Update
👉 पीलीबंगा - आचार्य महाश्रमण कन्या सुरक्षा सर्किल का उद्घाटन
👉🏽विजयनगर (बेंगलुरु) महिला मंडल द्वारा कार्यशाला का आयोजन
*प्रस्तुति: 🌻संघ संवाद*🌻
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Update
📿 *नवीन चातुर्मास घोषणा*📿
*🔹 *परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी* ने महत्ती कृपा कर
🔅साध्वी श्री विद्यावती जी 'द्वितीय'
🔅साध्वी श्री काव्यलता जी
🔅साध्वी श्री प्रज्ञाश्री जी
तथा
मुनि श्री सुधाकर जी एवं
मुनि श्री दीप कुमार जी
का
*संवत 2075 का चातुर्मास चैन्नई गुरुकुल वास* में फरमाया है।
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद*🌻
News in Hindi
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 367* 📝
*जग-वत्सल आचार्य जिनेश्वर*
*आचार्य बुद्धिसागर*
जिनेश्वरसूरि एवं बुद्धिसागरसूरि युगल बंधु सुविहितमार्गी श्वेतांबर विद्वान् थे। जिनेश्वरसूरि समर्थ व्याख्याता एवं प्रमाणशास्त्र प्रबंधकों के रचनाकार थे। बुद्धिसागरसूरि आगम साहित्य के विशिष्ट ज्ञाता शास्त्रविहित क्रिया में निष्ठाशील एवं व्याकरण शास्त्र के प्रणेता थे। पाटण नरेश दुर्लभराज, पुरोहित सोमेश्वर, तत्रस्थ याज्ञिकों एवं शैवाचार्य ज्ञानदेव को अपने वर्चस्व से विशेष प्रभावित कर पाटण में सुविहितमार्गी मुनियों के लिए आवागमन की सुलभता प्राप्त करने का श्रेय इन युगल बंधु मुनियों को है।
*गुरु-परंपरा*
जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि के गुरु चान्द्रकुल बड़गच्छ के आचार्य वर्धमानसूरि थे। वर्धमानसूरि सापद देश कूर्चपूर में चैत्यवासी आचार्य थे। इनका 84 जिन मंदिरों पर प्रभुत्व था पर विशुद्ध चरित्र क्रिया का पालन करने के लिए उन्होंने चैत्रवासी परंपरा का त्याग कर वनवासी परंपरा के आचार्य उद्द्योतनसूरि की सुविहित परंपरा को स्वीकार किया। इसी सुविहित परंपरा में वर्धमानसूरि से जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि ने मुनि दीक्षा ग्रहण की, अतः दोनों के दीक्षा गुरु वर्धमानसूरि एवं वर्धमानसूरि के गुरु उद्द्योतनसूरि थे। इस समय सपाद लक्ष देश में अल्लराजा के पौत्र भुवनपाल का शासन था।
*जीवन-वृत्त*
ब्राह्मण पुत्र श्रीधर और श्रीपति युगल बंधु वेद विद्या के प्रकांड विद्वान् थे। वे 14 विद्याओं के ज्ञाता थे। स्मृति, इतिहास, पुराण का उन्हें गंभीर अध्ययन था। एक बार देश-देशांतर की यात्रा करने के लिए दोनों ने अपनी जन्मभूमि से प्रस्थान किया। घूमते-घूमते युगल विद्वान् धारा नगरी में पहुंच गए। धारा मालव की राजधानी थी। वह अत्यंत सुंदर और दर्शनीय नगरी थी। उसका अपार वैभव शैल-शिखरों को छू रहा था। नरेश भोज का वहां शासन था। श्री संपन्न श्रेष्ठी लक्ष्मीधर उसी नगरी का ख्याति प्राप्त नागरिक था। एक दिन श्रेष्ठी के घर में आग लग गई। घर की दीवारों पर 20 लाख के सिक्कों का लेनदेन लिखा हुआ था। आग की ज्वालाओं से वह सारा जल गया। लक्ष्मीधर इस घटना से अत्यधिक चिंतित हुआ। संयोग से श्रीधर और श्रीपति युगल बंधु भिक्षार्थ इधर-उधर घूमते हुए लक्ष्मीधर के घर पहुंच गए। ये दोनों बंधु पहले भी कई बार इस स्थान पर आए थे। लक्ष्मीधर श्रेष्ठी ने इन विद्या संपन्न, रूप संपन्न ब्राह्मण पुत्रों को यथेप्सित भिक्षा देकर संतुष्ट किया था।
