17.03.2018 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 17.03.2018
Updated: 17.03.2018

Update

.#सोयाबीन_पर_प्रवचन_आचार्यश्री के Latest Pravachan..

सोयाबीन जैसे घातक बीज से जमीन की उर्वरक क्षमता हो रही कम -आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी @ डिंडौरी (मप्र)

सोयावीन भारत का बीज नहीं है, यह विदेशों में जानवरो को खिलाने वाला आहार है। उक्त उदगार *दिगम्बर जैनाचार्य श्री विधासागर जी महाराज* ने मध्यप्रदेश के वनांचल में वसे डिंडौरी नगर में एक महती धर्म सभा को सम्बोधित करते हुऐ व्यक्त किये। आचार्य श्री ने वताया कि भारत मे सोयावीन से दूध,विस्किट, तेल आदि खाद्यय उपयोगी वस्तुएं लोग खाने में उपयोग कर रहे है। सोयावीन का बीज भारत मे षणयंत्र पूर्वक भेजा गया है। इसे अमेरिका जैसे अनेक देशों में शुअर आदि जानवरों को खिलाने के लिये उत्पादित करते है।

भारत मे आज बहुतायात सुबह नींद से उठते ही इसका उपयोग विसकुट, पैक दूध बच्चों से लेकर बड़े तक खाने में उपयोग कर रहे है।विदेश का जानवरों का खाद्वय पद्वार्थ हम जानकर उपयोग कर रहे है। इसके घातक परिणाम देखने को मिल रहे है। गम्भीर विमारियाँ, बच्चों के शारीरिक,मानसिक विकास में कमी, आदि कई प्रकार के परिणाम परोक्ष रूप से देखने मिल रहे हैं। इस देश की सोना उगलने बाली उपजाऊ जमीन की उर्वरक क्षमता खत्म हो रही है। जिसका मुख्य कारण वह विदेशी सोयावीन का बीज जो दिनों दिन जमीन से सारे तत्व नष्ट कर रहा है ।
पारम्परिक बीजों की बुवाई करें। स्वदेशी अपनावें। सोना, हीरा, मोती उगलने बाली जमीन को वापिस पाएं।।

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मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है पतवार के बिना ही मेरी नाव चल रही है।हैरान है ज़माना मंजिल भी मिल रही है।करता नहीं मैं कुछ भी, सब काम हो रहा है॥मैं तो नहीं हूँ काबिल, तेरा पार कैसे पाऊं।टूटी हुयी वाणी से गुणगान कैसे गाऊं।तेरी प्रेरणा से ही सब यह कमाल हो रहा है।

*१०५ पूर्णमतिमाता जी को वन्दामि*
*_रजत जैन भिलाई_*

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कैसे जीतें कर्म

हम भी कर्म जीत सकते हैं...मन हम सकल निर्जरा नहीं कर सकते लेकिन कर्मों का भार तोह आत्मा के ऊपर से कम कर ही सकते हैं..कुछ बातें जो मुनि क्षमा-सागर जी महाराज द्वारा "कर्म सिद्धांत" के प्रवचनों में जो इन्टरनेट पे उपलब्ध हैं..और डाउनलोड कर के सुनी जा सकती हैं...वह कुछ इस प्रकार से हैं..

१.समता भाव रखो-समता भाव से मतलब है की भूत और भविष्य के विकल्पों के बारे में नहीं सोचना,ऐसा नहीं सोचना की कल क्या हुआ था,और आगे क्या होगा,ऐसा नहीं हुआ तोह क्या होगा,हो गया तोह क्या होगा..अगर ऐसा सोचते हैं...तोह समता भाव से तोह अपन दूर हो ही जाते हैं औ साथ की साथ आत्र-ध्यान और रौद्र ध्यान भी करने लगते हैं..समता भाव हमें सिखाता है..वर्तमान में जीना..और खुश जीना..बिना किसी चिंता के

२.सदभाव और अभाव में सामंजस्य बनाये रखना - अगर मैं चाहता हूँ की मेरे ऊपर से कर्मों का भार कम हो..तोह मुझे चाहिए सामंजस्य बनाये रखने की...मुझे दुखी नहीं होना चाहिए..अगर मेरे पे किसी चीज का सदभाव है...जैसे की अगर मेरे पे कुछ नहीं है..तोह मैं दुखी नहीं होऊं..और इसके बारे में नहीं सोचूं..जैसे अगर मेरे पे मोटर साइकिल नहीं है..तोह मुझे मोटर साइकिल के बारे में सोचने में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए...और किसी दुसरे से जिसके पास यह सब है..उसे इर्ष्या और कषाय नहीं करना चाहिए...मेरे पास जो भी है उससे खुश रहना चाहिए...अगर मेरे पास किसी चीज का सदभाव है..यानि की कोई चीज जरुरत से ज्यादा मौजूद है...तोह उसका गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए...अगर हम पे पैसा ज्यादा है..तोह बर्बाद न करें..कोई चीज ज्यादा है..उसका गलत इस्तेमाल और ज्यादा इस्तेमाल न करें..जो जीव किसी चीज के सदभाव में शांत रह सकता है..वह किसी चीज के अभाव में भी शांत रह सकता है..इस आदत को अपने अन्दर लाने के लिए एक मंत्र है...की यह सोचें की "यह दिन ऐसे ही निकल जाएगा,यह भी एक दिन बीतेगा)

