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👉 *गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी के 22 वें महाप्रयाण दिवस पर आयोजित कार्यक्रम...*
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👉 दिल्ली - पर्यावरण सरंक्षण संगोष्ठी का आयोजन
👉 पूर्वांचल, कोलकाता - शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन
👉 साकरी - तेयुप, जलगांव का शपथ ग्रहण समारोह
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 2 जुलाई 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
News in Hindi
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 20* 📜
*बहादुरमलजी भण्डारी*
*अन्तिम समय*
बहादुरमलजी के लिए जयाचार्य का युग सांसारिक और धार्मिक दोनों की दृष्टियों से पूर्ण सक्रियता और विकास का युग रहा। उनके दिवंगत होने के पश्चात् उन्हें भी अपना वार्धक्य बार-बार याद आने लगा। शरीर की क्रमिक शिथिलता उनके मानस को निरंतर प्रभावित करती चली गई। सत्तरवें वर्ष प्रवेश के बाद तो उन्हें ऐसा आंतरिक भान होने लगा कि मानो अब दूसरा किनारा आने ही वाला है। उन्होंने अपनी अंतः प्रेरणा के संकेतों को लक्षित किया और अपने बड़े पुत्र किसनमलजी को संवत् 1941 के मर्यादा महोत्सव पर मघवागणी के दर्शन करने हेतु लाडनूं भेजा। उन्होंने प्रार्थना करवाई कि आगामी चातुर्मास आप जोधपुर करवाने की कृपा करें ताकि मुझे इस वारधक्य में सेवा का अंतिम अवसर प्राप्त हो सके।
मघवागणी ने भंडारीजी की प्रार्थना को स्वीकार किया और संवत् 1942 का चातुर्मास करने जोधपुर पधार गए। भंडारीजी ने अपनी शारीरिक निर्बलता को उपेक्षित करते हुए पूरे तन-मन से इस अवसर का आध्यात्मिक लाभ उठाने का प्रयास किया। जिस उत्साह और आग्रह से उन्होंने चातुर्मास प्राप्त किया था वैसा ही वह उनके धार्मिक सहयोग में काम भी लगा। भाद्रव कृष्णा 9 की रात्रि को अचानक उनके शरीर का तापमान बढ़ गया। उससे उन्हें शरीर में अत्यंत निर्बलता अनुभव होने लगी। साधुओं के स्थान पर जाकर दर्शन करने का मन होते हुए भी वे जाने की स्थिति में नहीं रहे। अंत में विवश होकर उन्होंने मघवागणी को दर्शन देने के लिए प्रार्थना करवाई। सूर्योदय होने के साथ ही मघवागणी उनके घर पधारे और दर्शन दिए। बस वे उनके अंतिम दर्शन ही सिद्ध हुए। इधर मंगलपाठ सुनाकर आचार्यश्री वापस पधारे और उधर उन्होंने प्राण त्याग दिए। लोगों ने कहा— "वे जैसे उत्कृष्ट भक्तिमान् श्रावक थे वैसा ही उन्हें अंतिम समय में गुरु दर्शन का उत्कृष्ट संयोग भी प्राप्त हुआ।" 70 वर्ष के उस कर्मठ जीवन का अंतिम दिन संवत् 1942 भाद्रव कृष्णा 10 था।
*लाडनूं के सुप्रसिद्ध श्रावक तनसुखदासजी गोलछा के प्रेरणादायी जीवन-वृत्त* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 366* 📝
*निष्कारण उपकारी आचार्य नेमिचन्द्र*
*(सिद्धान्त-चक्रवर्ती)*
*साहित्य*
गतांक से आगे...
*लब्धिसार* इस ग्रंथ की रचना कषायपाहुड (कषाय प्राभृत) और जयधवला टीका के आधार पर हुई है। इस ग्रंथ के दर्शनलब्धि प्रकरण में क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्य और करण इन पांच लब्धियों का वर्णन है। प्रथम चार लब्धियां भव्य और अभव्य दोनों में मानी गई हैं। पांचवीं करणलब्धि भव्य जीवों के ही होती है। सम्यक्त्व रत्न की उपलब्धि करणलब्धि के अभाव में नहीं होती। अधःकरण, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण इन तीनों करणों का विस्तारपूर्वक विवेचन इस अधिकार में है। चरित्रलब्धि नामक द्वित्तीय अधिकार में क्षायोपशमिक, औपशमिक और क्षायिक चरित्र का सम्यक् प्रतिपादन है।
*क्षपणासार* इसमें कर्मक्षय करने की प्रक्रिया निरूपित है। इसमें कुल 653 गाथाएं हैं। यह ग्रंथ गोम्मटसार का परिशिष्ट जैसा प्रतीत होता है।
*समय-संकेत*
सिद्धांत चक्रवर्ती आचार्य नेमिचंद्र ने अपनी कृतियों में कहीं सन्, संवत्, समय का संकेत नहीं किया है। सुप्रसिद्ध महामात्य चामुंडराय के ग्रंथ के आधार पर आचार्य नेमिचंद्र के समय को जाना जा सकता है। प्रधानमंत्री चामुंडराय ने अपना चामुंडपुराण शक संवत् 900 वीर निर्वाण 1505 (विक्रम संवत् 1035) में संपन्न किया था। आचार्य नेमिचंद्र ने गोम्मटसार कृति की रचना महामात्य की प्रार्थना पर की। अतः चामुंडरायपुराण में प्राप्त संवत् समय के आधार पर गोम्मटसार कृति के रचनाकार सिद्धांत चक्रवर्ती नेमीचंद्र वीर निर्वाण की 15वीं-16वीं (विक्रम की 11वीं) सदी के विद्वान् हैं।
गोम्मटसार कृति पर जीवतत्त्व प्रदीपिका नामक संस्कृत टीका के रचनाकार आचार्य नेमिचंद्र ईस्वी सन् 16वीं शताब्दी के विद्वान् माने गए हैं। सिद्धांत चक्रवर्ती आचार्य नेमिचंद्र एवं संस्कृत टीकाकार आचार्य नेमिचंद्र में लगभग 500 वर्षों का अंतर है।
*जग-वत्सल आचार्य जिनेश्वर और आचार्य बुद्धिसागर के प्रेरणादायी प्रभावक चरित्र* के बारे में आगे और पढ़ेंगे व प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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