Jhini Charcha Dhal 2 Part 1 by Jayacharya

Published: 26.02.2024
Updated: 26.02.2024
Jhini Charcha was  written by Acharya Jeetmal. It contains macro things of metaphysics.  Jain Terms like Leshya, Bhav, Gunsthan, Yog, Upyog have been discussed on basis of different Agam. He composed it in the form of poetry in an easy Rajasthani language. 
Noted Singer Babita Gunecha has presented it in a melodious voice. 
Jhini Charcha book contains 22 Dhal (Collection of 22 Poems) .
Dhal. 2nd and Stanza.. 1 to 12

ढाल.. 2 पद्य 1 से 12
१. मान क्रोध प्रमाद तज, आलस अंग निवार।

सीखो चरचा सुगुण-जन, आणी हरष अपार।।

गुणीजनो! मान, क्रोध और प्रमाद को त्याग, अंग-अंग में व्याप्त आलस्य का निवारण कर अत्यन्त उल्लास के साथ तत्त्व-चर्चा का अभ्यास करो।

२. उदे1 उपशम खायक खयोपशम तथा निषन ए च्यार।

छ-द्रव्य नव-तत्त्व मांहि कुण? दूजी ढाल मझार।।

उदय, उपशम, क्षय और क्षयोपशम तथा उदय-निष्पन्न, उपशम-निष्पन्न, क्षय-निष्पन्न और क्षयोपशम-निष्पन्न भाव छह द्रव्यों में किस द्रव्य में और नव तत्त्वों में किस तत्त्व में समाविष्ट होते हैं? यह दूसरी गीतिका का प्रतिपाद्य है।

३. बलि आठूई कर्म नो, उदयादिकि अधिकार।

छ-द्रव्य नव-तत्त्व माहि कुण?, दूजी ढाल मझार।।

इसी प्रकार आठों कर्मों के उदय आदि छह द्रव्यो में किस द्रव्य में और नव तत्त्वों में किस तत्त्व में समाविष्ट होते हैं? यह भी दूसरी गीतिका का प्रतिपाद्य है।

उदय आदि का द्रव्यों और तत्त्वों में समावेश

✽ कर्म आठूं अन्तकरण ओलखीजे (ध्रुपद)

आठों कमाँ की अन्तःकरण से पहचान करें।

४. उदे छ-द्रव्य में पुद्गल कहीजै, नव-तत्त्व मांहि कहीजे च्यार।

अजीव पुन पाप बन्ध ए च्यारू, कर्म आठूं आया उदै मझार।।

कर्मों के उदय का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में अजीव, पुण्य, पाप और बन्ध -इन चार तत्त्वों में समावेश होता है। उदय आठों कमा का होता है।

५. उपशम छ-द्रव्य में पुद्गल कहीजे, नव-तत्त्व मांहि कहीजे तीन।

अजीव पाप बंध ए त्रिहुं जाणो, उपशमिया कर्म ते उपशम चीन।।

कर्मोंके उपशम का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में अजीव, पाप और बन्ध -इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है। मोह कर्म का उपशान्त होना उपशम है।

६. खायक छ-द्रव्य में पुद्गल कहीजे, नव-तत्त्व मांहि कहीजे च्यार।

अजीव पुन पाप बंध च्यारूई, कर्म खपिया ते खायक दिल सूं विचार।।

कर्मोंके क्षय का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में अजीव, पुण्य, पाप और बन्ध -इन चार तत्त्वां में समावेश होता है। कर्मों का क्षीण होना क्षय है।

७. खयोपशम छ-द्रव्य मांहे छै पुद्गल,

नव-तत्त्व मांहि कहोजे तीन।

अजीव पाप बंध ए त्रिहुं जाणो,

कांयक खपिया उपशमिया ते खयोपशम चीन।।

कर्मों के क्षयोपशम१ का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्वों में अजीव, पाप और बन्ध - इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है। कुछ कर्म-पुद्गलों का क्षीण होना तथा कुछ कर्म पुद्गलों का उपशान्त होना क्षयोपशम है।

८. उदे आठ कर्मा रो होवे, उपशम मोहकर्म रो होय।

खायक पिण होवै आठ कर्म रो, खयोपशम च्यार कर्म रो जोय।।

उदय आठों कर्मों का होता है, उपशम केवल मोह कर्म का होता है, क्षय भी आठों कर्मों का होता है और क्षयोपशम ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय- इन चार कर्मों का होता है।

९. परिणामिक छ-द्रव्य में छह कहीजे, नव तत्त्व मांहि नवूई कहीजे।

जीव-परिणामी अजीव-परिणामी, बुद्धिवंत न्याय विचारी लीजै।।

पारिणामिक भाव का सभी द्रव्या और सभी तत्त्वों में समावेश होता है। क्योंकि उसके दो प्रकार होते हैं-जीव पारिणामिक और अजीव पारिणामिक। बुद्धिमान्‌ इस न्याय पर विचार करें।

भावों का द्रव्यों और तत्त्वों में समावेश

१०. उदे-निपन छ-द्रव्य में जीव कहीजे, नव-तत्त्व मांहि कहीजे दोय।

जीव अने आसव मिथ्यातादिक ए, उदय थी निपना उदय निपन जोय।।

उदय-निष्पन्न (औदयिक) भाव का छह द्रव्यो में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वां में जीव और मिथ्यात्व आदि पंचविध आश्रव में समावेश होता है। औदयिक भाव कर्म के उदय से निष्पन्न होने के कारण उदय-निष्पन्न कहलाता है।

११. उपशम-निपन छमें जीव कहीजे, नव-तत्त्व मांहि दोय वर न्याव।

जीव अने संवर ए बिहूं जाणो, कर्म उपशमियां निपना उपशम -भाव।।

उपशम -निष्पन्न (औपशमिक) भाव का छह द्रव्यों में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव और संवर -इन दो तत्त्वों में समावेश होता है। औपशमिक भाव कर्म के उपशम से निष्पन्न होने के कारण उपशम-निष्पन्न कहलाता है।

१२. खायक-निपन छमें जीव कहीजे, नव-तत्त्व मांहि कहीजे च्यार।

जीव संवर निर्जरा ने मोख ए, कर्म खय थयां निपना गुण सुखकार।।

क्षय-निष्पन्न (क्षायिक) भाव का छह द्रव्यों में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव, संवर, निर्जरा और मोक्ष -इन चार तत्त्वों में समावेश होता है। क्षायिक भाव कमों के क्षय से निष्पन्न होने के कारण क्षय-निष्पन्न कहलाता है।
Sources
From: Sushil Bafana
Provided by: Sushil Bafana
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