22.09.2020 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 22.09.2020
Updated: 22.09.2020

Updated on 22.09.2020 12:55

🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन

👉 *#प्रेक्षावाणी : श्रंखला - ५०८* ~
*#शारीरिक #स्वास्थ्य और #प्रेक्षाध्यान - ६*

एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लें।
देखें, जीवन बदल जायेगा, जीने का दृष्टिकोण बदल जायेगा।

प्रकाशक
#Preksha #Foundation
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🌻 #संघ #संवाद 🌻

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Updated on 22.09.2020 11:10

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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 379* 📜

*श्रीमद् जयाचार्य*

*महान् साहित्य-स्रष्टा*
*साहित्य-परिशीलन*

*प्रश्नोत्तर-तत्त्वबोध*

गतांक से आगे...

अजीमगंज से जब उक्त प्रश्न-पत्रिका जयाचार्य के सम्मुख आई तब मानों उनका विश्रान्ति साहित्यकार पुनः अंगड़ाई लेकर खड़ा हो गया। लगभग साढ़े चार महीनों में ही उन्होंने उसमें उठाये गये प्रश्नों का विस्तृत उत्तर लिख डाला। प्रश्न 53 पद्यों में थे तो उत्तर 1702 पद्यों में। विक्रम सम्वत् 1933 फाल्गुन कृष्णा 12 को बीदासर में इस ग्रन्थ की संपन्नता हुई। पहले इसे 25 अधिकारों (अध्यायों) के 1660 पद्यों में संपन्न कर दिया था, परन्तु बाद में 42 पद्यों के 2 छोटे अधिकार और जोड़कर 27 अधिकार कर दिये गये। आश्चर्य तो यह है कि उन्होंने अपने स्वाध्याय और ध्यान के क्रम को यथावत् चालू रखते हुए यह कार्य किया था।

प्रश्न-पत्रिका में से एक-एक प्रश्न को जयाचार्य ने अपने शब्दों में उठाया और फिर उसका उत्तर दिया है। उनके अतिरिक्त अनेक उद्भाव्य प्रश्नों के उत्तर भी उन्होंने दिये हैं। उनका प्रत्येक उत्तर आगमिक तथा व्यावहारिक तर्कों का आधार लिए हुए है। प्रथम अधिकार में उन्होंने प्रश्न की उद्भावना की है कि कोई कहता है— विजय, सूर्याभ आदि देवों ने जिन-प्रतिमाओं की पूजा की है— ऐसा आगम में वर्णन है, तब उसे अमान्य कैसे किया जा सकता है? उन्होंने उक्त प्रश्न का उत्तर इस प्रकार दिया है— विजयदेव का जीव अनंत बार उसी प्रकार से जिन-प्रतिमा की पूजा कर चुका है। विजय के स्थान पर उत्पन्न अन्य देवों ने भी वैसा ही किया है, परन्तु उस क्रिया से कोई भी भव-पार नहीं हो पाया। भगवान् महावीर को मारणांतिक उपसर्ग करने वाले संगमदेव ने भी पदासीन होते समय प्रतिमा-पूजा की थी। वैसे ही सूर्याभ ने भी की थी। ये ही नहीं, अन्य भी सम्यक्त्वी तथा मिथ्यात्वी देव प्रतिमा-पूजा करते हैं। वे पुतलियों तथा पुस्तकों आदि अन्य वस्तुओं की भी पूजा करते हैं। वह सब देवलोक की परम्परा एवं मर्यादा के आधार पर करते हैं, धर्म-कार्य के रूप में नहीं। वे पद्य इस प्रकार हैं—

*प्रतिमा पूजी विजय-सूर-*
*जीव अनंती वार।*
*विजय पणै सहु ऊपनां,*
*पाम्या नहीं भाव-पार।।*
*शक्र सामानिक संगमो,*
*देवलोक-स्थिति हेत।*
*पूजै जिन प्रतिमादि ते,*
*राज बेसतां तेथ।।*
*तिमहिज सूरियाभादि सुर,*
*राज बेसतां तेह।*
*प्रतिमा पूतलियादि प्रति,*
*बहु बाना पूजेह।।*
*सूरियाभे सुरलोक नीं,*
*स्थिति ना वश थी जाण।*
*पूजा जिन-प्रतिमा तणी,*
*कीधी कही पिछाण।।*
*समदृष्टि पूजै तिमज,*
*मिथ्याती पूजंत।*
*देवलोक नीं स्थिति वशात्*
*(पिण) धर्म कार्य नहि हुंत।।*

मूर्तिपूजक लोग मूर्ति की पूजा करने में ही नहीं, उसके सम्मुख नृत्य करने में भी धर्म मानते हैं। जयाचार्य ने उसके उत्तर में कहा है कि सूत्र में सूर्याभदेव का वर्णन है, वहां बतलाया गया है कि जब उसने भगवान् महावीर को वंदन किया तब उन्होंने उस कार्य की प्रशंसा में छह बातें कहीं और उस कार्य को करणीय एवं अभ्यनुज्ञात बतलाया, परन्तु उसके पश्चात् जब उसने यह पूछा कि भगवन्! मैं भक्तिपूर्वक गौतम आदि मुनियों को अपनी देवर्द्धि दिखलाने के लिए नाटक करना चाहता हूं। तब भगवान् ने उसके कथन को कोई आदर नहीं दिया। उसकी आज्ञा देना तो दूर उन्होंने उसे मन में भी अच्छा नहीं समझा। जयाचार्य कहते हैं कि जब स्वयं भगवान् महावीर अपने सामने किये जाने वाले नाटक की न आज्ञा देते हैं और न ही उसकी अनुमोदना करते हैं, तब उनकी मूर्ति के सम्मुख किये जाने वाले नृत्य में धर्म कहां से हो जाएगा?

*श्रीमद् जयाचार्य द्वारा दिए गए कालूरामजी के और भी अन्य प्रश्नों के उत्तरों...* के बारे में जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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Updated on 22.09.2020 09:06

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🌳 _*महाश्रमण वाटिका, शमशाबाद, हैदराबाद*_

🏮 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ ----------*

🟢 *_परम पूज्य गुरुदेव_ _अमृत देशना देते हुए_*

⏰ _दिनांक_ : *_22 सितंबर 2020_*

🧶 _प्रस्तुति_ : *_संघ संवाद_*

https://t.me/joinchat/NqOXw0XjJyPNJBY-ALmlWA

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SS
Sangh Samvad
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