ShortNews in English
Jasol: 11.07.2012
Acharya Mahashraman inspired Monks and Nuns and to all layfollowers to stay dedicated to Sangh. He told to keep strong faith towards Dharamsangh.
News in Hindi
शासन निष्ठा जीवन का गुण: आचार्य श्री
जसोल ११जुलाइ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
जैन तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें आचार्य महाश्रमण ने शासन के प्रति निष्ठा व समर्पण की प्रेरणा देते हुए कहा कि मुनि शरीर को भले कभी अनशन पूर्वक छोड़ दें, परंतु धर्म शासन को छोडऩे की इच्छा न करें। संघीय जीवन में छोटी-मोटी व्यवस्था संबंधी सम्मान संबंधी, पदक प्राप्ति संबंधी बात हो सकती है, परंतु एक साधु व साध्वी के मन में इन तुच्छ बातों को लेकर अगर स्थिरता आती है तो वह गौरवास्पद बात नहीं होती है। ऐसी तुच्छ बातों को लेकर धर्मसंघ से बाहर पांव रखने की भावना भी मन में आ जाती है तो एक प्रकार का पाप है। आचार्य मंगलवार को चातुर्मास प्रवचन के दौरान श्रावक-श्राविकाओं, समणियों व साधु-साध्वियों को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि शासन के प्रति हमारे मन में मजबूत आस्था होनी चाहिए। एक समय प्रतिकूलता आती है तो एक समय खूब अनुकूलताएं भी प्राप्त हो जाती है। इसलिए तुच्छ बातों को लेकर संघ निष्ठा में कमी नहीं आनी चाहिए। हमारी भावना जीवन भर में शासन में जीने की रहे। शासन हस से कभी छूट व टूट नहीं जाए। आचार्य ने कहा कि शासन निष्ठा जीवन का गुण होता है। उन्होंने कहा कि शासन में शासन प्रति परिवर्तित होते रहते हैं। सबकी एक समान कृपा हो भी सकती है, नहीं भी हो सकती है और एक आचार्य के भी शासनकाल में किसी समय कृपा हो सकती है और किसी समय उसमें अंतर भी आ सकता है। अकृपा होती है तो फिर कभी कृपा भी हो सकती है। परंतु इस बात को लेकर कभी शासन निष्ठा में कमी नहीं आनी चाहिए। अपनी वास्तु स्थिति को आचार्यों के सामने रख देना चाहिए। आचार्य की अकृपा है तो भी हमारी आस्था उन पर बनी रहे। अकृपा में भी गुरू के प्रति आस्था श्रद्धा, सम्मान के भाव बने रहना विशिष्ट बात है। गुरू की अकृपा के पीछे के कारण को खोजना चाहिए। समय देखकर गुरू के पास जाना चाहिए और विनय भाव से गुरू से भूल माफी की प्रार्थना कर और जागरूक रहने के लिए मार्गदर्शन का निवेदन करें। गुरू के सामने छोटा बनकर रहना चाहिए। शासन के प्रति निष्ठा व सेवा की भावना रहनी चाहिए। शासन को सेवा की अपेक्षा होने पर शासन को सेवा दें। आचार्य ने साधु-साध्वियों की सेवाओं को उल्लेखनीय बताते हुए कहा कि साधु-साध्वी की सेवा भावना सामने आती है तो वह एक आह्लाद जनक स्थिति बन जाती है। सेवा के क्षेत्र में हमारा धर्मसंघ विशिष्ट है। समण श्रेणी में भी बहुत अच्छी सेवा की भावना व निष्ठा है। शासन के प्रति निष्ठा व सेवा के प्रसंग आचार्य ने साध्वी स्वर्ण रेखा, साध्वी गुणप्रेक्षा व साध्वी सन्मति की शासन निष्ठा का उल्लेख किया। हम शासन के प्रति समर्पित है। शासन शासन प्रति से बड़ा है। शासन पति का भी तब महत्व है जब शासन की शक्ति उनके साथ है। हमारे आचार्यों ने शासन की सेवा की है और शासन को सुरक्षित व विकसित करने का प्रयास किया है। आचार्य ने माणकगणी के काल में प्रसंग को याद करते कालू स्वामी, मगनलाल स्वामी और उस समय के साधु-साध्वियों की शासन निष्ठा का उल्लेख किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में चौबीसी का संगान कन्याओं की ओर से किया गया।
मंत्री मुनि सुमेरमल का संघ निष्ठा व समर्पण पर प्रेरक अभिभाषण हुआ। डूंगरगढ़ में दिवंगत साध्वी द्वय साध्वी कुशलरेखा व साध्वी पूना की स्मृति सभा में चार लोगस्य का ध्यान किया गया। 10 साल की नन्ही सी बच्ची प्रसिद्धि वैद मूथा ने पारमार्थिक शिक्षण संस्थान में गुरू आज्ञा से प्रवेशावसर पर श्रद्धासिक्त भाव अभिव्यक्त किए। मंजू देवी ओस्तवाल ने 10 की तपस्या और मनीष गोठी ने 7 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। संचालन मुनि हिमांशु कुमार ने किया।