Updated on 21.09.2020 14:51
👉 रोहिणी, दिल्ली - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण👉 वापी ~ "VIRTUAL MISSION EMPOWERMENT" कार्यशाला का आयोजन
👉 पूर्वांचल कोलकाता ~ जेनरेशन गैप वेबीनार का आयोजन
👉 जयपुर ~ अभातेयुप स्थापना दिवस कार्यक्रम
👉 राजराजेश्वरी नगर, बेंगलुरु - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 मुंबई ~ ज्ञानशाला गोट टैलेंट कार्यक्रम का आयोजन
👉 हिसार ~ ज्ञानवर्धक ऑनलाइन प्रतियोगिता (भाग-7) का आयोजन
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प्रस्तुति : 🌻 *संघ संवाद* 🌻
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#प्रेक्षावाणी : श्रंखला - ५०७* ~
*#शारीरिक #स्वास्थ्य और #प्रेक्षाध्यान - ५*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लें।
देखें, जीवन बदल जायेगा, जीने का दृष्टिकोण बदल जायेगा।
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की सम्पूर्ण एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
https://www.facebootk.com/SanghSamvad a/
🌻 #संघ #संवाद 🌻
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🌻 #संघ #संवाद 🌻
Updated on 21.09.2020 10:33
🦚🦚🦋🦚🦚🦋🦚🦚🦋🦚🦚🌳 _*महाश्रमण वाटिका, शमशाबाद, हैदराबाद*_
🏮 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ ----------*
🟢 *_परम पूज्य गुरुदेव_ _अमृत देशना देते हुए_*
⏰ _दिनांक_ : *_21 सितंबर 2020_*
🧶 _प्रस्तुति_ : *_संघ संवाद_*
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 378* 📜
*श्रीमद् जयाचार्य*
*महान् साहित्य-स्रष्टा*
*साहित्य-परिशीलन*
*प्रश्नोत्तर-तत्त्वबोध*
'प्रश्नोत्तर-तत्त्वबोध' एक गहन-गंभीर तात्त्विक चर्चा से भरा हुआ ग्रंथ है। जैन समाज में दो प्रकार की मान्यताएं प्रचलित हैं। कुछ लोग मूर्ति-पूजा को मान्य करते हैं, कुछ नहीं। तेरापंथ मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं रखता। उसके मतानुसार मूर्ति उद्बोध का निमित्त तो बन सकती है, परन्तु उससे वह कोई पूजनीय नहीं बन जाती। इस मान्यता का आगमिक आधार क्या और कितना है— इसी का उत्तर इस पूरे ग्रंथ की आत्मा में समाया हुआ है।
इस ग्रन्थ के निर्माण में हेतु बने अजीमगंज (मुर्शिदाबाद) के मूर्तिपूजक श्रावक कालूरामजी श्रीमाल। उसमें भी एक घटना का योगदान विशेष रूप से रहा। लाडनूं के तेरापंथी श्रावक तनसुखदासजी गोलछा वहां मुनीमी किया करते थे। वे प्रतिदिन मंदिर में सामायिक किया करते थे। एक दिन सामायिक में वे जयाचार्य निर्मित 'हिंसा धरम कांई थापो'— यह गीतिका 'चितार' रहे थे। उसमें मूर्ति-पूजा के विरोध में अनेक साक्ष्य दिये गये हैं। कालूरामजी ने सुना तो सबको असत्य एवं मनगढंत बतलाया।
तनसुखदासजी ने कहा— 'यह गीतिका किसी साधारण व्यक्ति की बनाई हुई नहीं है। इसके निर्माता श्री जयाचार्य महान् आगमवेत्ता हैं। उनके द्वारा प्रदत्त प्रमाणों की परीक्षा किये बिना ही असत्य या मनगढ़ंत कह देना उचित नहीं। सत्यान्वेषी बनकर पहले इन्हें आगमों की कसौटी पर कस कर देखिए, फिर कुछ कहने की बात सोचिए।'
गोलछाजी का कथन कालूरामजी को लग गया। उन्होंने गीतिका की प्रतिलिपि करवाई, शास्त्र मंगवाए और फिर यति गोपीचन्दजी को प्रमाणों की परीक्षा करने का कार्य सौंपा। उन्होंने यथाशीघ्र कार्य सम्पन्न कर निष्कर्ष बतलाते हुए कहा— 'गीतिका में उल्लिखित सभी प्रमाण आगमों में उपलब्ध हैं।'