*ब्राह्मण पुत्र श्रीधर और श्रीपति युगल बंधुओं ने लक्ष्मीधर श्रेष्ठी की उदासी का कारण जानकर उससे क्या कहा...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 21* 📜
*तनसुखदासजी गोलछा*
*पकड़ वाले व्यक्ति*
तनसुखदासजी गोलछा लाडनूं के सुप्रसिद्ध श्रावकों में से एक थे। वे तत्त्व के अच्छे जानकार और दृढ़धर्मी व्यक्ति थे। उनमें निर्भयता और बात की पकड़ अद्वितीय थी। प्रत्येक कार्य को अच्छी तरह से समझ-बूझकर प्रारंभ करते। उसके पश्चात् उसमें फिर चाहे कितने ही विघ्न आते रहें वे उसे अंत तक निभाने का प्रयास करते। अपने धार्मिक विश्वासों और कृत्यों में किसी दूसरे का हस्तक्षेप उन्हें कभी सह्य नहीं होता था। यदि कोई ऐसा करने का प्रयास करता तो वे उसके सामने और कट्टरता से डट जाया करते थे। उन्हें समझा कर ही कोई बात उनके गले उतारी जा सकती थी, दबा कर नहीं।
*मंदिर में सामायिक*
तनसुखदासजी बंगाल प्रांत के अजीमगंज (जिला मुर्शिदाबाद) में केसोदास-सताबचंद फर्म में मुनीम थे। थली के जो ओसवाल बहुत पहले बंगाल चले गए थे, वे 'देशवाली' कहलाते थे। वे सब मूर्तिपूजक परंपरा के थे। केवल तनसुखदासजी ही वहां ऐसे थे जो तेरापंथी थे। सामायिक आदि धार्मिक कृत्य करने के लिए वे प्रतिदिन मंदिर में ही जाया करते थे। जहां अन्य व्यक्ति वहां जाकर साकार या सगुण उपासना करते, वहां तनसुखदासजी निराकार या निर्गुण उपासना की अलख जगाया करते। सामायिक के काल में वे प्रायः वहां स्वामीजी तथा जयाचार्य आदि की तात्त्विक ढालें गाया करते थे। कभी-कभी कुछ व्यक्ति उनके पास ढालें सुनने के लिए बैठ जाया करते, तो कभी तत्त्व चर्चा भी करने लगते थे।
वहां के कुछ प्रमुख व्यक्तियों को तनसुखदासजी का वह कार्यक्रम बहुत खटकने लगा। तत्त्वचर्चा और ढालों से तो उन्हें कुछ खतरा भी दिखाई देने लगा। उन लोगों ने प्रत्यक्ष रूप में तो गोलछाजी से कभी कुछ नहीं कहा, परंतु दूसरे व्यक्तियों के माध्यम से उन्हें यह जताया अवश्य जाने लगा कि जब वे मूर्ति पूजा को मान्य नहीं करते तो उन्हें यहां क्यों आना चाहिए? जब तक ये बातें परोक्ष रूप में चलती रहीं, तब तक गोलछाजी ने कभी किसी से कुछ कहने की आवश्यकता नहीं समझी। वे बिना किसी झिझक के नियमित रूप से वहां जाकर अपना कार्य करते रहे। मंदिर में उनके आगमन को रुकवाने के लिए अंतरंग में कार्यवाही चलती रही। वे उससे परिचित अवश्य रहे, परंतु स्थिति से पूर्णरूपेण अनभिज्ञ की तरह मौन बने रहे।
*श्रावक तनसुखदासजी गोलछा का जब मंदिर में सामायिक, तात्त्विक चर्चा आदि निराकार या निर्गुण धार्मिक क्रियाएं करने का प्रत्यक्ष रूप से निषेध हुआ, तब उन्होंने उसके प्रत्युत्तर में क्या कहा...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
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✨ *अहिंसा यात्रा के बढ़ते कदम*..
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👉 *आज का प्रवास - Hemachandra Nagar, Minjur, Chennai*..
दिनांक: *04/07/2018*
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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