाथ! भवता भुवनेषु उद्योतितेषु तारान्वितो अयं विधुः विहताधिकारः मुक्ताकलापकलितोल्लसितातपत्रव्याजात् त्रिधा धृततनुःअभ्युपेतः (अस्ति)।*
*अनुवाद—* नाथ! तुमने तीनों लोकों को प्रकाशित कर दिया, इसलिए तारों से युक्त यह चन्द्रमा अधिकार रहित हो गया। मोतियों के
समूह से युक्त और उल्लसित तुम्हारे तीन छत्रों के बहाने से चन्द्रमा ही तीन शरीर को धारण कर तुम्हारी शरण में आ गया।
*शब्दार्थ—*
*भुवनेषु—* त्रिषु जगत्सु
*उद्योतितेषु—* प्रकाशितेषु
*विहताधिकारः—* उद्दलितः अधिकारो यस्य सः विहताधिकारः
*तारान्वितः—* ताराभिः अन्वितः सहितः तारान्वितः
*विधुः—* चन्द्रः
*आतपत्रं—* आतपात् त्रायते इत्यातपत्रम्
*अभ्युपेतः—* त्वामाश्रितः
*कल्याण मंदिर स्तोत्र के सत्ताइसवें तथा अट्ठाइसवें श्लोकों... अन्वय... अनुवाद... शब्दार्थ...* को जानेंगे... समझेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
🪔🪔🪔🪔🙏🌸🙏🪔🪔🪔🪔
जैन परंपरा में सृजित प्रभावक स्तोत्रों एवं स्तुति-काव्यों में से एक है *भगवान पार्श्वनाथ* की स्तुति में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित *कल्याण मंदिर स्तोत्र*। जो जैन धर्म की दोनों धाराओं— दिगंबर और श्वेतांबर में श्रद्धेय है। *कल्याण मंदिर स्तोत्र* पर प्रदत्त आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रवचनों से प्रतिपादित अनुभूत तथ्यों व भक्त से भगवान बनने के रहस्य सूत्रों का दिशासूचक यंत्र है... आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति...
🔱 *कल्याण मंदिर - अंतस्तल का स्पर्श* 🔱
🕉️ *श्रृंखला ~ 117* 🕉️
*कल्याणमन्दिरस्तोत्रम्*
*अन्वय, अनुवाद और शब्दार्थ*
*25. भो! भो! प्रमादमवधूय भजध्वमेन-*
*मागत्य निर्वृतिपुरीं प्रति सार्थवाहम्।*
*एतन्निवेदयति देव! जगत्त्रयाय,*
*मन्ये नदन्नभिनभः सुरदुन्दुभिस्ते।।*
*अन्वय— हे देव! मन्ये, अभिनभः नदन् ते सुरदुन्दुभिः जगत्त्रयाय एतन्निवेदयति— भो! भो! प्रमादम् अवधूय आगत्य निर्वृतिपुरीं प्रति एनं सार्थवाहं भजध्वम्।*
*अनुवाद—* हे देव! मैं मानता हूं कि आकाश में निनाद करती हुई तुम्हारी देवदुन्दुभि तीनों लोकों के लिए यह निवेदन कर रही है कि प्रमाद को छोड़कर मोक्षनगरी की ओर जाने वाले इस सार्थवाह के पास आकर (पार्श्वनाथ का) आश्रय लो।
*शब्दार्थ—*
*अभिनभ:—* अभि-व्याप्य नमः नभसीत्यर्थः
*नदन्—* शब्दं कुर्वन्
*सुरदुन्दुभिः—* देवदुन्दुभिः
*अवधूय—* परित्यज्य
*निर्वृतिपुरीं प्रति—* मुक्तिनगरीं प्रति
*सार्थवाह—* सार्थं वाहयतीति सार्थवाहस्तम्
*भजध्वम्—* समाश्रयध्वम्
*26. उद्योतितेषु भवता भुवनेषु नाथ!*
*तारान्वितो विधुरयं विहताधिकारः।*
*मुक्ताकलाप-कलितोल्लसितातपत्र-*
*व्याजात् त्रिधा धृततनुर्ध्रुवमभ्युपेतः।।*
*अन्वय— नाथ! भवता भुवनेषु उद्योतितेषु तारान्वितो अयं विधुः विहताधिकारः मुक्ताकलापकलितोल्लसितातपत्रव्याजात् त्रिधा धृततनुःअभ्युपेतः (अस्ति)।*
*अनुवाद—* नाथ! तुमने तीनों लोकों को प्रकाशित कर दिया, इसलिए तारों से युक्त यह चन्द्रमा अधिकार रहित हो गया। मोतियों के
समूह से युक्त और उल्लसित तुम्हारे तीन छत्रों के बहाने से चन्द्रमा ही तीन शरीर को धारण कर तुम्हारी शरण में आ गया।
*शब्दार्थ—*
*भुवनेषु—* त्रिषु जगत्सु
*उद्योतितेषु—* प्रकाशितेषु
