Updated on 21.01.2021 16:43
🌸 कर्म के फल को कोई बांट नहीं सकता - आचार्य महाश्रमण🌸🌸 महातपस्वी द्वारा आज 20 किलोमीटर का प्रमुख विहार🌸
🌸 शांतिदूत के दर्शनार्थ पहुंचे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सहित कई नेता गण🌸
21 जनवरी 2021, गुरुवार, डिमरापाल, बस्तर, छत्तीसगढ़
तीर्थंकर प्रभु महावीर के प्रतिनिधि तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने आज प्रातः मावली भाटा से मंगल विहार किया। जन-जन में अहिंसा की चेतना का जागरण करने वाले शांतिदूत श्री महाश्रमण जी के पवित्र आभामंडल से दर्शन को आया हर श्रद्धालु अपने आप में पावनता, पवित्रता का अनुभव करता है। प्रतिदिन अनेक क्षेत्रों से लोग आचार्यवर के दर्शनार्थ उपस्थित होते रहते हैं। आज भी अहिंसा यात्रा में संभागी बनने छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों के साथ-साथ उड़ीसा आदि के भी अनेकानेक भक्तजन पूज्य चरणों में उपस्थित थे। प्रातः लगभग 16 किलोमीटर का प्रलंब विहार कर आचार्य श्री केशलूर ग्राम के आराध्य इंटरनेशनल होटल में पधारे।
धर्मसभा में प्रवचन करते हुए आचार्य श्री ने कहा- जैन धर्म में कर्मवाद सिद्धांत है। पूण्य-पाप सबका अपना-अपना होता है। कोई भी किसी के पुण्य अथवा पाप को बांट नहीं सकता। इसलिए व्यक्ति जागरूक रहे कि ऐसे पाप कर्म न करू जिससे कष्ट भोगने पड़े। जैन धर्म में कर्म के आठ प्रकार है। कर्मों के अनुसार व्यक्ति के व्यक्तित्व व व्यवहार का भी पता चल सकता है। हम देखे तो कई बार स्थूल रूप में कर्मों का फल देखने को भी मिल जाता है। व्यक्ति अच्छा कार्य करता है तो अच्छा और बुरा कार्य करता है तो बुरा परिणाम मिलता है। हमारे बालमुनि इतना सीखना करते हैं, कंठस्थ करते हैं। कोई जल्दी याद कर लेता है तो किसी को जल्दी याद नहीं भी होता। मानना चाहिए कि यह ज्ञानावर्णीय कर्म के प्रभाव से होता है। शरीर में कष्ट उत्पन्न हो जाए, कोई बीमारी हो जाए तो वह वेदनीय कर्म की प्रतिकूलता के कारण होता है। शरीर स्वस्थ हो तो सातवेदनीय कर्म का उदय माना जा सकता है। किसी का आयुष्य लंबा होता है तो किसी का आयुष्य कम यह भी आयुष्य कर्म के कारण होता है। एक व्यक्ति है जिसकी प्रतिष्ठा है, ख्याति है लोग भी उसकी बात सुनते हैं तो यह शुभ नामकर्म का उदय है। एक व्यक्ति की कोई भी सुनता नहीं है, उसका सम्मान नहीं है तो मैं अशुभ नामकर्म का उदय है। 8 कर्म है जैसा कर्म वैसा फल व्यक्ति को मिलता है। हम कर्मवाद के सिद्धांत पर मनन करें और जीवन में अशुभ कामों से बचें। मेरी ओर से किसी को कष्ट नहीं हो किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं हो मन में यह चिंतन रहना चाहिए।