कालूरामजी जयाचार्य के आगमज्ञान से अत्यन्त प्रभावित हुए। उन्होंने लाडनूं जाकर जयाचार्य के प्रत्यक्ष दर्शन करने का निश्चय किया, परन्तु स्थितिवशात् नहीं जा सके। अपनी जिज्ञासाओं का विस्तार से समाधान पाने हेतु उन्होंने तब यति गोपीचन्दजी से विक्रम सम्वत् 1933 आश्विन शुक्ल पक्ष में एक पद्यात्मक प्रश्न-पत्रिका लिखवाई और उसे लाडनूं श्रावक-संघ के नाम से भेजकर जयाचार्य से उत्तर देने की प्रार्थना की। जयाचार्य उस समय 73 वर्ष के हो चुके थे। संघ की देख-रेख का दायित्व मुख्यतः युवाचार्य मघवा पर था। वे स्वयं साहित्य-निर्माण से भी प्रायः विरत होकर स्वाध्याय, जप और ध्यान में ही अपना समय लगाया करते थे।
*श्रीमद् जयाचार्य के सम्मुख अजीमगंज से जब कालूरामजी की प्रश्न पत्रिका आई... तो क्या हुआ...?* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 378* 📜
*श्रीमद् जयाचार्य*
*महान् साहित्य-स्रष्टा*
*साहित्य-परिशीलन*
*प्रश्नोत्तर-तत्त्वबोध*
'प्रश्नोत्तर-तत्त्वबोध' एक गहन-गंभीर तात्त्विक चर्चा से भरा हुआ ग्रंथ है। जैन समाज में दो प्रकार की मान्यताएं प्रचलित हैं। कुछ लोग मूर्ति-पूजा को मान्य करते हैं, कुछ नहीं। तेरापंथ मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं रखता। उसके मतानुसार मूर्ति उद्बोध का निमित्त तो बन सकती है, परन्तु उससे वह कोई पूजनीय नहीं बन जाती। इस मान्यता का आगमिक आधार क्या और कितना है— इसी का उत्तर इस पूरे ग्रंथ की आत्मा में समाया हुआ है।
इस ग्रन्थ के निर्माण में हेतु बने अजीमगंज (मुर्शिदाबाद) के मूर्तिपूजक श्रावक कालूरामजी श्रीमाल। उसमें भी एक घटना का योगदान विशेष रूप से रहा। लाडनूं के तेरापंथी श्रावक तनसुखदासजी गोलछा वहां मुनीमी किया करते थे। वे प्रतिदिन मंदिर में सामायिक किया करते थे। एक दिन सामायिक में वे जयाचार्य निर्मित 'हिंसा धरम कांई थापो'— यह गीतिका 'चितार' रहे थे। उसमें मूर्ति-पूजा के विरोध में अनेक साक्ष्य दिये गये हैं। कालूरामजी ने सुना तो सबको असत्य एवं मनगढंत बतलाया।
तनसुखदासजी ने कहा— 'यह गीतिका किसी साधारण व्यक्ति की बनाई हुई नहीं है। इसके निर्माता श्री जयाचार्य महान् आगमवेत्ता हैं। उनके द्वारा प्रदत्त प्रमाणों की परीक्षा किये बिना ही असत्य या मनगढ़ंत कह देना उचित नहीं। सत्यान्वेषी बनकर पहले इन्हें आगमों की कसौटी पर कस कर देखिए, फिर कुछ कहने की बात सोचिए।'
गोलछाजी का कथन कालूरामजी को लग गया। उन्होंने गीतिका की प्रतिलिपि करवाई, शास्त्र मंगवाए और फिर यति गोपीचन्दजी को प्रमाणों की परीक्षा करने का कार्य सौंपा। उन्होंने यथाशीघ्र कार्य सम्पन्न कर निष्कर्ष बतलाते हुए कहा— 'गीतिका में उल्लिखित सभी प्रमाण आगमों में उपलब्ध हैं।'
कालूरामजी जयाचार्य के आगमज्ञान से अत्यन्त प्रभावित हुए। उन्होंने लाडनूं जाकर जयाचार्य के प्रत्यक्ष दर्शन करने का निश्चय किया, परन्तु स्थितिवशात् नहीं जा सके। अपनी जिज्ञासाओं का विस्तार से समाधान पाने हेतु उन्होंने तब यति गोपीचन्दजी से विक्रम सम्वत् 1933 आश्विन शुक्ल पक्ष में एक पद्यात्मक प्रश्न-पत्रिका लिखवाई और उसे लाडनूं श्रावक-संघ के नाम से भेजकर जयाचार्य से उत्तर देने की प्रार्थना की। जयाचार्य उस समय 73 वर्ष के हो चुके थे। संघ की देख-रेख का दायित्व मुख्यतः युवाचार्य मघवा पर था। वे स्वयं साहित्य-निर्माण से भी प्रायः विरत होकर स्वाध्याय, जप और ध्यान में ही अपना समय लगाया करते थे।
*श्रीमद् जयाचार्य के सम्मुख अजीमगंज से जब कालूरामजी की प्रश्न पत्रिका आई... तो क्या हुआ...?* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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