*विहताधिकारः—* उद्दलितः अधिकारो यस्य सः विहताधिकारः
*तारान्वितः—* ताराभिः अन्वितः सहितः तारान्वितः
*विधुः—* चन्द्रः
*आतपत्रं—* आतपात् त्रायते इत्यातपत्रम्
*अभ्युपेतः—* त्वामाश्रितः
*कल्याण मंदिर स्तोत्र के सत्ताइसवें तथा अट्ठाइसवें श्लोकों... अन्वय... अनुवाद... शब्दार्थ...* को जानेंगे... समझेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
🪔🪔🪔🪔🙏🌸🙏🪔🪔🪔🪔
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹
शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 360* 📜
*श्रीमद् जयाचार्य*
*श्रुत के अनन्य उपासक*
*स्वाध्याय के कुछ आंकड़े*
जयाचार्य ने अपने जीवन में कितना स्वाध्याय किया, यह कह पाना तो कठिन है। पर अन्तिम वर्षों में किये गये आगम-स्वाध्याय के कुछ आंकड़े उपलब्ध हैं। वस्तुतः वे जयाचार्य की स्वाध्यायशीलता की ओर ध्यान आकृष्ट किये बिना नहीं रहते। विक्रम सम्वत् 1930 से 37 तक के आंकड़े इस प्रकार हैं—
संवत् 1930 (आश्विन शुक्ला 11 से आषाढी पूर्णिमा तक), गाथा-संख्या - 466900
संवत् 1931, गाथा-संख्या - 576758
संवत् 1932, गाथा-संख्या - 811600
संवत् 1933, गाथा-संख्या - 1320400
संवत् 1934, गाथा-संख्या - 1494250
संवत् 1935, गाथा-संख्या - 1361650
संवत् 1936, गाथा-संख्या - 1437950
संवत् 1937, गाथा-संख्या - 1121000
संवत् 1938 (श्रावण शुक्ला 1 तक अर्थात् सोलह दिनों में), गाथा-संख्या - 16700
उपयुक्त स्वाध्याय का क्रम बीदासर से चालू हुआ और प्रायः शेष तक उसी प्रकार से चलता रहा। जयाचार्य शेषकाल के वैशाख महीने में बीदासर पधारे। वहां शारीरिक अस्वस्थता के कारण उन्हें अधिक समय तक रुकना पड़ा। यहां तक कि विक्रम सम्वत् 1930 का चतुर्मास भी वहीं करना पड़ा। उस अस्वस्थता में अन्न की अरचि और अशक्ति का प्राबल्य रहा। जब रोग मिटा, अन्न चलने लगा और शक्ति पुनः लौटी, तभी से उन्होंने अपने स्वाध्याय का उक्त विशिष्ट क्रम चालू कर दिया। उपर्युक्त तालिका विक्रम सम्वत् के श्रावणादि क्रम के आधार से संकलित है। इसलिए विक्रम सम्वत् 1930 में आश्विन शुक्ला 11 से आषाढ़ी पूर्णिमा तक 9 महीने, 4 दिन के स्वाध्याय के ही आंकड़े दिये गये हैं। आगे के प्रत्येक वर्ष में श्रावण कृष्णा 1 से प्रारम्भ कर आषाढ़ी पूर्णिमा तक पूरे वर्ष के आंकड़े प्रदत्त हैं। इस प्रकार उपर्युक्त तालिका में सात वर्ष नौ महीने और इक्कीस दिनों के स्वाध्याय का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है। उस समय की यहां प्रदत्त समग्र स्वाध्याय-संख्या 8607208 पद्य प्रमाण होती है। इसके विपरीत जय-सुजस में समग्र संख्या 8667450 दी गई है, जो कि पूर्वोक्त संख्या से 60242 अधिक है। उक्त संख्या-भेद के विषय में इतना ही कहा जा सकता है कि या तो प्रतिवर्ष की स्वाध्याय संख्या में कहीं कुछ चिंतनीय है या फिर समग्र संख्या के आंकड़े चिंतनीय हैं। एक संभावना यह भी की जा सकती है कि आषाढ़ मास में जयाचार्य के गले की गांठ फूट गई तब अस्वाध्यायी के कारण आगम-स्वाध्याय का अवसर बहुत कम हो गया। श्रावण मास के पूर्वोक्त 16 दिनों में तब जयाचार्य ने 16700 पद्यों का आगम-स्वाध्याय तथा 60242 पद्यों का आगमेतर-स्वाध्याय किया। प्रतिवर्ष के आंकड़ों में केवल आगम-स्वाध्याय का ही उल्लेख किया गया है, किन्तु स्वाध्याय की समग्र संख्या में आगमेतर-स्वाध्याय को भी सम्मिलित कर लिया गया है।