३.कम से कम प्रतिक्रिया -इसकी विपरीत आदत हम सब में है.अगर मान लीजिये की हम किसी पत्थर से टकरा कर गिर जाते हैं..तोह हम गाली देना शुरू कर देते हैं....पत्थर के मालिक को,वहां रखने वाले को,कुछ नहीं तोह पत्थर को ही गाली देते हैं..और साथ की साथ रोते हैं..चीखते हैं...कराहते हैं..अगर हम इस आदत को सुधर लें तोह बहुत से कर्मों से बच सकते हैं..वह भी थोड़े से पुरुषार्थ में..जब ऊपर बताई हुई अवस्था आये तोह हमें सोचना चाहिए सकारात्मक.जैसे की किसी ने चांटा मारा--हमें सोचना चाहिए..की यह आदमी कितना अच्चा है..जो इतनी सी गलती पे चांटा मारा..चाहे तोह लात मर सकता था,पीट सकता था..या और कुछ भी कर सकता था..लेकिन मेरा असाता वेदनीय बहुत प्रवल था..लेकिन किसी शुभ कर्म के कारण यह सिर्फ इतना ही सिमट कर रह गया..और साथ की साथ सातों तत्वों का सच्चा श्रद्धां भी हम कर सकते हैं.

४.शुभ की तरफ दिशा-हम कर्म बंध की प्रक्रिया श्रावक स्तिथि में बंद नहीं कर सकते तोह ऐसा तोह हो सकता है,,की हम शुभ ही शुभ कर्म करें..अशुभ न करें..मुझे अपना समय शुभ में व्यतीत करना चाहिए...और अशुभ से बचना चाहिए..मुझे मंदिर जाना चाहिए...अच्छी-अच्छी बातें करनी चाहिए,प्रवचन सुनने चाहिए..न की गंधे या अश्लील गाने सुनने चाहियें..मुझे अपनी दिशा शुभ की तरफ कर लेनी चाहिए.

५.घात-प्रतिघात से बचाव-

इस पुरे संसार में हमारे हित के बारे में कोई नहीं सोचता है..सिर्फ सच्चे देव,सच्चे शास्त्र और सच्चे गुरु को छोड़ कर....इसलिए मुझे अपना समय इन ही की शरण में बिताना चाहिए..पूरा संसार हमें अच्छा बन्ने से रोकता है..और अच्छा भी स्वार्थ के लिए ही बनवाता है..हम कुछ भी करते हैं..दुनिया का काम है कमी निकालना..और बीच में बोलना मान लीजिये एक आदमी रोज मंदिर जाता है..और दान करता है..तोह यह बात पक्की है की उसके रिश्तेदार,या उसके दोस्त..या वह लोग जिनको वह हितेषी मानता है..वह उससे चिड़ेंगे..और किसी तरह उसे रोकेंगे..और कमियां निकालेंगे,अगर दो लोगों में अच्छी दोस्ती है..तोह चार लोग उसे जरूर तुडवाएंगे,..और उनके बीच में लड़ाई करवाएंगे..दुनिया सलाह देती है..लेकिन हमें सोचना है की क्या सही है..और क्या गलत...दोस्त तोह बहुत दूर की बात है..अपने जान पहचान वाले रिश्तेदार,यहाँ तक की माता पिता हमारी निंदा करते हैं..और सामने तारीफ़ करते हैं...उसके जवाब में हम उनकी निंदा करते हैं..और यह घात-प्रतिघात का सिलसिला चालू रहता है...अगर कोई हमारे सामने गुस्सा करता है..तोह हम भी गुस्सा करने लगते हैं..हमें एक बात सोचनी चाहिए..की क्या कोई व्यक्ति हमारे सामने अपनी आँख फोड़ ले तोह क्या हम उसे देखकर अपनी आँख फोड़ लेंगे..जवाब होगा नहीं..तोह फिर मुझे उसे देखकर गुस्सा क्यों करना चाहिए..उल्टा मुझे उसे समझाना चाहिए..और वैसे भी हम शरीर को,इन्द्रियों को क्यों किसी दुसरे की वजह से कषय करके नुक्सान पहुंचाएं.

अगर यह साड़ी आदतें हमारे अन्दर आ गयीं तोह हम एक दिन कर्मों पे बहुत जल्दी विजय पा-पाएंगे,बहुत सारे उदहारण और शब्द मेरे द्वारा जोड़े गए हैं...वैसे आधारित मुनि क्षमा सागर जी के प्रचनों पर है.

जय जिनेन्द्र.

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News in Hindi

दिन सब
बीत जाते हैं
ख्याल इतना ही रहे
कि बीतते
दिन हमारे
जीवन को कितना क्या दे गए.

-मुनिश्री क्षमासागर

गुजरते वक्त के जैसे तीन साल बीत गए। 13 मार्च को हमने मुनिश्री का चौथा समाधि दिवस सागर में मनाया। समाधि स्थल पर नम आँखों से प्रार्थना कर मानों उनकी उपस्थिति का एहसास किया।उनके जीवन दर्शन और मूल्यों को कुछ और लोगों तक पहुँचाने का सार्थक प्रयास किया भी और स्वयं भी अनुभूत किया। न सिर्फ हमने बल्कि देश के कोने कोने तक उनकी अनुपस्थिति को याद किया गया.
हम सब वहां एक साथ बैठे यही उपलब्धि है, जो वहां नहीं पहुंचे वे सब भी अपनी अपनी जगह से मुनिश्री को याद कर रहे थे. ये जीवन उनकी ऐसी छाया में ही बीते यही कामना है.
मैत्री समूह

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