दृष्टांत के माध्यम से प्रेरणा देते हुए गुरुदेव ने आगे कहा कि चलते समय भी ध्यान दें कि कोई चींटी आदि ना मर जाए, कोई छोटा जीव ना मर जाए। मार्ग में हरियाली आ जाती है तो उस पर भी पाव न पड़े। जितना हो सके उससे बचाव करने का प्रयास करना चाहिए। देख-देख कर चलना ही अहिंसा का भाव है। हमारे छोटे साधु भी ध्यान रखें चले तो ज्यादा तेज न जले धीमी-धीमी गति से चले। बचपन में शरीर में अनुकूलता हो सकती है पर दौड़ना नहीं चाहिए। क्षमता होना अलग बात है और उसका उपयोग करना अलग बात। ईर्या समिति के साथ-साथ भाषा समिति का भी ध्यान रखना चाहिए। हमारी भाषा निरवद्य हो, परिमित हो, संयत भाषा हो। कुछ भी बोले तो विचारपूर्वक बोले ना कहने की बात ना कहें। आगम में कहां गया की साधु बहुत कुछ सुनता है और बहुत सी चीजें देखता है परंतु सारा सुना हुआ, सारा देखा हुआ कहने का नहीं होता। किसी की गोपनीय बात को फैलाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। किसी की गलती ध्यान में आ गई तो उसे बता दे उसे फैलाये नहीं। शांति, अहिंसा, क्षमा, विवेक आदि से व्यक्ति का आचरण अच्छा होना चाहिए। जीवन में पाप कर्मों से अपनी आत्मा को बचाने का प्रयास करें यह काम्य है।
प्रवचन पश्चात आचार्यश्री के सान्निध्य में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्री विष्णु देव राय एवं दिनेश जी कश्यप पूर्व सांसद, केदार जी कश्यप पूर्व मंत्री, महेश जी का गागड़ा पूर्व मंत्री, डॉ. सुभउ रामजी पूर्व विधायक, श्री संतोष जी बाफना पूर्व मंत्री, श्री बैदू जी कश्यप पूर्व विधायक, प्रदेश महामंत्री श्री किरण देव जी, भारतीय जनता पार्टी जिला अध्यक्ष श्री रूप सिंह मंडावी, श्री विद्या शरण जी तिवारी पूर्व जिला अध्यक्ष, मिथिलेश स्वर्णकार, अक्षय ऊर्जा निगम के अध्यक्ष ने दर्शन कर आशीर्वाद ग्रहण किया।
सायं लगभग 4:21 बजे पूज्य प्रवर का केशलूर से मंगल विहार हुआ। इस मौके पर जगदलपुर के विधायक श्री रेखचंद जैन आचार्य श्री की सेवा में उपस्थित हुए और विहार में संभागी बने। 4 किलोमीटर विहार कर शांतिदूत श्री महाश्रमण विनोबा ग्राम डिमरापल के माता रुक्मणी सेवा संस्थान में पधारे । इस अवसर पर संस्थान के अध्यक्ष पद्मश्री धर्मपाल सैनी, सचिव श्रीमती करुणा शाह, सदस्य सुश्री शैल बहन जी आदि ने शांतिदूत का स्वागत किया। छात्राओं ने नमस्कार महामंत्र के पाठ द्वारा गुरुदेव का अस्थासिक्त वन्दन किया। ज्ञातव्य है कि दिनांक 22 एवं 23 जनवरी को आचार्यश्री का जगदलपुर में दो दिवसीय प्रवास रहेगा।
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Updated on 21.01.2021 12:28
♦️ 16 किमी का प्रलंब विहार कर केशलूर में पधारे गुरुदेव♦️ सायंकाल फिर होगा 4.5 किमी का विहार
♦️ जगदलपुर में कल होगा अहिंसा यात्रा का भव्य प्रवेश
♦️ पूज्यचरणों में पहुंचे बड़ी संख्या में ओड़िशावासी श्रद्धालु
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Posted on 21.01.2021 07:37
🌸 सुखी जीवन का सूत्र है समता - आचार्य महाश्रमण🌸🌸 पूज्य प्रवर ने दी क्रोध को शांत रखने की प्रेरणा🌸
🌸 शांतिदूत के चरण कमलों में पहुंचे बस्तर के महाराजा श्री कमलचंद🌸
20 जनवरी 2021, बुधवार, मावली भाटा, बस्तर, छत्तीसगढ़