*श्रीमद् जयाचार्य का जीवन रहस्यों का आयाम था...* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹
शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 360* 📜
*श्रीमद् जयाचार्य*
*श्रुत के अनन्य उपासक*
*स्वाध्याय के कुछ आंकड़े*
जयाचार्य ने अपने जीवन में कितना स्वाध्याय किया, यह कह पाना तो कठिन है। पर अन्तिम वर्षों में किये गये आगम-स्वाध्याय के कुछ आंकड़े उपलब्ध हैं। वस्तुतः वे जयाचार्य की स्वाध्यायशीलता की ओर ध्यान आकृष्ट किये बिना नहीं रहते। विक्रम सम्वत् 1930 से 37 तक के आंकड़े इस प्रकार हैं—
संवत् 1930 (आश्विन शुक्ला 11 से आषाढी पूर्णिमा तक), गाथा-संख्या - 466900
संवत् 1931, गाथा-संख्या - 576758
संवत् 1932, गाथा-संख्या - 811600
संवत् 1933, गाथा-संख्या - 1320400
संवत् 1934, गाथा-संख्या - 1494250
संवत् 1935, गाथा-संख्या - 1361650
संवत् 1936, गाथा-संख्या - 1437950
संवत् 1937, गाथा-संख्या - 1121000
संवत् 1938 (श्रावण शुक्ला 1 तक अर्थात् सोलह दिनों में), गाथा-संख्या - 16700
उपयुक्त स्वाध्याय का क्रम बीदासर से चालू हुआ और प्रायः शेष तक उसी प्रकार से चलता रहा। जयाचार्य शेषकाल के वैशाख महीने में बीदासर पधारे। वहां शारीरिक अस्वस्थता के कारण उन्हें अधिक समय तक रुकना पड़ा। यहां तक कि विक्रम सम्वत् 1930 का चतुर्मास भी वहीं करना पड़ा। उस अस्वस्थता में अन्न की अरचि और अशक्ति का प्राबल्य रहा। जब रोग मिटा, अन्न चलने लगा और शक्ति पुनः लौटी, तभी से उन्होंने अपने स्वाध्याय का उक्त विशिष्ट क्रम चालू कर दिया। उपर्युक्त तालिका विक्रम सम्वत् के श्रावणादि क्रम के आधार से संकलित है। इसलिए विक्रम सम्वत् 1930 में आश्विन शुक्ला 11 से आषाढ़ी पूर्णिमा तक 9 महीने, 4 दिन के स्वाध्याय के ही आंकड़े दिये गये हैं। आगे के प्रत्येक वर्ष में श्रावण कृष्णा 1 से प्रारम्भ कर आषाढ़ी पूर्णिमा तक पूरे वर्ष के आंकड़े प्रदत्त हैं। इस प्रकार उपर्युक्त तालिका में सात वर्ष नौ महीने और इक्कीस दिनों के स्वाध्याय का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है। उस समय की यहां प्रदत्त समग्र स्वाध्याय-संख्या 8607208 पद्य प्रमाण होती है। इसके विपरीत जय-सुजस में समग्र संख्या 8667450 दी गई है, जो कि पूर्वोक्त संख्या से 60242 अधिक है। उक्त संख्या-भेद के विषय में इतना ही कहा जा सकता है कि या तो प्रतिवर्ष की स्वाध्याय संख्या में कहीं कुछ चिंतनीय है या फिर समग्र संख्या के आंकड़े चिंतनीय हैं। एक संभावना यह भी की जा सकती है कि आषाढ़ मास में जयाचार्य के गले की गांठ फूट गई तब अस्वाध्यायी के कारण आगम-स्वाध्याय का अवसर बहुत कम हो गया। श्रावण मास के पूर्वोक्त 16 दिनों में तब जयाचार्य ने 16700 पद्यों का आगम-स्वाध्याय तथा 60242 पद्यों का आगमेतर-स्वाध्याय किया। प्रतिवर्ष के आंकड़ों में केवल आगम-स्वाध्याय का ही उल्लेख किया गया है, किन्तु स्वाध्याय की समग्र संख्या में आगमेतर-स्वाध्याय को भी सम्मिलित कर लिया गया है।
*श्रीमद् जयाचार्य का जीवन रहस्यों का आयाम था...* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