21.06.2012 ►Pachpadra ►Life-span-determining karma is Responsible for Long or Short Life► Acharya Mahashraman

Published: 21.06.2012
Updated: 21.07.2015

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Pachpadra: 21.06.2012

Life-span-determining karma is Responsible for Long or Short Life. Acharya Mahashraman told this ting while discussing theory of Karma. He told that people should live in good Lesya.

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व्यक्ति की परिणाम धारा शुद्ध हो: आचार्य
पचपदरा २१ जून २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
जैन तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने मनुष्य या प्राणी के आयुष्य के बारे में कहा कि आयुष्य कम-ज्यादा होने का आधार आयुष्य कर्म है। आयुष्य लम्बा बंधा हो तो व्यक्ति उसे लंबा ही भोगता है। आयुष्य कर्म कितना है, यह जानना भी मुश्किल है। उन्होंने कहा कि आयुष्य का बंधन हुए बिना व्यक्ति मरता नहीं है। आचार्य बुधवार को श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित कर रहे थे।

आचार्य ने संलेखना विधि से मृत्यु वरण के बारे में कहा कि प्राण छूटे उस समय व्यक्ति साधना की विशेष भूमिका पर आरूढ़ हो। सामान्य अवस्था में प्राण नहीं छूटे। अनेक साधु-साध्वियां, श्रावक समाज में भी अनशन करते हैं और आत्मा के कल्याण का प्रयास करते हैं। यह साधु व श्रावक का एक मनोरथ भी है। इसलिए व्यक्ति को संथारे की भावना मन में रखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि व्यक्ति के अंतिम समय तो परिणाम शुद्ध रहने ही चाहिए, साथ ही हर क्षण परिणाम शुद्ध रहने चाहिए। क्योंकि कर्मों का बंध होना अनिष्ट ही है। इसलिए जागरूक रहना चाहिए। व्यक्ति की परिणाम धारा शुद्ध रहनी चाहिए। व्यक्ति विचार करे कि उसके अधोगति के आयुष्य का बंध न हो। नरक व तिर्यञ्चगति का बंध पाप के कारण होता है। व्यक्ति के जीवन का क्रम धार्मिक होना चाहिए। आचार्य ने संयम की प्रेरणा देते हुए कहा कि वाहन से यात्रा का भी संयम होना चाहिए। श्रावकों को यातायात की सीमा तय करनी चाहिए। क्योंकि वाहन एक हिंसक साधन है जिससे अनेक जीव मर जाते हैं। व्यक्ति जीवन में क्षण-क्षण जागरूक रहे, अप्रमत रहे। लड़ाई-झगड़े व गुस्से से बचे। व्यक्ति व्यापार में बेइमानी से बचें। व्यापार में शुचिता रखे। व्यक्ति का समय प्रबंधन ऐसा हो कि वह धर्म-ध्यान के लिए भी समय निकाल सके। आचार्य ने कहा कि व्यक्ति का जीवन साधना प्रधान हो। व्यक्ति में अवस्था बढऩे के साथ धार्मिकता के प्रति रुझान बढऩा चाहिए। मंत्री मुनि सुमेरमल ने परम की प्राप्ति के लिए कहा कि परम और पदार्थ दोनों के प्रति व्यक्ति में आकर्षण रहता है। व्यक्ति पदार्थ का संग्रह व उपयोग भी करना चाहता है और परम तक भी पहुंचना चाहता है। व्यक्ति में जब तक पदार्थ के प्रति आकर्षण रहेगा, तब तक परम तक पहुंचना मुश्किल है। परम तक जाने के लिए मन को संयमित बनाना होगा। मुनि रजनीश कुमार ने सहिष्णुता, विनम्रता, सकारात्मक चिंतन, अनेकांत दृष्टिकोण से व्यक्ति को प्रसन्न व सुखी रहने के गुर बताएं। कार्यक्रम के प्रारंभ में मुनि महावीर कुमार ने भगवान तुम्हारे अंदर है गीत की प्रस्तुति दी। तेरापंथ के झरोखों में पचपदरा पुस्तक के लोकार्पण के दौरान महेंद्र चौपड़ा व डूंगरमल बागरेचा ने विचार व्यक्त किए। यह पुस्तक पुखराज मदानी संयोजक प्रवास व्यवस्था समिति, सभाध्यक्ष नेमीचंद चौपड़ा, तेयुप अध्यक्ष आनंद चौपड़ा, आनंद चौपड़ा, महेन्द्र चौपड़ा, गौतमचंद डागा ने आचार्य को उपहृत की। मुमुक्षु अशोक बोथरा के लिए वैभव बोथरा, दीपांशा बोथरा व चेतन बोथरा ने तथा मुमुक्षु जय मेहता के लिए शिवांगी मेहता ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया।

Sources

ShortNews in English:
Sushil Bafana

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