अहिंसा यात्रा प्रणेता शांतिदूत पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी शांति, सद्भावना का संदेश देते हुए बस्तर जिले में अनवरत गतिमान है। कई ऐसे क्षेत्र जहां कभी शायद ही इतने बड़े जैनाचार्य का पदार्पण हुआ है वैसे मुख्यधारा से कटे हुए गांवों को भी अपने पावन चरणों से परम पूज्य महाश्रमण जी धन्य कर रहे हैं। आज प्रातः आचार्य श्री ने किलेमला ग्राम से मंगल प्रस्थान किया सामने की ओर से आती तेज धूप में भी समत्व भाव से यात्रायित पूज्यवर की समता सबके लिए प्रेरणादायी बन रही थी। लगभग 14.2 किलोमीटर का प्रलंब विहार कर गुरुदेव मावली भाटा के प्री मैट्रिक कन्या छात्रावास में पधारे।
धर्म सभा में प्रेरणा प्रदान करते हुए आचार्य श्री ने कहा आदमी कभी हर्ष में चला जाता है तो कभी शोक में। यह हर्ष-शोक जो परिस्थिति जन्य है यह तो सामान्य बात है यह समता से नीचे की स्थिति है कि अनुकूलता आने पर हर्षित हो जाना और प्रतिकूलता आने पर दुखी। प्रिय अप्रिय दोनों स्थितियों में समता भाव रखकर व्यक्ति अपनी आत्मा को विप्रसन्न, विशिष्ट प्रसन्न कर सकता है। जीवन में अनुकूलता प्रतिकूलता दोनों आ सकती है व्यक्ति दोनों में समता भाव रखें जैसे सूर्य उदयकाल में भी लालिमा लिए होता है और अस्तकाल में भी लालिमा लिए होता है। हर परिस्थिति में समता भाव हमारे भीतर रहना चाहिए।
पूज्य प्रवर ने आगे कहा कि आपत्ति और विपत्ति दो बहने हैं। जीवन में परिस्थितियां आती है हमेशा रहे जरूरी नहीं। आती हैं चली भी जाएगी। समता में जो रहता है उसका परिणाम सदा अच्छा होता है। कहा गया हैं जो शांत होता है व संत होता है। हमारे बाल मुनि भी इस वाक्य को याद कर सकते हैं। मन में प्रसन्नता रहे शांति रहे। समता में रहने वाला साधक होता है, संत होता है। बच्चों में भी संस्कार रहे कि गुस्से में आकर प्रतिक्रिया नहीं करें। गुस्से में आकर बड़ों के सामने बोलना जोर-जोर से बोलना अच्छा नहीं होता। रामचंद्र जी को वनवास मिला तब भी उनमें समता भाव था और राजा बने तब भी मन में समता भाव रहा। हम सम्मान-अपमान हर स्थिति में समता भाव रखने का प्रयास करें। हमारे प्रथमाचार्य श्री भिक्षु को देखें जीवन में कितने विरोधियों का सामना किया। परम पूज्य आचार्य श्री तुलसी आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के जीवन में भी कितनी-कितनी स्थितियां आई ऐसे में भी वह शांति से रहे। सुख से जीवन जीने का एक बड़ा सूत्र है - समता रखो। समता के द्वारा अपने आप को विशेष प्रसन्न रखने में हम सफल हो सकते हैं।
प्रवचन के पश्चात पूज्य गुरुदेव के सान्निध्य में बस्तर के राजपरिवार से महाराजा श्री कमलचंद भंजनदेव दर्शनार्थ उपस्थित हुए। ज्ञातव्य है कि बस्तर के जो महाराजा होते हैं वही जगदलपुर मंदिर के मुख्य पुजारी होते हैं। स्थानीय आदिवासियों में भी बस्तर के महाराजा काफी महत्व रखते हैं। महाराजा ने पूज्य गुरुदेव को जगदलपुर राज महल में पधारने की अर्ज की। आचार्य श्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।
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